बिलासपुर। Bilaspur News: खाली वैगन वाली चार मालगाड़ियों को लेकर शेषनाग दोबारा कोरबा पहुंची थी। यहां से चार मालगाड़ियों में 16 हजार टन कोयला लोड कर वासुकी ने कोरबा से भिलाई के बीच 280 किलोमीटर की पहली दाैड़ पूरी की, जो रेलवे के लिए नया कीर्तिमान है। केवल एक घंटा 25 मिनट में बनी वासुकी रात दो बजकर 25 मिनट पर कोरबा से छूटी और सुबह सवा नौ बजे भिलाई पहुंच गई, जहां से वह दो भाग में होकर अपने-अपने गंतव्य की ओर भेज दी गई।
वासुकी के रूप में पहली बार चार रैक की लोडेड ट्रेन चलाई गई, जिसमें दो की लोडिंग दीपका से, एक जूनाडीह व एक कुसमुंडा से भेजी गई। कोयले से भरे चार रैक कोरबा स्टेशन के यार्ड में जोड़े गए थे। लोड रैक में भार अचानक बढ़ जाता है। इसमें वैगन के बीच कपलिंग के टूटने का डर बना रहता है। किसी स्थान पर काशन आर्डर में ब्रेक लगाना होता है या जर्की मूवमेंट की दशा में इनके टूटने का संभावना होती है। इसे संतुलित रखने वासुकी में डिस्ट्रीब्यूटेड पावर वायरलेस कंट्रोल सिस्टम (डीपीडब्ल्यूसीएस) प्रयुक्त किया गया। इसमें लीडिंग पावर (सबसे सामने का इंजन) जीपीएस के माध्यम से पीछे लगे तीनों इंजन से लिंक रहा। इससे हजारों टन का लोड खींचते समय कपलिंग टूटने के डर को दूर कर एक बार में 280 किलोमीटर की दौड़ लगाई गई। इस सिस्टम से उन्हें जोड़ने में आसानी होती है और प्रेशर आटो कंटीन्यूटी हो जाता है।
सारे लोड रैक वासुकी बनकर अलग-अलग क्षेत्र के बिजली संयंत्रों को भेजे गए हैं। इनमें एक नागपुर डिविजन अंतर्गत जबलपुर के पास मोहदा एनटीपीसी, दूसरा गुजरात के संयंत्र टीपीएचएस व ईएसडब्ल्यूएस, बीआरडी धानुरोड में एक रैक भेजा गया है।
पौने सात घंटे में 700 ट्रक के बराबर कोयला डिस्पैच
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे कोरबा खंड के क्षेत्रीय रेल प्रबंधक मनीष अग्रवाल ने बताया कि इस तरह सात घंटे से भी कम समय में कुल 280 किलोमीटर की दूरी तय कर वासुकी के माध्यम से दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे ने 16 हजार टन कोयला पहुंचाया, जो करीब 700 हाइवा के बराबर कोयला था। वासुकी की लंबाई भी करीब ढाई किलोमीटर की रही। एक एमटी रैक का वजन लगभग पांच हजार टन होता है, पर इसमें 16 हजार टन कोयला ऊपर से लोड कर दिया गया था।
अब तक दो बार चली शेषनाग, एक बार बाहुबली
एमटी ट्रेन दो बार जोड़ी जा चुकी है, जिसमें एक दो जुलाई को नागपुर से आई थी और दूसरी मंगलवार की रात भिलाई से कोरबा आई थी। दो एमटी रैक को लांग हाल ट्रेन या पायथन कहा गया है। तीन खाली मालगाड़ियों को जोड़कर एनाकोंडा कहा गया और तीन लोडेड मालगाड़ियों को बाहुबली कहा गया है। चार एमटी रैक जोड़कर शेषनाग और अब कोयले से भरी चार मालगाड़ियों की एक ट्रेन को वासुकी का नाम दिया गया है, जो अभी एक ही बार चली है।
ऐसे दूर किया कपलिंग टूटने का डर
लीडिंग पावर जिस तरह के एक्शन कर रहा होता है, शेष तीनों लिंक इंजन भी उसी सिंक्रोनाइजेशन में वही कार्य करते हैं। इससे ट्रेन की मूवमेंट संक्रोनाइलज्ड हो गई थी। अन्यथा अगर हम दो ट्रेन एक साथ जोड़कर चलाते हैं, तो आगे वाले लीड इंजन में बैठा क्रू पीछे वाले को वाकी टाकी से संपर्क कर सूचनाओं का समन्वयन करता है, कि ब्रेक लगाने या गति धीमी या तेज करनी है। इस तकनीक के प्रयोग से इस तरह बार-बार मेन्यूअली सूचनाएं आदान-प्रदान करने की जरूरत ही नहीं है। सिंक्रोनाइजेशन की प्रक्रिया में कपल को जर्क नहीं मिलना चाहिए, अन्यथा उनके टूटने का डर बना रहता है। इस तकनीक को विशाखापट्नम की कंपनी लोटस ने बनाया है।