रामाधार यादव, धमतरी। 21 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी की अगुवाई में धमतरी जिले में ऐतिहासिक कंडेल नहर सत्याग्रह हुआ था। अंग्रेज सरकार के नहर से पानी चोरी के झूठे आरोप और सिंचाई टैक्स का किसानों ने विरोध किया था। इस सत्याग्रह के बाद अंग्रेजों को टैक्स वापस लेना पड़ा था।
इससे किसानों का आक्रोश बढ़ गया। कंडेल धमतरी जिले के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव का ग्राम है। उनकी अग्रवाई में बैठक कर किसानों ने आंदोलन का नेतृत्व गांधीजी को सौंपने पर निर्णय लिया।पंडित सुंदरलाल शर्मा गांधीजी को लेने कोलकाता गए। 20 दिसंबर 1920 को गांधी जी रायपुर पहुंचे। उनके साथ खिलाफत आंदोलन के प्रमुख नेता शौकत अली और मोहम्मद अली भी आए थे।
अली बंधुओं की माता भी साथ थीं। 21 दिसंबर 1920 को गांधी जी का धमतरी आगमन हुआ। धमतरी के मकई बंद चौक में गांधीजी का लोगों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। गांधी जी ने हुसैन बाड़ा में भाषण दिया। यहां भीड़ अधिक होने के कारण उमर सेठ नाम के व्यापारी ने गांधी जी को अपने कंधे पर उठाकर मंच तक पहुंचाया था। धमतरी के जमींदार बाजी राव कृदत्त ने नगरवासियों की ओर से गांधी जी को 501 रुपये की थैली भेंट की थी। तिलक फंड में गांधी को लोगों ने दिल खोलकर दान दिया था।
दीवाली में लिपाई के लिए गोबर नहीं मिला
ग्राम कंडेल निवासी 106 वर्षीय राम्हीन बाई ने पुरानी यादों को ताजा करते हुए बताया कि गांधी जी जब कंडेल आए थे, तब वह काफी छोटी थी। गांधी जी ग्राम भोथली की तरफ से गांव में आए थे। उस समय अंग्रेजों ने गांव के सारे मवेशियों को जब्त कर लिया था। नवंबर महीने में दीवाली त्योहार के दौरान गांव में लिपाई के गोबर तक नहीं थी। दूसरे गांव से गोबर लाना पड़ा था।
अंग्रेजों ने खुद नहर काटा और किसानों पर आरोप लगा दिया
ग्राम कंडेल के रिटायर्ड शिक्षक मुरहाराम कमलवंशी न बताया कि वर्ष 1920 के अगस्त में 19 तारीख को गांव में भारी बारिश हुई थी। खेत लबालब थे। इसके बावजूद अंग्रेजों के सिंचाई अधिकारी ने नहर काटकर खेतों में पानी बहाया और किसानों पर पानी चोरी का आरोप लगा दिया। किसानों ने इसका विरोध किया।
किसानों को प्रति एकड़ दो रूपए का जुर्माना ठोक दिया। कुल 4030 रुपये जुर्माना लगाया गया। इसकी वसूली के लिए गांव के सारे मवेशी जब्त कर लिए। जब्त मवेशियों को धमतरी के साप्ताहिक इतवारी बाजार में नीलामी के लिए लाया गया। नीलामी में कोई भी खरीददार नहीं आया। इसके बाद आसपास के जिलों में मवेशियों को नीलाम करने ले जाया गया, फिर भी कोई बोली लगाने वाला नहीं मिला।