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राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर (नईदुनिया)। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पहले बिलासपुर लोकसभा अनुसूचित जाति के लिए और जांजगीर सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित की गई थी। परिसीमन के बाद आरक्षण की स्थिति दोनों ही सीटों पर बदली। या यूं कहें कि आरक्षण के मसले पर अदला-बदली हो गई। बिलासपुर सामान्य वर्ग के लिए और जांजगीर अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। तब से लेकर अब तक हुए चार चुनाव में दोनों ही सीटों पर भाजपा चुनाव जीतते आ रही है। बिलासपुर लोकसभा सीट पर भाजपा का बीते 27 साल से कब्जा चला आ रहा है।
भाजपा की रणनीति भी साफ है। प्रत्याशी के बजाय पार्टी पर फोकस कर चुनाव लड़ना और मतदान केंद्रों पर ज्यादा ध्यान देना। तब भी और मौजूदा दौर में भी यही राजनीतिक परिदृश्य नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा और कमल निशान पर रणनीतिकारों से लेकर कार्यकर्ताओं और उम्मीदवारों का जोर है।
दीवारों पर लिखे नारे हो या फिर मतदान के लिए अपील करते कमल निशान का चुनाव चिन्ह। पूरे चुनावी माहौल में बिलासपुर शहर से लेकर सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों में दीवारों पर बड़े-बड़े कमल का निशान और अब की बार 400 पार है। पोस्टरों में प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी वाली तस्वीर और स्थानीय प्रचारकों की जुबान पर मोदी की गारंटी। बिलासपुर के आठ विधानसभा क्षेत्र हो या फिर जांजगीर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा सीटें। पार्टी और कार्यकर्ता चुनाव लड़ते दिखाई दे रहे हैं।
आमतौर पर लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं। देशव्यापी मुद्दों के अलावा स्थानीय मुद्दे भी तब हावी हो जाते हैं जब विधायक या मंत्री चुनावी कमान संभाल लेते हैं। बिलासपुर लोकसभा सीट में तो कमोबेश कुछ इसी तरह का दृश्य नजर आ रहा है। लोकसभा उम्मीदवार के बजाय मंत्री व विधायकों की प्रतिष्ठा दांव पर है। इस बात का सीधा-सीधा अहसास विधायक व मंत्री को भी है। तभी तो उम्मीदवार के साथ अपने विधानसभा क्षेत्रों में ये जनंसपर्क करते भी दिखाई दे जाते हैं। क्लस्टर प्रभारी व विधायक अमर अग्रवाल, डिप्टी सीएम अरुण साव ,पुन्नूलाल मोहले, धर्मजीत सिंह, सुशांत शुक्ला अपने विधानसभा क्षेत्रों में बैठक ले रहे हैं।
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कांग्रेस ने बिलासपुर लोकसभा सीट से भिलाई के विधायक देवेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया है। बिलासपुर में उनकी राजनीतिक पारी का आगाज कुछ ठीक नहीं हुआ। अपनों के ही विरोध का सामना करना पड़ा। टिकट के मुद्दे पर कांग्रेस के एक पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष कांग्रेस भवन परिसर में आमरण अनशन पर बैठ गए। मान मनौव्वल के बाद अनशन तो टूट गया पर शुरुआती दौर में जो सियासी झटका देवेंद्र को मिला उससे वे उबर नहीं पा रहे हैं।
जांजगीर लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति पर नजर डालें तो चार जिलों में बंटा हुआ है। जांजगीर व सक्ती के अलावा सारंगढ़ बिलाईगढ़, बलौदाबाजार-भाटापारा जिले के विधानसभा सीटों को भी शामिल किया गया है। जांजगीर लोकसभा के अंतर्गत आठ विधानसभा सीट है। जांजगीर, अकलतरा, पामगढ़, सक्ती, चंद्रपुर, जैजैपुर, सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के बिलाईगढ़ विधानसभा व बलौदाबाजार भाटापारा जिले के कसडोल विधानसभा।
इसे संयोग ही कहेंगे कि आठ में से एक भी सीट पर भाजपा के विधायक नहीं है। इसका असर मौजूदा चुनावी रणनीति में नजर आने लगी है। बीते दो दिनों से डिप्टी सीएम विजय शर्मा जांजगीर में डेरा डाले हुए हैं। बूथ स्तर के पदाधिकारियों के अलावा विधानसभा प्रभारी सह प्रभारी, संयोजक व सह संयोजकों से सीधी बात कर रहे हैं।
भाजपा का पूरा फोकस पोलिंग बूथों को मजबूत करने और विधानसभा की हारी बाजी को जीत में पलटने पर है। बूथ पर फोकस करने के अलावा कांग्रेस व बसपा के पदाधिकारी, पूर्व विधायक व कार्यकर्ताओं को भाजपा प्रवेश की रणनीति भी नजर आ रही है। डिप्टी सीएम विजय शर्मा के अलावा विधायक खुशवंत साहेब, पूर्व मंत्री व विधायक राजेश मूणत की सक्रियता भी दिखाई दे रही है।
जांजगीर लोकसभा सीट से बसपा ने अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। राजनीतिक सम्मेलनों का दौर भी प्रारंभ हो गया है। बसपा की प्रभावी मौजूदगी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब भी बन सकती है। पामगढ़, अकलतरा व जैजैपुर विधानसभा सीट में बसपा के प्रभाव से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
विधानसभा चुनाव में बसपा की प्रभावहीन सियासी प्रदर्शन का लाभ कांग्रेस को मिला और भाजपा का इसका सीधा-सीधा नुकसान उठाना पड़ा। मौजूदा चुनाव में बसपा की बढ़ती सक्रियता के चलते वोटों के ध्रुवीकरण का खतरा भी कमोबेश कम ही रहेगा। जिस अंदाज में बसपा के प्रतिबद्ध मतदाता पार्टी और प्रत्याशी के पक्ष में अपना जनमत देंगे कांग्रेस की राजनीतिक संभावनाएं उसी अंदाज में क्षीण होते नजर आएगी।