बस्तर का 95 प्रतिशत हिस्सा माओवादी हिंसकों से मुक्त, अबूझमाड़ में जंगल-पहाड़ों को चीरकर बनाई जा रही सड़क
वर्ष 2025 बस्तर में माओवादी हिंसा के खिलाफ निर्णायक साबित हुआ। सुरक्षा बलों की सटीक रणनीति से बस्तर का 95 प्रतिशत हिस्सा हिंसा से मुक्त हो चुका है। शी ...और पढ़ें
Publish Date: Sun, 28 Dec 2025 10:04:05 AM (IST)Updated Date: Sun, 28 Dec 2025 10:04:05 AM (IST)
बस्तर में माओवादी हिंसक आंदोलन खत्म होने की कगार पर है। (फाइल फोटो)HighLights
- 2025 बना बस्तर में माओवादी हिंसा के अंत का टर्निंग प्वाइंट
- बस्तर का 95 प्रतिशत क्षेत्र माओवादी प्रभाव से पूरी तरह मुक्त
- शीर्ष माओवादी नेतृत्व ढहा, संगठन की रीढ़ टूटी
अनिमेष पाल, नईदुनिया प्रतिनिधि, जगदलपुर। जिस बस्तर में कभी माओवादी हिंसक समानांतर सरकार चलाने का दावा करते थे और संभागीय मुख्यालय जगदलपुर के करीब तक उनकी पकड़ थी, आज वही बस्तर निर्णायक बदलाव के दौर से गुजर रहा है।
वर्ष 2025 का जब समापन हो रहा है, बस्तर का 95 प्रतिशत हिस्सा माओवादी हिंसा से मुक्त करा लिया गया है। कभी पूरे संभाग में फैला माओवादी प्रभाव अब सिमटकर महज 650 से 750 वर्ग किलोमीटर, यानी बस्तर के कुल क्षेत्रफल के लगभग पांच प्रतिशत हिस्से तक सिमट कर रह गया है।
वर्ष 2005 से 2015 के बीच संभागीय मुख्यालय को छोड़कर लगभग पूरा बस्तर माओवादियों का गढ़ माना जाता था। आज स्थिति यह है कि सुकमा–बीजापुर सीमा के पामेड़-जगरगुंडा, बासागुड़ा जंक्शन के रासपल्ली, इरापल्ली और बोटेतुंग, तेलंगाना सीमा से सटी कर्रेगुट्टा की पहाड़ी तथा अबूझमाड़ से लगे इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान के कुछ सीमित और दुर्गम इलाकों को छोड़ दें, तो बस्तर में माओवादियों का कोई सुरक्षित ठिकाना शेष नहीं रह गया है। शेष बचे इन क्षेत्रों में भी सुरक्षा बलों की पहुंच अब प्रभावी और लगातार बनी हुई है।
अंतिम चरण में नक्सल आंदोलन
- तीन वर्ष पहले सुकमा जिले के टेकुलगुड़ेम में हुए माओवादी हमले के बाद जब सुरक्षा बलों ने माओवादी हिंसा के समूल सफाए का लक्ष्य तय किया था, तब बहुतों को इस पर भरोसा नहीं था। लेकिन वर्ष 2025 ने इस संघर्ष को निर्णायक दिशा दे दी। अब जबकि वर्ष 2025 समाप्ति की ओर है, बस्तर में माओवादी संगठन की रीढ़ टूट चुकी है, नेतृत्व ढह चुका है और चार दशक पुराना माओवादी आंदोलन समाप्ति की कगार पर खड़ा दिखाई दे रहा है।
- माओवादी हिंसा के विरुद्ध चलाया गया यह अभियान वर्ष 2025 में ‘टर्निंग प्वाइंट’ सिद्ध हुआ है। दशकों से अभेद्य माने जाने वाले माओवादी किले न केवल दरके हैं, बल्कि संगठन का वैचारिक और सैन्य नेतृत्व भी बिखर गया है। छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने माओवाद के सबसे सुरक्षित माने जाने वाले ‘कोर एरिया’ में घुसकर उनके थिंक-टैंक का सफाया कर दिया है।
इसके साथ ही बस्तर में सुरक्षा बलों की भूमिका केवल संघर्ष तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि वे अब निर्माण और विकास के वाहक बनते जा रहे हैं। बस्तर में जहां कभी माओवादियों की कथित जनअदालतें लगती थीं, वहां आज बैंक, स्कूल, राशन दुकानें और आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हो रहे हैं। एक-एक कर ढहा माओवादी नेतृत्व
