धमतरी। गौशाला मैदान में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञानयज्ञ कथा में कथावाचिका प्राची देवी ने कहा कि कलयुग में केवल भगवान का नाम ही आधार है। वरदान की वजह से भगवान ने हिरण्यकश्यप का नरसिंह अवतार लेकर पुरुषोत्तम माह में वध किया। भगवान का नाम सुनकर गर्भ में पल रहे प्रहलाद भी भगवान श्री हरि के बहुत बड़े भक्त हुए। कथा का आयोजन माधव भैय्याजी राव पवार परिवर द्वारा किया गया है।
प्राची देवी जी ने आगे कहा कि काशी में भगवान शिव जी निवासरत हैं। जहां मृत्यु होने पर व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मोक्ष के साथ वह देवधाम गमन करता है। जब इसका कारण शिवजी से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह मेरे प्रभाव से नहीं बल्कि भगवान श्री हरि के प्रभाव से होता है। वे स्वयं श्री हरि का जाप करते हैं। भगवान की वजह से ही काशी मोक्षदायिनी नगरी बनी हुई है। भगवान को जिस रुप में भी सुमिरन किया जाए वे उसी रुप में मिलते हैं। गोपियों ने श्री कृष्ण को प्रेमी के रुप में पूजा, कंस ने भय की वजह से कृष्ण को याद किया। शिशुपाल और दंतवक्र ने जलन, ईर्ष्या और द्वेषवश याद किया। यदुवंशियों ने नाता-रिश्ता मानकर उन्हें याद किया। माधव को जिस भी रुप में याद करो वे आकर भक्तों का कल्याण ही करते हैं।
प्रहलाद की कथा सुनाते हुए प्राची देवी जी ने बताया कि हिरण्यकश्यप अपनी पत्नी कयादु से कहा कि वे तप करने जा रहे हैं। वापसी तय नहीं है। इधर हिरण्यकश्यप तप करने जिस भी पेड़ के नीचे बैठते वहां एक तोता आकर नारायण -नारायण रटने लगता, जबकि हिरण्यकश्यप ब्रम्हा जी को प्रसन्ना करने तप कर रहे थे। परेशान होकर वे लौट आए और पत्नी को सारा वृतांत बताया। पत्नी कयादु बार-बार अपने पति से पूछती तोता ने क्या कहा। इस तरह हिरण्यकश्यप के मुख से कयादु ने 108 बार नारायण का नाम बोलवा लिया। पत्नी के बारे में कहा जाता है कि जो हमेशा तनी रहे। जबकि वास्तव में पत्नी पतन के मार्ग पर जाने से पति को बचाती है। कयादु ने भी अपने पति को बचाने की कोशिश की। हिरण्यकश्यप अपनी पत्नी को गर्भावस्था में छोड़कर फिर तप के लिए निकल गए। यह बात जब इन्द्र को मालूम हुई तो उन्होंने सोचा फिर एक बड़ा राक्षस पैदा होगा। यही सोचकर वे कयादु को मारने पहुंच गए, लेकिन नारद ने समझाया कि उनके गर्भ में भगवान का एक बड़ा भक्त पल रहा है, तब इन्द्र परिक्रमा कर लौट गए। इधर नारद कयादु को अपने आश्रम ले आए तथा श्री हरि का कीर्तन सुनाने लगे, जिसे गर्भ में प्रहलाद भी सुनता रहा और इस तरह वे बहुत बड़े भक्त हुए। हिरण्यकश्यप अपने बेटे के मुख से नारायण-नारायण सुनकर बहुत कुपित हुए तथा उसे मारने का उपाय करने लगे। यहां तक कि उनकी बहन होलिका भी भस्म हो गई लेकिन प्रहलाद का बाल बाका भी नहीं हुआ। अंत में गोधुली बेला में पुरुषोत्तम माह में भगवान जर्नादन नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया। अंत में प्रहलाद ने भगवान से भक्ति का वरदान मांगा। भगवान श्री कृष्ण जन्म की कथा सुनकर श्रोता भाव-विभोर हो गए। कथा स्थल पर काफी संख्या में महिला-पुरूष व अन्य लोग मौजूद थे।