Bilaspur News: बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। छत्तीसगढ़ के संरक्षित वन क्षेत्रों की सुरक्षा को लेकर मंथन और नए उपायों पर वन विभाग काम कर रहा है। सकरी स्थित वन चेतना केंद्र में आयोजित कम्युनिटी बेस्ट कंजरवेशन कार्यक्रम में अनुभवी व विशेषज्ञों ने ऐसे कुछ टिप्स साक्षा किए, जो वन और वन्य प्राणी की हिफाजत करने में मददगार साबित होंगे। तीन दिवसीय इस कार्यक्रम का सार यही निकल रहा है कि संरक्षित वन क्षेत्रों में बसे ग्रामीणों की आामदानी बढ़ाने के लिए प्रयास किया जाता है तो जंगल में उनकी निर्भरता कम होगी। विभाग को उनकी आमदानी बढ़ाने के लिए कमर कसनी होगी। इसके बाद ही विभाग की मुख्य नीति 'संरक्षण " को लेकर ग्रामीण अपना सहयोग प्रदान करेंगे।
वन विभाग के लिए संरक्षित क्षेत्र की हरियाली और यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणी दोनों की हिफाजत करना किसी चुनौती से कम नहीं है। तमाम कोशिशों के बावजूद कहीं न कहीं कमी सामने आती है और वही असुरक्षा का कारण बनती है। विभाग को महसूस होने लगा है कि इसके लिए मंथन और इस फील्ड में पारंगत व अनुभवी की मदद जरूरी है। इसीलिए छत्तीसगढ़ वन्य प्राणी ने इस आयोजन को कराने का निर्णय लिया है। इसकी मेजबानी अचानकमार टाइगर रिजर्व को सौंपी गई।
टाइगर रिजर्व प्रबंधन के बुलावे पर मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त आइएफएस व वर्तमान में इकोटूरिज्म पर बेहतर कार्य कर रहे डा. एके भट्टाचार्य टीम के दो अन्य सदस्यों के साथ शहर पहुंचे हैं। पहले दिन शुक्रवार और दूसरे दिन शनिवार को उन्होंने समझाया कि वन और वन्य प्राणियों की सुरक्षा स्थानीय ग्रामीणों की मदद के बिना संभव नहीं है। वह सहयोग तभी करेंगे, जब आर्थिक रूप से सक्षम होंगे। यदि ग्रामीण सक्षम नहीं हैं तो उसकी निर्भरता जंगल पर रहेगी।
ऐसे में कभी हरियाली पर कुल्हाड़ी चलेगी तो कभी शिकार जैसी घटनाएं होंगी। इसके अलावा भी वन से जुड़े अपराधों पर उसकी संलिप्तता रहेगी। प्रदेश के सभी संरक्षित क्षेत्रों से पहुंचे वनकर्मी, समूह और अधिकारियों के समक्ष ऐसे कई उदाहरण दिए, जो ग्रामीणों को आर्थिक मजबूती देने में मददगार साबित होंगे। उनके इस सुझाव ने सभी को प्रभावित भी किया। विभाग यही प्रयास करेगा कि ग्रामीणों की आमदानी बढ़ाने पर पूरा फोकस दिया जाए। क्योंकि उनकी आमदानी बढ़ेगी तो वन और वन्य प्राणियों की रखवाली होगी।
सेवानिवृत्त वन अफसर भट्टाचार्य ने संरक्षित क्षेत्र में बसे ग्रामीणों को आर्थिक मजबूती के लिए टिप्स दिए हैं। उनमें एक यह है कि यदि विभाग ग्रामीणों को प्रेरित करें कि वे घर के एक कमरे में पर्यटकों के लिए ठहरने की व्यवस्था रखें। पर्यटक जब टाइगर रिजर्च, सेंचुरी जैसे संरक्षित क्षेत्रों में सैर का प्रोग्राम बनाता है तो वह ऐसी गतिविधियां चाहता है तो प्रकृति से जुड़ी हो। अक्सर यह होता है कि जहां पर्यटक बड़ी तादात में पहुंचते हैं, वहां काटेज बड़ी समस्या हो जाती है। विभागीय काटेज बुक होने पर वह निराश होकर लौट जाते हैं। उस स्थिति में ग्रामीणों के बनाए इस आशियानें में रुकना बेहद पसंद करेंगे। भोजन व नाश्ता से लेकर अन्य सुविधा उपलब्ध कराकर ग्रामीण रोजगार बढ़ा सकते हैं।
खेताें की उत्पादन क्षमता हो दोगुनी
जंगल के अंदर बसे ग्रामीणों के संपन्न किसानों की तरह संसाधन नहीं होते हैं। आर्थिक कमजोरी के कारण भी वह चाहकर खेत के पूरे हिस्से में फसल की बोआई नहीं कर सकता है। यदि विभाग खेतों में फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए हर संभव मदद करता है तो निश्चित तौर पर वह भी संपन्न् किसान बन सकेंगे। सरकारी मदद से पांच क्विंटल धान या गेहूं उत्पादन करने वाले खेत की क्षमता 10 क्विंटल कर दी जाए तो किसान किसी भी स्थिति में जंगल को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
कार्यक्रम के दौरान यह बात भी सामने आई कि अचानकमार टाइगर रिजर्व हो या फिर प्रदेश के दूसरे टाइगर रिजर्व व सेंचुरी वहां विभाग ने पर्यटकों को सैर कराने के लिए जिप्सी की व्यवस्था की है। कुछ जगहों पर बस भी है। इसकी स्टेयरिंग पर बैठा चालक स्थानीय गांव का ही होता है। उसे भी ट्रेनिंग या अन्य माध्यमों से परिपक्व बनाया जाए, ताकि वह पर्यटकों को संबंधित क्षेत्र से जुड़ी जानकारियाें की प्रस्तुति रोचक अंदाज में कर सके। सैर के दौरान भले ही उन्हें वन्य प्राणी नजर न आए, लेकिन मिली जानकारी से वह संतुष्ट होकर लौटेंगे।