बिलासपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर हम जिस तरह भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव धूम धाम से मनाते हैं ठीक वैसे ही हिंदू धर्म पर राधा जी का जन्मोत्सव भी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। प्रतिवर्ष कृष्ण जन्माष्टमी के 15 दिनों बाद राधाष्टमी मनाई जाती है। इस साल राधा अष्टमी चार सितंबर को मनाई जाएगी। बिलासपुर में इसे लेकर खास तैयारी की गई है। घर से लेकर मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना होगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज तिवारी ने बताया कि लोक मान्यता है कि राधा का जन्म वृषभानु और उनकी पत्नी कीर्ति (कमलवती) से हुआ था, जो गोकुल के पास रावल गांव में रहते थे। देवी राधा का जन्म माता के गर्भ में नहीं हुआ था, जबकि कीर्ति द्वारा देवी योगमाया की पूजा करने के बाद कन्या प्राप्ति हुई थी। राधा अष्टमी व्रत करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है और दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। पति पत्नी में प्रेम बना रहने से परिवार में भी शांति बनी रहती है।
राधा अष्टमी पर पूजा का शुभ मुहूर्त तीन सितंबर दोपहर 12 बजकर 28 मिनट से से शुरू होकर चार सितंबर की सुबह 10 बजकर 39 मिनट में समाप्त होगा। चूंकि उदय तिथि सनातन परंपरा में मान्य है, इस कारण से राधा अष्टमी रविवार चार सितंबर को मनाई जाएगी। शंकर नगर स्थित राधा कृष्ण मंदिर में सुबह सात बजे विशेष आरती होगी। इसी तरह श्याम मंदिर एवं वेंकटेश मंदिर में भी उत्सव मनाया जाएगा।
अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत
ज्योतिषाचार्य पंडित वासुदेव शर्मा के मुताबिक हिंदू धर्म में श्री कृष्ण को राधा जी के बगैर अधूरा माना गया है। राधा के साथ में श्रीकृष्ण की पूजा करने से दोहरा फल मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार राधा अष्टमी की पूजा करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अविवाहितों को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है। व्यक्ति के जीवन में हमेशा सुख-शांति बनी रहती है।
राधा अष्टमी पर ऐसे करें पूजन
शास्त्रों के अनुसार, राधा अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद तांबे या मिट्टी का कलश पूजन स्थल पर रखें और एक तांबे के पात्र में राधा जी की मूर्ति स्थापित करें। एक साफ चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड;ा बिछाएं। उसके ऊपर राधा रानी की प्रतिमा स्थापित करें। पंचामृत से स्नान करवाकर सुंदर वस्त्र पहनाकर दोनों का श्रंगार करें। फल-फूल और मिष्ठान अर्पित करें। इसके बाद राधा कृष्ण के मंत्रों का जाप करें, कथा सुने। साथ ही राधा कृष्ण की आरती अवश्य गाएं।