नईदुनिया न्यूज, बिलासपुर। जमीन की रजिस्ट्री के बाद पोर्टल से सीधे खरीदी के दस्तावेज तहसीलदार तक पहुंच जाता है। 23 दिनों में जमीन का नामांतरण कर देना है, लेकिन पटवारी इसे 90 दिन में पूरा करते हैं। अधिकांश मामले में पटवारी दस्तावेज में कमी का बहाना बनाकर इतना घुमाते हैं, पक्षकार की चप्पल भी घिस जाती है, आरोप यह भी लगते है कि बीना चढावा चढाए अधिकारी नामांतरण नहीं करते। जानकारों की मानें तो अधिकारी चौहद्दी या फिर ऐसी ऐसी आपत्ति लगाकर अधिकारी नामांतरण की प्रक्रिया में जानबूझकर रोके रखते हैं।
राज्य शासन के नामांतरण की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए कई निर्देश जारी किए हैं। इनमें से एक हैं, जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद नामांतारण के लिए रजिस्ट्री के दस्तावेज सीधे तहसीलदार के पास पंजीयक की आइडी से पहुंच जाएगा। दस्तावेज मिलने के बाद नामांतरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है प्रक्रिया के तहत तहसीलदार को 23 से 90 दिन में जमीन का नामांतरण करना है, लेकिन अधिकांश मामलो में तहसीलदार मामले को लटकाने के लिए ऐसी ऐसी आपत्ति दर्ज करवा देते हैं, नामांतरण का मामला कई बार एक साल या फिर सालों साल तक खींचते हैं। जानकारों की मानें तो नामांतरण के मामलों में लेटलतीफी होने के बाद भी शासन स्तर पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाती, इसके चलते तहसीलदार भी मामले के निराकरण को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।
क्या है नामांतरण की प्रक्रिया
जमीन की खरीदी बिक्री में केवल तीन ही दस्तावेज प्रमुख होते है खसरा नंबर, क्षेत्रफल व विक्रेता का नाम, यह तीनों अगर दस्तावेज में सही तरह से दर्ज है तो जमीन की रजिस्ट्री हो जाती है और नामांतरण भी इन्ही तीनों दस्तावेज के आधार पर ही किया जाता है। क्योंकि नामांतरण का उद्देश्य स्वामित्व का परिवर्तन होता है। जमीन की बिक्री होने के बाद जब पंजीयक की आइडी से तहसीलदार को दस्तावेज भेजा जाता है, इसके बाद तहसीलादर मामले में इस्तेहार निकालता है, जिनकी समय सीमा 15 दिन की होती है। 15 दिनों तक अगर कोई आपत्ति नहीं आती तो मामले में नामांतरण कर दिया जाता है।
एक्सपर्ट व्यू - संतोष पांडेय, अधिवक्ता, राजस्व प्रकरण के जानकार
नामांतरण के मामले में तथाकथित आपत्तियों के बारे में राजस्व विभाग से कोई अलग से गाइडलाइन जारी नहीं की गई है। यही कारण है कि किसी भी प्रकार की आपत्ति को आधार बनाकर तहसीलदार नामांतरण रोक देते हैं। निर्धारित समय के बाद भी प्रकरण समाप्त नहीं करते, इसके चलते सैकड़ों मामले पेंडिंग रहते हैं। इन मामलों में अज्ञापक दायित्व राज्य शासन को तय करना चाहिए जो अब तक नहीं किया गया है।
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रजिस्ट्री होने के बाद सीजी पोर्टल के माध्यम से पेपर तत्काल तहसीलदार की आइडी में भेज दिया जाता है। इन दस्तावेज के आधार पर नामांतरण की प्रक्रिया तहसीलदार को करनी है।
राजीव स्वर्णकार, जिला पंजीयक
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नामांतरण को लेकर मिले दस्तावेजों के आधार पर जमीन का चिन्हाकंन करने जब पटवारी पहुंचते हैं तो पता चलता है कि चौहद्दी गलत है। ऐसे मामले को कोर्ट में दर्ज कर लेते हैं। पक्षकार आए या न आए जमीन की स्थिति स्पष्ट न होने पर सीमांकन नहीं किया जाता। 90 दिनों का आप्शन होता है। विवाद की स्थिति में छह माह में निराकरण करना होता है।
मुकेश देवांगन, तहसीलदार बिलासपुर