नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर: शहर के मध्य स्थित बेशकीमती सरकारी जमीन पर मिशन अस्पताल प्रबंधन द्वारा वर्षों से किए जा रहे दुरुपयोग और कब्जे के खिलाफ हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है। करीब 11 एकड़ और लगभग 1,000 करोड़ रुपये मूल्य की सरकारी जमीन पर लीज समाप्त होने के बावजूद अस्पताल प्रबंधन कब्जा बनाए हुए था।
इस जमीन को सेवा के नाम पर आवंटित किया गया था, लेकिन वर्षों तक इसका व्यावसायिक उपयोग कर मोटी कमाई की जा रही थी। हाई कोर्ट ने शुक्रवार को नितिन लारेंस और क्रिश्चियन वुमन बोर्ड आफ मिशन की याचिकाएं खारिज करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई बेदखली की कार्रवाई को सही ठहराया। हाई कोर्ट के फैसले के बाद प्रशासन अब इस जमीन पर दोबारा कब्जा लेने की कार्रवाई को तेज कर सकता है।
हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ने वर्षों तक लीज नवीनीकरण नहीं कराया और शर्तों का उल्लंघन करते हुए व्यावसायिक उपयोग किया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के आचरण को पट्टे का घोर दुरुपयोग बताते हुए रिट राहत देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एके प्रसाद ने कहा कि कलेक्टर और संभागीय कमिश्नर द्वारा दिए गए आदेश पूरी तरह वैधानिक, तथ्यपरक और विवेकपूर्ण हैं। याचिकाकर्ता द्वारा अदालत को गुमराह करने के प्रयास को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कब और क्या हुआ
मिशन अस्पताल की स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी। वर्ष 1966 में मोहल्ला चांटापारा के शीट नंबर 14, प्लाट नंबर 20/1 व 21 की 11 एकड़ सरकारी जमीन लीज पर दी गई थी।लीज की अवधि 31 मार्च 1994 तक थी। अस्पताल प्रबंधन ने 30 साल बाद भी लीज का नवीनीकरण नहीं कराया। 92,069 वर्गफीट भूमि अन्य लोगों को विक्रय कर दी गई। जमीनों को किराए पर चढ़ाकर हर महीने लाखों रुपये की कमाई की जा रही थी।