नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने दुष्कर्म, मारपीट, गाली-गलौज और धमकी के मामले में दर्ज एफआइआर रद्द कराने की याचिका वापस लेने पर याचिकाकर्ता पर 2,000 का जुर्माना लगाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने यह राशि सरकारी विशेष विद्यालय, दृष्टिबाधित बालक-बालिका, जशपुर को देने का निर्देश दिया है।
बिलासपुर के राजेश जायसवाल ने पुलिस थाना सकरी में दर्ज एफआइआर नंबर 441/2025 को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। इस एफआईआर में उनके खिलाफ धारा 376(2), 294, 506 और 323 आइपीसी के तहत अपराध दर्ज है। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया है और शिकायतकर्ता पहले तीन बार विवाह कर चुकी है तथा पूर्व पतियों को भी ब्लैकमेल कर चुकी है। हालांकि, कोर्ट ने पाया कि इस तरह की बातें याचिका में तथ्यात्मक रूप से दर्ज नहीं की गईं।
जब यह तथ्य सामने आया, तो याचिकाकर्ता के वकील ने माफी मांगते हुए याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। कोर्ट ने अनुमति तो दी, लेकिन स्पष्ट किया कि इस तरह का मामला दाखिल कर न्यायालय का कीमती समय बर्बाद हुआ है।
कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति देते हुए 2,000 की लागत लगाने का आदेश दिया और कहा कि यह राशि जशपुर के दृष्टिबाधित बच्चों के विशेष विद्यालय को दी जाएगी। साथ ही, याचिकाकर्ता को भविष्य में उचित प्रार्थना और ठोस तथ्यों के साथ नई याचिका दायर करने की छूट दी गई।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अधूरी और अस्पष्ट प्रार्थना के साथ दाखिल की गई याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं पर 1,000 का जुर्माना लगाया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी.डी. गुरु की डिवीजन बेंच ने यह राशि सरकारी दिव्यांग महाविद्यालय माना कैंप रायपुर को देने का आदेश दिया है।
दुर्ग निवासी दिनेश कुमार साहू और रायपुर निवासी हरीशंकर साहू ने 19 जुलाई 2025 को थाना मंदिर हसौद, रायपुर में दर्ज एफआइआर नंबर 293/2025 को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। याचिका में आरोपों से जुड़ी धाराओं का स्पष्ट उल्लेख किए बिना केवल एफआइआर निरस्त करने का अनुरोध किया गया था।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि याचिका में उचित और स्पष्ट प्रार्थना नहीं की गई है तथा यह अपूर्ण (डिफेक्टिव) है। इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी, ताकि बाद में पूरी और उचित प्रार्थना के साथ नई याचिका दायर की जा सके। राज्य पक्ष के वकील ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की।
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कोर्ट ने याचिका को वापस लेने की अनुमति तो दी, लेकिन न्यायालय का समय बर्बाद करने पर 1,000 की लागत लगाई। यह राशि एक सप्ताह के भीतर अदालत की रजिस्ट्री में जमा कराई जाएगी और इसके बाद इसे सरकारी दिव्यांग महाविद्यालय, माना कैंप रायपुर को भेजा जाएगा। साथ ही, याचिकाकर्ताओं को भविष्य में उचित प्रार्थना के साथ नई याचिका दाखिल करने की छूट दी गई।