बिलासपुर(नईदुनिया प्रतिनिधि)।Political News in Bilaspur: प्रदेश के पूर्व नगरीय प्रशासन मंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता अमर अग्रवाल ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत किए जा रहे कार्यों को नाकाफी बताया है। यही वजह है कि बिलासपुर स्मार्ट शहरों की रैंकिंग में पिछड़ गया है। उन्होंने इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन पर सवाल उठाते हुए मद का दुस्र्पयोग कर अन्य दूसरे कार्यों में करने का भी आरोप लगाया है। पूर्व मंत्री अग्रवाल ने बयान जारी कर कहा कि जून 2017 में उनके नगरीय प्रशासन मंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में 100 स्मार्ट शहरों की घोषणा में रायपुर के साथ बिलासपुर को स्मार्ट सिटी में शामिल किया। यह शहरवासियों के लिए गौरव की बात थी। स्मार्ट सिटी परियोजना के वित्तीय पोषण के लिए केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा पांच वर्षों तक 100 -100 करोड़ स्र्पये का प्रविधान किया गया।
1,100 करोड़ स्र्पये चौदहवें वित्त आयोग तथा केंद्र सरकार की हाउसिंग फार आल सहित अन्य योजनाओं से एवं शेष राशि का इंतजाम निगम को अपने संसाधनों से और पीपीपी माडल से किया जाना तय हुआ। अमर अग्रवाल ने कहा एक विकसित, समृद्ध स्मार्ट सिटी के लिए जरूरी है कि अपने हर एक नागरिक को जीवन जीने की मूलभूत सुविधाएं मिले। बिजली, पानी, सड़क , पेयजल आपूर्ति, घर के साथ बेहतर पर्यावरण और परिवेश एवं प्रौोगिकी आधारित अधोसंरचना का विकास, नगरीयता के विस्तार तथा उसके अनुसार सामाजिक संरचना हो।
उपलब्ध सुविधाओं और दीर्घकालिक नियोजन की दृष्टि से बिलासपुर देश के अग्रणी व्यवस्थित शहरों में जाना जाता रहा है। यहां का शांतिप्रिय माहौल एवं बेहतर परिवेश अन्य शहरों से अलग पहचान देता है। राज्य निर्माण के बाद दो दशकों की विकास यात्रा में बिलासपुर के समग्र विकास की परिकल्पना को प्रतिबद्ध प्रयासों के साथ नगरवासियों ने बढ़ते महानगर के आकार लेते देखा है।
स्मार्ट सिटी के सुचारू क्रियांवन्यन के लिए नगर निगम से अलग कंपनी बिलासपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड बनाई गई। इसके चेयरमैन नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव होते हैं जबकि, कामकाज कंपनी के सीईओ नगर निगम आयुक्त के साथ ही कलेक्टर, एसपी, सीईओ चिप्स, केंद्र के प्रतिनिधि मेयर सहित 10 सदस्य शामिल हैं।
बिलासपुर में स्मार्ट सिटी अंतर्गत सुविधाएं और सेवाएं देने के लिए चार हजार करोड़ स्र्पये खर्च करने का आकलन किया गया। चार साल बाद भी योजनाओं की शुरुआत तक नहीं हो पाई है। निगम अब तक पहली किस्त की 70 फीसद राशि भी खर्च नहीं कर पाया है। इसके मौजूदा हालात में सुविधाओं के मामले में बिलासपुर पिछड़ता नजर आ रहा है। स्मार्ट सिटी के तहत संचालित प्रोजेक्ट आधे अधूरे हैं जो प्राथमिकता में थे, उसे छोड़कर अन्य कार्य जोड़ दिए गए हैं।
नेता बना रहे बहाना: अमर
सत्ता पक्ष के नेता कोरोना से काम बंद होने का बहाना बना रहे हैं जबकि देश के अन्य शहरों में कोरोना के बावजूद स्मार्ट सिटी का काम नियमित ढंग से बहुत तेजी से चल रहा है। निगम के परंपरागत कार्यकरण से पृथक स्मार्ट परिणामों के लिए स्मार्ट सिटी लिमिटेड का गठन कर दक्ष टीम से शुरुआत की गई थी। लेकिन कालांतर में दागी और रिटायर हो गए अफसरों को स्मार्ट सिटी लिमिटेड में भर्ती कर आरामगाह बना दिया गया है।
स्मार्ट सिटी के नाम पर करोड़ों स्र्पये मिले। फिर भी न्यायधानी के साथ अन्याय को लेकर बेबसी और लाचारी जुड़ती गई। 4,000 करोड़ स्र्पये की योजना के तहत स्मार्ट सिटी अंतर्गत नागरिकों को स्तरीय सुविधाएं उपलब्ध कराना तय किया गया। लेकिन सुविधाओं के मामले में सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ रहे हैं।