बिलासपुर। लगभग तीन हजार करोड़ रुपए की गेवरारोड-पेंड्रारोड रेल लाइन परियोजना एसईसीएल, राज्य सरकार और रेलवे तीनों की संयुक्त उपक्रम के रूप में पीपीपी माडल के तहत बनाई जा रही है परंतु प्रदेश सरकार की उदासीनता के कारण कार्य आगे नहीं बढ़ रही है।
नगर सहित जिले के लोगों ने बताया कि छत्तीसगढ़ राज्य के सांसद और जनप्रतिनिधियों को इस रेल परियोजना के बारे में विशेष दिलचस्पी नहीं है, जो कि उनके बयानों से परिलक्षित होती है। वर्तमान समय में देश में कोयले की कमी का मुददा जहां पूरे देश मे चर्चा का विषय है तो वहीं इसके लिए बनायी जा रही परियोजनाओं का क्या हाल है इसकी बानगी सन 2015 की फाइलों में है। आधी अधूरी अटकी पेंड्रारोड से गेवरारोड रेल कारिडोर को देखा जा सकता है। हाल ही में एसईसीआर रेल जोन की करीब तीन दर्जन से अधिक यात्रा ट्रेनों को केवल इसलिए कैंसिल कर दिया गया कि कोयले का परिवहन कार्य तेजी से कराना है। पर पिछले सात सालों में भी इसका काम पूरा नहीं हो सका और आधे अधूरा कार्य को रेल कारिडोर परियोजना को लेकर रेलवे और जनप्रतिनिधियों की गंभीरता को बता रहे हंै। पेंड्रारोड से गेवरारोड तक 110 किलोमीटर लंबी इस कारिडोर का 45 किलोमीटर का हिस्सा पेंड्रा जिले में और बाकी 65 किलोमीटर का हिस्सा कोरबा जिले में है। इस परियोजना पर काम 2016 में शुरू तो हुआ और दोनों जिलों में रेललाइन बिछाने के लिए अर्थवर्क का काम भी शुरू हुआ पर इसकी रफ्तार काफी कम नजर आ रही है। इस रेलवे ट्रेक का इस्तेमाल सालाना 63 मिलियन टन कोयले का परिवहन के लिए होगा जो कि कोरबा की कोल माईंस को बिलासपुर कटनी रूट पर स्थित पेंड्रारोड स्टेशन तक जोड़ेगी। इसे लेकर अधिकांश जनप्रतिनिधियों की बोलती बंद नजर आती है। लोगों ने बताया कि आधी-अधूरी परियोजना को सांसदों के द्वारा उठाया तक नहीं जाता है। रेलवे कमेटी की मेंबर और राज्यसभा सदस्य ने इसकी जानकारी नहीं होने का आश्चर्यजनक बयान दे डाला जबकि सांसद अरुण साव कोरोना वैश्विक महामारी के चलते काम प्रभावित होने की बात कहते हुए रेल मंत्री से मिलकर इसको अब जल्द से जल्द पूरा कराने के लिये मांग करने की बात कही है। वहीं कोरबा की सांसद ज्योत्सना महंत इसको केंद्र सरकार की योजना होने की बात कहते हुये राज्य सरकार को कसूरवार नहीं ठहराते हुये रेलमंत्री से इस परियोजना को पूरा कराने के लिए पत्राचार करने की बात कह रही हैं। वहीं इस मामले में कोटा और मरवाही विधायकों ने भी अब तक विषेश दिलचस्पी नहीं दिखाई है जबकि इस रेल लाइन के दायरे में कोटा, मरवाही, पाली तानाखार, कटघोरा और कोरबा विधानसभा के क्षेत्र के सैकड़ों गांव आ रहे हैं। आधी पड़ी रेल परियोजना के कार्य को देखते हुए जिले के जनप्रतिनिधि और गांव के ग्रामीण मांग कर रहे हैं।