विनोद सिंह/जगदलपुरl Ram Devotee Professor BL Jha: प्रोफेसर (डा.) बीएल झा शहर का चर्चित नाम है। वे शिक्षाविद्, रामकथा शिरोमणि आदि अनेकानेक उपाधियों से विभूषित हैं। 97 वर्ष की आयु पूरी कर चुके प्रोफेसर झा का शरीर बढ़ती उम्र के साथ भले ही कमजोर हो रहा है, लेकिन उनके मजबूत इरादे ज्यों के त्यों बने हुए हैं। इस उम्र में भी उनका अधिकांश समय निज निवास के पुस्तकालय में ही बीतता है।
वह अपने मन में बीते 31 सालों से भगवान रामलला के लिए अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का सपना पूरे होने की इच्छा संजोए हुए जीवन व्यतीत करते आ रहे हैं। अब जब अयोध्या में नवनिर्मित राममंदिर में रामलला के विराजमान होने का समय नजदीक आ गया है। प्रोफेसर झा का मन भी अयोध्या जाने को कर रहा है। वह स्वरचित राम कथा की प्रति भगवान रामलला को भेंट करना चाहते हैं।
वाल्मीकि रामायण पर आधारित पद्यमय रचना संग्रह प्रोफेसर झा के शब्दों में भावानुवाद है। सात खंडों में 1,372 पेज की रामकथा की रचना करने का संकल्प उन्होंने वर्ष 1986 में लिया था लेकिन संकल्प को पूरा करने लेखन कार्य की शुरुआत उन्होंने इंडोनेशिया से लौटकर वर्ष 1992 में की। दो साल के भीतर ही उन्होंने रामकथा की रचना पूरी कर ली। इसके आठ साल बाद इसका प्रकाशन कराया।
अपने निज निवास पर नईदुनिया से चर्चा करते हुए प्रोफेसर झा बताते हैं कि सरकारी सेवा से निवृत्त होने के बाद वे विश्व हिंदू परिषद से जुड़ गए थे। परिषद ने 1992 में उन्होंने रामकथा के प्रचार-प्रसार के लिए इंडोनेशिया भेजा था। वहां बाली द्वीप में पांच माह थे और वहीं पर उन्होंने तय कर लिया था कि रामकथा की रचना का अपना संकल्प पूरा करने स्वदेश लौटते ही रम जाएंगे।
उन्होंने बताया कि आज तक वह अयोध्या नहीं गए हैं, शायद रामलला का बुलावा नहीं था क्योंकि उनके वहां रहने का खुद का स्थायी ठिकाना नहीं था। अगले माह नए मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा होने जा रही है। देश भर से उनके भक्त वहां पहुंचेंगे। वह भी चाहते हैं कि एक बार वहां जरूर जाएं और रामलला को रामकथा भेंट का आएं।
प्रोफेसर बीएल झा के पूर्वज मिथिलांचल से पहले दक्षिण महाकौशल (मध्य छत्तीसगढ़) और फिर दंडकारण्य (वर्तमान बस्तर) में आकर बसे थे। एक नवंबर 1926 को जन्मे प्रोफेसर झा शहर के विजय वार्ड में रहते हैं। शैक्षिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और धार्मिक आध्यात्मिक गतिविधियों में रुचि रखने वाले प्रोफेसर झा 22 सालों तक महाविद्यालयों में प्राचार्य पद पर काम किया।
हिंदी, अंग्रेजी, इतिहास और शिक्षा शास्त्र आदि विषयों में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त झा ने एलएलबी, साहित्यरत्न और डी लिट उपाधियां भी प्राप्त की। उन्हें रामकथा शिरोमणि का उपनाम भी दिया गया है। उन्होंने पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर आयोजित कई राष्ट्रीय और अंतररष्ट्रीय सम्मेलनों में देश-विदेश में भाग लिया। देशी-विदेशी भाषाओं के अध्ययन में भी उनकी गहरी रुचि है। हिंदी के प्रचार-प्रसार में भी उन्होंने काफी काम किया है। उन्होंने वाल्मिकी रामायण पर शोध कार्य भी किया है।