बिलासपुर में संस्कृत सीखकर अमेरिका में करेगी प्रचार
संस्कृत भाषा और भारतीय शास्त्र को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से अमेरिका के कैलिफोर्निया से विद्यार्थी मित्तल शहर पहुंची है।
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Publish Date: Wed, 27 May 2015 10:41:57 AM (IST)
Updated Date: Wed, 27 May 2015 10:50:54 AM (IST)

बिलासपुर(निप्र)। संस्कृत भाषा और भारतीय शास्त्र को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से अमेरिका के कैलिफोर्निया से विद्यार्थी मित्तल शहर पहुंची है। वह पाणिनी शोध संस्थान में प्रवेश लेकर संस्कृत की शिक्षा ले रही है। इसके बाद वह अमेरिका में इसका प्रचार-प्रसार करेगी।
कैलिफोर्निया निवासी मित्तल महेश त्रिवेदी को संस्कृत और भारतीय शास्त्रों की आध्यात्मिक स्र्चि ने इस ओर आकर्षित किया। वह अमेरिका ही 12वीं की पढ़ाई के बाद भारत आ गई। उसने बताया कि भारतीय दर्शन शास्त्र और आध्यात्म में काफी स्र्चि थी और संस्कृत नहीं जानने की वजह से इसे समझने में काफी दिक्कते आते थीं। इसी वजह से संस्कृत सीखने का फैसला किया।
पहले अमेरिका में ही रहकर भाषा सीख रही थी लेकिन इसे पूरी तरह से जानने के लिए उन्होंने भारत तक की यात्रा की। गुजरात से होते हुए शहर पहुंची। वह पाणिनी शोध संस्थान में रहकर संस्कृत व्याकरण पर विशेष जोर दे रही है। रही है।
मिलता है परिजनों का सहयोग
मित्तल के माता-पिता मूलत: गुजरात के रहने वाले हैं। काफी साल पहले पिता अमेरिका के कैलिफोर्निया में जाकर बस गए। वहां वे कारोबार करते हैं। मित्तल ने बताया कि उनके माता-पिता ने शुरू से उसे सहयोग देते रहे हैं। भारतीय संस्कृति में गहरी स्र्चि होने की वजह से संस्कृत के लिए भी हमेशा ही प्रेरित किया है। इस वजह से कभी ये एहसास ही नहीं होता है कि वे घर से काफी दूर है।
पीएचडी कर करेंगी भाषा का काम
मित्तल अभी संस्कृत विषय लेकर बीए कर रही है। वहीं संस्कृत भाषा में पीएचडी करने की तमन्ना है। उनका कहना है कि पीएचडी करने के बाद संस्कृत और भारतीय दर्शन के लिए ही काम करना है। साथ ही अमेरिका में रहकर भाषा के विकास के लिए खास प्रोग्राम तैयार किया जाएगा। इससे दूर-दराज में रहने वाले लोगों को संसकृत भाषा में होने वाली दिक्कतें एक क्लिक में दूर हो सकेंगी और भाषा का भी प्रसार होगा।
हिन्दी में भी है कमान
संस्कृत के साथ ही हिन्दी में भी विशेष कमान है मित्तल की। उनका कहना है कि घर में भारतीय मूल्यों को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। साथ ही जब मिडिल ईस्ट में रह रहे थे तब वहां हमें स्कूल में हिन्दी पढ़ाया जाता था। साथ ही घर में भी हिन्दी बोलने पर जोर दिया जाता था। इस वजह से संस्कृत के साथ ही हिन्दी में भी कमान है।