शैलेंद्र ठाकुर, नईदुनिया, दंतेवाड़ा। अगर आप बस्तर में दंतेवाड़ा जिले की यात्रा कर रहे हैं, तो बैलाडिला की पहाड़ियों के बीच एक पवित्र स्थल है, जो आपको सीधा बादलों से जोड़ता है। समुद्र तल से लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह ढोलकल पहाड़ी भगवान गणेश का निवास स्थान है।
लोक कथाओं के अनुसार यह वही भूमि है, जहां भगवान गणेश और भगवान परशुराम के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था। इस युद्ध में परशुराम के फरसे से गणेशजी का एक दांत टूट गया और तभी से उनका नाम एकदंत पड़ा। इसी ऐतिहासिक घटना की याद में इस पहाड़ी के नीचे बसे गांव को आज भी फरसपाल के नाम से जाना जाता है।
बता दें कि ढोलकल की प्रतिमा अत्यंत अद्भुत है। यह मूर्ति 11वीं शताब्दी की मानी जाती है। इसे दक्षिण भारतीय शैली में ललितासन मुद्रा में काले चट्टान में उकेरा गया है। मूर्ति 36 इंच ऊंची तथा 19 इंच मोटी है। कहा जाता है कि छिंदक नागवंशी राजाओं ने इसे शिखर पर स्थापित कर इस स्मृति को अमर बनाया।
यहां के भोगामी आदिवासी अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा की महिला पुजारी से मानते हैं, जो इस आस्था को और भी गहरा बनाती है। ढोलकल तक की यात्रा अपने आप में एक रोमांच है। जैसे ही आप ढोलकर शिखर पर पहुंचेंगे। आपको दूर-दूर तक हरियाली से ढकी पहाड़ियां नजर आएंगी।
ढोलकल शिखर के बाईं तरफ की चट्टान पर कभी सूर्य मंदिर हुआ करता था, परंतु यहां के सूर्यदेव की मूर्ति अब गायब है। इस चट्टान के ठीक पीछे नंदी के डील जैसी आकृति वाला दूसरा शिखर है, जिसे नंदीराज कहते हैं।बैलाडीला क्षेत्रवासी इसे नंदराज कह पूजते हैं। नंदराज शिखर तक पहुंचना मुश्किल है, इसलिए इनकी आराधना करने वाले अधिकांश लोग सूर्य मंदिर की चट्टान पर खड़े होकर ही नंदराज का आह्वान करते हैं।
दंतेवाड़ा से लगभग 13 किलोमीटर दूर फरसपाल गांव तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। इसके बाद लगभग तीन किलोमीटर की पैदल चढ़ाई शुरू होती है, जहां घने जंगल, ठंडी हवाएं और चारों ओर फैले बादल यात्रियों का स्वागत करते हैं।
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शिखर पर पहुंचते ही गणेश जी की प्रतिमा और प्रकृति की सुंदरता मन को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है। वर्तमान में दंतेवाड़ा जिला प्रशासन इस पवित्र स्थल के विकास में जुटा है, ताकि श्रद्धालु और पर्यटक यहां आकर न केवल दर्शन कर सकें, बल्कि ढोलकल की पौराणिक गाथा और प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव भी ले सकें।