
नईदुनिया न्यूज, गरियाबंद। प्रदेश में धान खरीदी सीजन के दौरान हड़ताल के कारण उत्पन्न संकट ने 90 युवाओं के भविष्य को संकट में डाल दिया है। राज्य सरकार के निर्देश पर आपातकाल में भर्ती किए गए इन कंप्यूटर ऑपरेटरों को, तीन साल तक काम देने के मौखिक आश्वासन के बावजूद, केवल 10 दिन में ही सेवा से हटा दिया गया है।
अपनी स्थायी नौकरियों को छोड़कर आए ये युवा अब न्याय की तलाश में कलेक्टर कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं।यह मामला तब शुरू हुआ जब धान खरीदी के महत्वपूर्ण समय में प्रबंधक और कंप्यूटर ऑपरेटर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। धान खरीदी व्यवस्था को सुचारु रखने के लिए राज्य शासन ने सभी जिलों में नई भर्तियां कीं। इसी क्रम में, गरियाबंद जिले के 90 खरीदी केंद्रों के लिए 90 युवाओं का चयन किया गया।
प्रशासन ने इन युवाओं को स्पष्ट मौखिक आश्वासन दिया था कि उन्हें प्रारंभ में एक साल के लिए काम पर रखा जाएगा, जिसे बाद में बढ़ाया जाएगा। इस आश्वासन पर भरोसा करके कई युवाओं ने अपनी स्थायी नौकरियां छोड़ दीं।खुशबू यादव (देवभोग) ने अपनी 12 हजार प्रति माह वाली नरेगा ऑपरेटर की नौकरी छोड़ी। इमरान कुरैशी ने अपनी 10 हजार प्रति माह वाली शिक्षण नौकरी छोड़ दी।
गोपी वर्मा ने रायपुर की 25 हजार की एनजीओ की नौकरी ठुकराकर 18 हजार की नई नौकरी स्वीकार की, ताकि अपने परिवार के साथ गरियाबंद में रह सकें। लेकिन अब शासन के इस आदेश के बाद उनके सामने राशन पानी की समस्या खड़ी हो गई है। इन युवाओं ने ट्रेनिंग, डॉक्यूमेंटेशन और 10 दिन की ड्यूटी में 7 से 10 हजार तक खर्च किए, लेकिन जब पुराने ऑपरेटर लौटे, तो उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के हटा दिया गया।
युवा ऑपरेटरों का कहना है कि भर्ती के समय कलेक्टर से लेकर डीएमओ तक ने उन्हें मौखिक गारंटी दी थी कि उन्हें नौकरी छोड़ने का कोई नुकसान नहीं होगा। जब गरियाबंद कलेक्टर से संपर्क किया गया, तो उन्होंने कहा कि इन युवाओं का अनुबंध मार्कफेड के साथ था और इन्हें हटाने का आदेश राज्य शासन से आया है। कलेक्टर ने स्पष्ट किया कि इस मामले में अंतिम निर्णय राज्य शासन द्वारा ही लिया जाएगा।
इन 90 युवाओं का भविष्य अब अधर में है। वे कलेक्टर कार्यालय के बाहर इकट्ठा होकर न्याय की गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य शासन को उन युवाओं के नुकसान की भरपाई करनी चाहिए जिन्होंने सरकारी आश्वासन पर भरोसा करके अपनी सुरक्षित नौकरियां छोड़ीं। उन्होंने मांग की है कि या तो उन्हें तीन साल के अनुबंध के अनुसार काम दिया जाए, या फिर उनकी आर्थिक क्षतिपूर्ति की जाए।