बिलासपुर(निप्र)। नवीन जिला अस्पताल को सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाने के लिए राज्य शासन ने कवायद शुरू की है। अगर ऐसा होता है तो जल्द ही यहां के लोगों को गंभीर बीमारियों जैसे न्यूरो, किडनी, हार्ट, कैंसर के इलाज के लिए महानगर नहीं जाना पड़ेगा।
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सिम्स की स्थापना बिलासपुर में हुई। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने जिला अस्पताल को 99 वर्षों की लीज पर गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी को दिया था। इसके बाद सिम्स का हस्तांतरण चिकित्सा शिक्षा विभाग में हो गया। इधर राज्य में सत्ता परिवर्तन के साथ ही यहां पर नवीन जिला अस्पताल की स्थापना का निर्णय लिया पुराना बस स्टैंड के करीब इसके लिए जगह का चयन किया गया। जहां पर 100 बिस्तर का अस्पताल चल रहा है। वर्तमान में ओपीडी में सर्दी, खांसी व बुखार सहित अन्य मामूली बीमारी का उपचार ही हो पाता है। गंभीर बीमारियों का इलाज नहीं होने के कारण गरीब व मध्यम वर्ग के मरीजों को उपचार के लिए जेवर-गहने व संपत्ति बेचनी पड़ रही है। न्यूरो, हार्ट, किडनी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए अभी तक कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है। इससे आम आदमी को महानगर के चक्कर काटने पड़ते हैं। यहां प्राथमिक व सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की तरह ही उपचार सुविधा उपलब्ध है। सीने में दर्द की शिकायत होने पर यदि कोई मरीज सिम्स या जिला अस्पताल पहुंचता है तो उसे आईसीयू में कुछ देर रखने के बाद उसके परिजनों को अपोलो या फिर किसी अन्य बड़े चिकित्सा संस्थान में इलाज कराने की सलाह दी जाती है। इन संस्थाओं में कार्डियोलॉजिस्ट की नियुक्ति नहीं हो सकी है। वहीं हार्ट से संबंधित सर्जरी के लिए कोई इंतजाम ही नहीं हुए। किडनी की बीमारी के इलाज के लिए भी इन संस्थाओं में कोई व्यवस्था नहीं है। यहां से मरीजों को सीधे निजी चिकित्सा संस्थान भेज दिया जाता है। इसके कारण किडनी रोग से ग्रसित मरीज रायपुर का चक्कर काटने मजबूर हैं। यहां पर किडनी के इलाज के लिए कोई विशेषज्ञ डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं है। हालांकि दोनों जगह पर डायलिसिस हो रही है। इसके अलावा कैंसर के इलाज के लिए मरीज मुंबई भेजे जा रहे हैं। सिम्स में कैंसर यूनिट की पिछले 5 सालों से तैयारी चल रही है। इसके लिए बना प्रस्ताव फाइलों में कैद होकर रह गया है। हालांकि कैंसर जैसी घातक बीमारी से पीड़ित मरीजों को प्राथमिक उपचार की सुविधा सिम्स और जिला अस्पताल में उपलब्ध कराई जा रही है। सरकारी मेडिकल कॉलेज व अस्पताल में न्यूरोसर्जरी की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है। इससे सिर में चोट लगने पर मरीज की जान चली जाती है।
इन सुविधाओं की है दरकार
