वाकेश साहू रायपुर। जयपुर के मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले वरुण जैन की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। माता-पिता निजी क्षेत्र में कार्यरत, दादाजी रिटायर्ड बैंक मैनेजर और खुद आईआईटी रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री।
यूपीएससी की तैयारी के दौरान दिल्ली पुलिस में चयन की उम्मीद थी। मगर, किस्मत ने उन्हें जंगलों का रखवाला बनाया। वर्तमान में छत्तीसगढ़ के उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व के उप निदेशक वरुण जैन कहते हैं, ‘वन सेवा में भी पुलिस जैसा रोमांच है। शिकारियों को पकड़ना, तस्करों पर नकेल कसना और प्रकृति की हिफाजत करना।’
उनका बनाया एआई आधारित हाथी अलर्ट एप कोई जादू नहीं, बल्कि एक क्रिएटिव प्रयास है। यह लोगों को हाथियों की चहलकदमी की पहले से चेतावनी देता है, जिससे टकराव टल जाता है। वरुण मानते हैं कि असली समस्या हाथियों के रहवास और कारिडोर का खत्म होना है, जिसके चलते वे इंसानी बस्तियों में भटकते हैं।
एआई इसे पूरी तरह खत्म नहीं कर सकती, बस हमें सतर्क कर सकती है। इस एप का आधा हिस्सा ओपन सोर्स है, जिसे दूसरे राज्य भी हाथियों के कारिडोर मैपिंग और अलर्ट सिस्टम के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। वरुण की उपलब्धियां यहीं नहीं रुकतीं।
उनकी एंटी-पोचिंग टीम ने 1,700 एकड़ जंगल को अतिक्रमण से मुक्त कराया। 150 से ज्यादा शिकारियों को छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और ओडिशा से धर दबोचा। राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) और वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (डब्ल्यूसीसीवी) के साथ मिलकर कई संयुक्त अभियान भी चलाए।
वह कहते हैं, ‘हाथी और इंसान के बीच शांति लाना मेरा मकसद है और यह उस दिशा में एक छोटा कदम है।’ प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुधीर अग्रवाल बताते हैं नवा रायपुर स्थित जंगल सफारी से आने वाले दिनों में हाथियों की निगरानी की जाएगी। हाथियों को रेडियो कॉलर पहनाई जाएगी। एआई एप से भी निगरानी की जाएगी।
साल 2022 में उनकी पोस्टिंग के पहले ही दिन तीन लोगों की हाथी के हमले में मौत ने उन्हें झकझोर दिया। यहीं से ‘छत्तीसगढ़ एलीफेंट ट्रैकिंग एंड अलर्ट एप’ का जन्म हुआ। इस अनूठे प्रयास के लिए उन्हें दिल्ली में ‘ईको वारियर अवॉर्ड 2024’ से सम्मानित किया गया। भविष्य में यह छत्तीसगढ़, झारखंड व आसपास के 1,000 किमी के दायरे में हाथियों के लोकेशन बताएगा।
पिछले दो सालों में जियो-टैग्ड डाटा से हाथियों के कारिडोर का नक्शा तैयार हुआ है। सर्दी, गर्मी, बरसात में उनकी चाल (गति) ,बांस, करील, माहुल बेल जैसी वनस्पतियों से लेकर फसल हानि, जनहानि तक की जीपीएस मैपिंग हुई है।
हाथी नहाने के लिए मटमैला और पीने के लिए बहता पानी या झिरिया पसंद करते हैं। इन डाटा से अगले कदम का अनुमान लगाते हैं। इसे ‘हाथी बॉट’ नाम दिया गया। इससे अर्ली अलर्ट मैसेज भेजा जाएगा।
नोएडा की स्टार्टअप कंपनी कल्पतरु और वन प्रबंधन सूचना प्रणाली की आईटी टीम ने मिलकर इसे तैयार किया। भविष्य में यह छत्तीसगढ़ और झारखंड के 1,000 किमी के दायरे में हाथियों के विचरण की जानकारी देगा। कुछ साल पहले हाथियों के गले में कॉलर आईडी लगाया गया था, जो बाद में गिर गए थे।
10 किमी के दायरे में भेजता है अलर्ट मैसेज एप में 500 से ज्यादा ग्रामीणों के मोबाइल नंबर और जीपीएस लोकेशन रजिस्टर्ड हैं। जैसे ही एलीफेंट ट्रैकर्स हाथियों की मौजूदगी का इनपुट डालते हैं, एप 10 किमी के दायरे में आटोमैटिक अलर्ट भेजता है।
यह एप हाथियों के व्यवहार का अध्ययन भी करता है। अगर दल में गर्भवती हथिनी या बीमार हाथी है, तो उनकी चाल धीमी हो जाती है। गर्मियों में वे तालाबों के पास रहते हैं। यह एप बीमार हाथी की लोकेशन पर खास स्वास्थ्य चिह्न भी दिखता है।