- वर्ष 2025 की सबसे बड़ी रणनीतिक उपलब्धि माओवादी संगठन के शीर्ष नेतृत्व का सफाया रही है। संगठन का सबसे बड़ा रणनीतिकार और महासचिव बसवा राजू 21 मई 2025 को नारायणपुर के जंगलों में मारा गया। दशकों तक सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बना और कई बड़े हमलों का मास्टरमाइंड हिड़मा 18 नवंबर को आंध्र प्रदेश में मारा गया। इसके अलावा जयराम, थेंटू लक्ष्मी और राजू सहित 11 से अधिक पोलित ब्यूरो और केंद्रीय समिति स्तर के कमांडरों के खात्मे ने माओवादी कैडर को पूरी तरह दिशाहीन कर दिया है।
- सुंदरराज पट्टिलिंगम, आइजी बस्तर रेंज ने कहा कि मार्च 2026 तक वामपंथी उग्रवाद के पूर्ण उन्मूलन के लिए सुरक्षा बल प्रतिबद्ध है। बस्तर का लगभग 95 प्रतिशत भूभाग माओवादियों से मुक्त करा लिया गया है। सटीक आसूचना आधारित अभियानों और आत्मसमर्पण-पुनर्वास पर समान जोर से माओवादियों की ताकत, आधार क्षेत्र और हथियार भंडार में भारी कमी आई है। पुनर्वास नीति जीवन में एक बार का अवसर है-समय रहते हिंसा त्यागें, अन्यथा अंतिम चरण की कार्रवाई का सामना
आंकड़ों में ढहता माओवादी किला
- 1,562 माओवादियों ने बंदूकें छोड़ी, जो पिछले वर्ष (792) की तुलना में दोगुना है।
- 665 आधुनिक हथियार बरामद किए गए, जिनमें 42 एके-47 और 47 इंसास राइफलें शामिल हैं।
- 875 आइईडी खोजकर निष्क्रिय किए गए, बस्तर की धरती धमाकों से मुक्त हुई।
- 210 माओवादियों का सामूहिक सशस्त्र समर्पण बस्तर के बदलते मानस का सबसे बड़ा प्रमाण बना।
- 52 नए सुरक्षा कैंप अब केवल सैन्य चौकियां नहीं हैं। ये कैंप ‘इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट सेंटर’ के रूप में कार्य कर रहे हैं।
वर्तमान में सक्रिय शीर्ष माओवादी
पोलित ब्यूरो सदस्य
- थिप्परी तिरुपति उर्फ देवजी-प्रभारी सेंट्रल मिलिट्री कमिशन
- मुपल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति-सलाहकार (भाकपा माओवादी)
- मिसिर बेसरा-प्रभारी ईआरबी मिलिट्री
केंद्रीय समिति सदस्य
- अनल दा उर्फ तुफान-सचिव बिहार-झारखंड स्पेशल जोनल कमेटी
- मल्लाराजी रेड्डी उर्फ सागर उर्फ संग्राम- प्रभारी ओडिशा स्टेट कमेटी
बस्तर में सक्रिय डीकेएसजेडसी माओवादी
- सुजाता उर्फ अल्लुरी कृष्णाकुमार-प्रभारी माड़ डिविजन
- रवि उर्फ भास्कर उर्फ पड़कल वीरू-प्रभारी गढ़चिरौली डिविजन
- नुने नरसिम्हा रेड्डी उर्फ सन्नू दादा-प्रभारी पीएलजीए बटालियन राजनीतिक
- पापाराव कुड़ाम उर्फ मंगू-सचिव पश्चिम बस्तर डिविजन
- मंगतु उर्फ लाल सिंह-सचिव कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट
- हेमला देवल उर्फ बारसे देवा-प्रभारी बटालियन नंबर-1
इस वर्ष मारे गए शीर्ष माओवादी
पोलित ब्यूरो सदस्य
21 मई-बसवा राजू उर्फ नंबाला केशवा राव भाकपा माओवादी महासचिव
केन्द्रीय कमेटी सदस्य
- 19 जनवरी-जयराम उर्फ चलपति उर्फ जयराम रेड्डी
- 21 अप्रैल-विवेक उर्फ प्रयाग मांझी
- 05 जून-थेंटू लक्ष्मी उर्फ नरसिम्हा चालम
- 18 जून-गजराला रवि उर्फ उदय
- 11 सितंबर-मनोज उर्फ मोडेम बालकृष्णन
- 14 सितंबर सितंबर-सहदेव सोरेन उर्फ प्रयाग दा
- 22 सितंबर: राजू उर्फ कट्टा रामचन्द्र रेड्डी
- 22 सितंबर: कोसा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी
- 18 दिसंबर: माड़वी हिड़मा
- 25 दिसंबर: पाका हनुमन्थलू गणेश उईके
(इनके अलावा पांच डीकेएसजेडसी सदस्य माओवादी भी मारे गए)
अत्मसमर्पित शीर्ष माओवादी
- मल्लोजुला वेणु गोपाल उर्फ भूपति-पोलित ब्यूरो सदस्य
- पुल्लरी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना-सेंट्रल कमेटी सदस्य
- रामदेर उर्फ सोमा-सेन्ट्रल कमेटी सदस्य
- तक्कालापल्ली वासुदेव राव उर्फ सतीश-सेन्ट्रल कमेटी सदस्य
- पोथुला पदमावती उर्फ सुजाता उर्फ कल्पना-सेन्ट्रल कमेटी सदस्य
(इनके अलावा 12 डीकेएसजेडसी सदस्य माओवादी भी मुख्यधारा में लौटे)