आज मनाया जाएगा पोला त्योहार: बैलों की पूजा और अन्नमाता के गर्भ धारण का पर्व
छत्तीसगढ़ में हर साल मनाया जाने वाला पारंपरिक पोला त्योहार न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है। कुछ जगह पर इस पर्व को पिठोरी अमावस्या और कुछ जगहों पर कुशोदपाटनी अमावस्या के नाम से जानते हैं ।
Publish Date: Mon, 02 Sep 2024 07:58:56 AM (IST)
Updated Date: Mon, 02 Sep 2024 07:58:56 AM (IST)
शनीचारी बाजार मे पोला से पूर्व जम कर मिट्टी के बैलों की खरीदारी की गई ।HighLights
- पोला त्योहार खेती-किसानी से जुड़ा हुआ पर्व
- इस दिन परंपरानुसार खेत जाने की मनाही होती है
- मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है
नईदुनिया प्रतिनिधि, बिलासपुर। आज पोला का त्यौहार मनाया जा रहा है। इस त्यौहार की तैयारी को लेकर हफ्ते भर पहले से ही बाजार सज चुके थे। शहरी क्षेत्रों में बैल की कमी होने के चलते शहरवासी मिटटी के बैल खरीदने पहुंचने लगे थे। वही बाजार में रंगबिरंगी मिटटी के खिलौने की भी खूब बिक्री हुई।
पोला त्योहार का महत्व और परंपराएं
छत्तीसगढ़ में पोला त्योहार खेती-किसानी से जुड़ा हुआ पर्व है। भाद्र मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है। इस दिन परंपरानुसार खेत जाने की मनाही होती है और किसान अपने घरों में रहकर बैलों को सजाते हैं, उन्हें नहलाकर और पूजा-अर्चना करते हैं। इस पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके मूल में बैलों की पूजा और खेती की उन्नति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना है।
पोला की पूजा और आचार-व्यवहार
आचार्य गोविंद दुबे बताते हैं कि ऐसी मान्यता है कि इस दिन धरती मां की गर्भ पूजन की जाती है, और लोग खेत नहीं जाते हैं। किसान इस समय अपनी खरीफ फसल की बोवाई और निंदाई का कार्य पूरा कर चुके होते हैं। शुभ दिन पर गोधन पशुधन के साथ-साथ कृषि उपकरणों की पूजा का भी विशेष महत्त्व है।
शास्त्री स्कूल मैदान में कार्यक्रम
आज पोला के पर्व में लाल बहादुर शास्त्री स्कूल मैदान में बैल सज्जा कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा। आयोजन समिति के महेश दुबे बताते है कि राज्य की स्थापना के बाद से ही हर साल पोला के त्यौहार के अवसर पर यहाँ बैल सज्जा और बैल दौड़ की प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता रहा है। इस साल इसका 24 संस्करण मनाया जाएगा। वह बताते है कि जब इस प्रतियोगिता की शुरुआत की गई थी उस वक़्त 25 से 30 जोड़े बैल के साथ किसान यहाँ पंहुचा करते थे। लेकिन आधुनिकीकरण के साथ किसानो में बैल पालने की ज़रूरत ख़तम होती जा रही। इस मंच के माध्यम से अपने पर्व को सजोने का प्रयास किया जा रहा है।