नवीन जिला अस्पताल की स्थापना करने के बाद राज्य शासन यहां पर सुविधा उपलब्ध कराना भूल गया है। हाल यह है कि पब्लिक पार्टनशिप से सीटी स्केन व एमआरआई मशीन लगाने की कवायद भी बंद हो गई है। राज्य शासन ने नवीन जिला अस्पताल की स्थापना तो कर दी, लेकिन अभी भी यहां पर उपकरण आदि की कमी है। अत्याधुनिक सीटी स्केन व एमआरआई जैसी मशीन उपलब्ध नहीं होने के कारण यहां उपचार के लिए आने वाले मरीजों को शारीरिक परीक्षण के लिए बाजार की दौड़ लगानी पड़ती है। जिला अस्पताल के लिए यह मशीन लगाना काफी कठिन है। इसकी वजह है फंड का अभाव। शासन भी आसानी से महंगी मशीनों की खरीदी नहीं करता है। शहर के निजी डॉक्टरों ने जिला अस्पताल की समस्या को ध्यान में रखते हुए वहां पर सीटी स्केन व एमआरआई जांच जैसी सुविधा उपलब्ध कराने का प्रस्ताव तैयार किया था। इसके लिए बिलासपुर डायग्नोस्टिक समिति का गठन किया गया। इसमें आधा दर्जन निजी प्रैक्टिस में लगे डॉक्टर सदस्य थे। इस समिति के प्रस्ताव को जिला अस्पताल ने स्वास्थ्य संचालक व कलेक्टर को प्रेषित किया गया था, लेकिन यह प्रस्ताव फाइलों से आज तक बाहर नहीं आ सका है। हाल यह है कि कलेक्टर के बार-बार पत्र लिखे जाने के बाद भी यहां के लिए सोनोग्राफी मशीन नहीं आ सकी है।
वर्तमान में एमडी और एमएस, आएंगे डीएम और एससीएच
वर्तमान में सिम्स और जिला अस्पताल में एमडी और एमएस डॉक्टर ही हैं। इसके कारण गंभीर बीमारी के विशेषज्ञ नहीं है। सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनने पर यहां पर किसी एक रोग के विशेषज्ञ की नियुक्ति की जाएगी, जो डीएम और एमसीएच डिग्रीधारी होंगे। जिसमें यूरोलॉजी, कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, आर्थोपेडिक, ओकोलॉजी, प्लास्टिक सर्जरी, क्राइनोलॉजी, गैस्ट्रोलॉजी आदि विभाग प्रमुख हैं। हालांकि विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति कर पाना मुश्किल है।
चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज है प्रसिद्ध
सुपर स्पेशलिटी के मामले में देश में चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज प्रसिद्ध है। जहां पर इन विषयों की पढ़ाई के साथ-साथ गंभीर से गंभीर मरीजों का इलाज भी किया जाता है। इसके अलावा संजय गांधी इंस्टीट्यूट लखनऊ, एम्स दिल्ली समेत कुछ संस्थानों में भी इस तरह की सुविधा उपलब्ध है। इसके अलावा निजी चिकित्सा संस्थानों में सुविधाएं उपलब्ध है, लेकिन वहां पर इलाज करना आम आदमी के बस में नहीं होती है। ऐसे में जिला अस्पताल के सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनने से छत्तीसगढ़ की जनता को भी बड़ा फायदा मिलेगा।
3.3 एकड़ जमीन की है आवश्यकता
नवीन जिला अस्पताल प्रबंधन ने 100 बिस्तर बढ़ाने के लिए राज्य शासन को प्रस्ताव भेजा है। इसके लिए करीब की 3.3 एकड़ जमीन की आवश्यकता है, जिसका अभी तक आवंटन नहीं हो सका है। इसके कारण अस्पताल का विस्तार भी दो साल से अटका हुआ है। ऐसे में 100 बिस्तर वाले अस्पताल में मरीजों को कई तरह की दिक्कतें झेलनी पड़ती है।
' नवीन जिला अस्पताल को सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल बनाने की पहल अच्छी है। इससे छत्तीसगढ़ की गरीब एवं मध्यम वर्गीय जनता को उच्च स्तरीय चिकित्सा के लिए महानगर नहीं जाना पड़ेगा। '
डॉ. बीआर नंदा
सिविल सर्जन, नवीन जिला अस्पताल बिलासपुर।
' शहर में अगर सरकारी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शुरू होता है, तो चिकित्सा के क्षेत्र में इससे बड़ी और कोई दूसरी सौगात नहीं हो सकती है। मुख्यमंत्री एवं राज्य शासन का कदम सराहनीय है।'
प्रो. रमणेश मूर्ति
अस्पताल अधीक्षक, सिम्स।