
रीतेश पांडेय, नईदुनिया, जगदलपुर: बस्तर के सिरहा-गुनिया और गायता-पेरमा (आध्यात्म व औषधी उपचार के जानकार) सैकड़ों वर्षो से पारंपरिक औषधियों से लोगों के उपचार में पारंगत रहे हैं। यह ज्ञान उन्हें पुरखों से विरासत में प्राप्त हुआ है।
भानपुरी क्षेत्र में वनों की अंधाधुंध कटाई और कोचियाओं के सहयोग से वनौषधियों की तस्करी हो रही थी। जिससे दुर्लभ औषधियां विलुप्ति के कगार पर आ गई। फरसागुड़ा निवासी माटी पुजारी प्रेमसागर पंत ने इसे लेकर वन विभाग को शिकायत की लेकिन कोई पहल नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने दुर्लभ औषधियों के संरक्षण के लिए नई पीढ़ी को संवाहक बनाने के ध्येय से लोगों को जागरूक करने की सोची। पांच ग्रामीणों की मदद से सिरहा-गुनिया संघ का गठन किया।
उन्होंने बताया कि ग्रामीणों की मदद से उन्होंने जनजागरण अभियान की शुरूआत कोंडागांव के मर्दापाल से की थी। बीजापुर जिले के सुदूर गांवों तक पहुंचकर वे सिरहा-गुनिया, गायता व पेरमा की बैठकें लेकर उन्हें वनौषधियों के संरक्षण के लिए जागरूक व प्रेरित कर रहे हैं। अब तक उनके संगठन से 265 सिरहा व वैद्य जुड़ चुके हैं।
बस्तर में पारंपरिक चिकित्सा विधि से सिरहा व गुनिया असाध्य रोगों का निशुल्क व सेवाभावना से उपचार करते रहे हैं। बस्तर के कुछ वैद्य को राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा गया है। सिरहागुनिया संगठन के संस्थापक माटी पुजारी प्रेम सागर पंत कहते हैं कि उनके दादा-परदादा के समय से वनौषधियों से किडनी में सूजन, लीवर संबंधी रोग, कर्क रोग कैंसर, हड्डी संबंधी रोग, टीबी, महिलाओं का सामान्य प्रसव समेत कई असाध्य रोगों के लिए उपचार करने की परंपरा चल रही है।
पंत के अनुसार पहले जंगल से वनष्पति से उसे औषधि रूप से ले जाने की अनुमति लेकर जड़ी-बूटी लाई जाती है। उसका शोधन किया जाता है। फिर उनकी कुलदेवी की आराधना कर अभिमंत्रति कर तैयार दवा मरीज को दी जाती है। इसकी एवज में केवल नारियल व अगरबत्ती के सिवाय कुछ नहीं मांगते। अगर स्वेच्छा से मरीज कुछ देना चाहें तो मना भी नहीं करते।
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया
पंत की कहानी इस शेर को चरितार्थ करती है। पंत ने बताया कि उनके गांव के आसपास दुर्लभ वनौषधियां अग्निशिखा (जिसे स्थानीय बोली में झगड़हीन कांदा कहते हैं), कुरमाजड़ी, रसना जड़ी, पाताल कुमडा,तेजराल, विदारीकन्द, हाथी कंद, कुरवा जड़ी, भेलवा जड़ी, जंगली हाड़ सिंगार, शतावरी, जंगली आंवला, भुई लीम , ढाई गढ़वा,पेंड्रा, चोक चीनी, बन ककोड़ा, बाराही कंद, कड़मता, कुलिया कंद, धन सूली आदि बहुतायत में थे।
धीरे-धीरे वनों की अवैध कटाई समेत दुर्लभ पौधों की तस्करी भी बड़े पैमाने पर शुरू हुई। उन्होंने इस बारे में उन्होंने वन विभाग व जनप्रतिनिधियों से शिकायत की पर कोई कार्रवाई न हुई। फिर अपनी तरह आसपास के गांव के सिरहा-गुनिया, गायता, पेरमा कुल पांच लोगों को जोड़कर सिरहागुनिया संघ बनाया। जनजागरण की शुरूआत हुई।
आज के दिन कोंडागांव से लेकर बीजापुर जिले के अंदरूनी गांवों तक आज 265 सिरहा व वैद्य जुड़ चुके हैं। संगठन लगातार संभाग में दौरा कर लोगों को औषधीय पौधों को बचाने जंगल की कटाई रोकने प्रेरित कर रहा है। उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भी चिठ्ठी लिखकर वनौषधियों के संरक्षण की मांग की है।
पंत ने बताया कि उनके क्षेत्र में कुछ मिशनरी वाले अशिक्षा का लाभ उठाकर ग्रामीणों को बीमारी ठीक करने, आर्थिक प्रलोभन देकर एवं हिंदु देवी-देवताओं के विरूद्ध भ्रम फैलाकर मतांतरण करवा रहे थे। वे प्रयेर कर असाध्य रोगों को ठीक करने का दावा भी करते थे। उनके समूह ने सैकड़ों बरसों से चली आ रही जनजातीय परंपराओं का बचाने लोगों को समझाश देना शुरू किया। इसका परिणाम यह हुआ कि आधे दर्जन परिवार वापस अपने घर लौटे हैं। अब गांव में इस प्रकार के पादरियों को प्रवेश नही करने दिया जा रहा।
पारंपरिक चिकित्सका पर आधारित डब्ल्यूएचओ वैश्विक शिखर सम्मेलन समापन समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी ने उनके अभिभाषण में कहा था कि 'पारंपरिक चिकित्सा केवल एक धरोहर नहीं, वरन आज की वैश्विक स्वास्थ्य जरूरतों का प्रभाव व वैज्ञानिक विकल्प है भारत दुनिया को स्वास्थ्य के नए समाधान देने तैयार है।'