गढ़डोंगरी में विराजमान है स्वयं-भू श्री गणेश, दूर-दूर से दर्शन करने पहुंचते हैं श्रद्घालु
गढ़डोंगरी में सैकड़ों साल पुराना स्वयंभू गणेश की प्रतिमा है। गणेश के मंदिर में दूर-दूर से श्रद्घालु दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं।
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Publish Date: Fri, 19 Oct 2018 04:04:31 AM (IST)
Updated Date: Fri, 19 Oct 2018 04:04:31 AM (IST)

नगरी। नईदुनिया न्यूज
गढ़डोंगरी में सैकड़ों साल पुराना स्वयंभू गणेश की प्रतिमा है। गणेश के मंदिर में दूर-दूर से श्रद्घालु दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं।
नगरी ब्लाक मुख्यालय से 20 किसी की दूरी पर ग्राम गढडोंगरी में स्थित है, जहां स्वयंभू श्री गणेश का मंदिर है। ग्रामीणों का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण 1600 ईसवीं के आसपास मालगुजार स्व.वनसिंह ठाकुर ने कराया था। ग्रामीण डीकेश दीवान के मुताबिक उनकी माता ने बताया कि जब वे बाल्यावस्था में थी, तब से इस मंदिर में भगवान गणपति के दर्शन के लिए आ रही हैं। मंदिर के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार अंग्रेजी शासनकाल में मालगुजार ठाकुर वन सिंह शिकार खेलने के लिए जंगल गए थे। जंगली जानवरों का पीछा करते-करते उनका पांव एक नुकीली पत्थर से टकरा गया और वे जख्मी हो गए। खून बहने लगा। उन्होंने पत्थर को हटाने का काफी प्रयास किया। लेकिन पत्थर को टस से मस नहीं कर पाए। थक हारकर वे घर पहुंचे और गहरी निद्रा में सो गए। तब गणेशजी ने उन्हें सपनों में दर्शन देकर कहा कि जिस पत्थर से तुम जख्मी हुए हो, उसमें मेरा वास है। दूसरे दिन सुबह मालगुजार ने स्वप्न की बात ग्रामीणों को बताई। तब उस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया। कहते हैं की सच्चे मन से जो कोई भी यहां प्रार्थना करता है, उसकी प्रार्थना जरूर पूरी होती है। मंदिर के पुजारी पुरोहित प्रसाद पांडे ने बताया कि गणेश चतुर्थी के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना का आयोजन किया जाता है। ग्रामवासियों के अनुसार मंदिर के पास स्थित एक वृक्ष के खोल में साँप व मेंढक एक साथ निवास करते हैं, कई भक्तों ने इनके दर्शन भी किये हैं।