बिलासपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। वन विभाग की स्मृति वाटिका में पूर्वजों की यादों को हरियाली के माध्यम से सहेजकर रखी गई है। प्रतिष्ठित वर्ग से लेकर आम लोगों के द्वारा लगाए गए पौधे अब पेड़ बन चुके हैं। लेकिन, विभाग आज भी उनकी सुरक्षा कर रहा है, ताकि जब कभी स्वजन यहां आए तो इन वृक्षों को देकर अपने पूर्वजों को याद कर सकें।
हालांकि जब इस उद्यान के नामकरण की तैयारी चल रही थी, तब यह मंथन हुआ कि कुछ ऐसा नाम रखा जाए कि यह लोगों के जेहन में रहे। इसके बाद स्मृति वाटिका नाम पर सहमति बनी। नाम के अनुरूप इसकी पहचान बनाने के लिए यह तय किया गया कि यहां अपने चाहने वालों की याद में कोई भी पौधे लगा सकते हैं। इस परंपरा की शुरुआत के साथ यह निर्णय भी लिया गया, पौधे लगाने के एवज में संबंधित से 200 रुपये का शुल्क लिया जाएगा।
शुल्क निर्धारण के पीछे यह वजह थी कि वन अमला गंभीर रहेगा और पौधों की देखभाल करने में किसी तरह की कसर नहीं छोडेगा। योजना कारगार साबित हुई। पूर्वज व परिवार के मृत सदस्यों की याद में पौधे लगाने के लिए सामान्य वर्ग से लेकर अधिकारी, व्यापारी व जनप्रतिनिधि सभी सामने आए।
बाद में शुल्क 500 रुपये कर दिया गया। उनके लगाए पौधे अब वृक्ष बन चुके हैं। इन्हीं वृक्षों की हरियाली में पूर्वजों की यादें हमेशा ताजा रहती हैं। जिन्होंने पौधें लगाए हैं, वहां कभी-कभी आकर वृक्षों को देखते हैं, उन्हें एक अलग सुकून मिलता है। लोगों की भावनाओं से जुड़े होने के कारण वन अमला भी उनकी कभी मनाही नहीं करता, चाहे वह जितनी देर यहां बैठे।
देखभाल के साथ नाम की पट्टिकाएं
वाटिका आने वाले पर्यटक भी इन पौधे या वृक्षों को देखकर यह जान सके कि यह किसने और किनकी याद में लगाए हैं। इसके लिए वन विभाग की ओर से सभी पेड़- पौधों के नीचे नाम की पट्टिकाएं भी लगाई हैं। हालांकि मौसम के प्रभाव नाम मिट जाते हैं। खासकर बरसात में ऐसी स्थिति निर्मित होती है। जब बरसात का सीजन खत्म हो जाता है, दोबारा नामों को लिखे जाते हैं, ताकि जब स्वजन आएं, तो यह देखकर खुशी मिले।
इन्होंने लगाए पौधे
पूर्व सीएम छत्तीसगढ़ स्व. अजीत जोगी
पूर्व वनमंत्री डीपी घृतलहरे
तत्कालीन जस्टिस सतीश कुमार अग्निहोत्री
तत्कालीन जस्टिस दिवाकर मिश्रा
पूर्व महापौर उमाशंकर जायसवाल
बैंक आफ बड़ौदा के एल गुप्ता
डा. राहलकर
सीएल देवांगन
रामजी मेश्राम
रघुनंदन सिंह उइके
हेतराम कोरम
करतार सिंह