अनिमेष पाल, नईदुनिया, जगदलपुर: चार दशकों से सशस्त्र आंदोलन चला रहे भाकपा (माओवादी) संगठन में पहली बार शीर्ष स्तर पर खुली फूट सामने आई है। संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य और केंद्रीय समिति के प्रवक्ता मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ अभय, भूपति, सोनू ने हाल ही में आधिकारिक पत्र जारी कर एक माह के लिए संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए शांति वार्ता का प्रस्ताव रखा था। इसके साथ ही उन्होंने अपने व्यक्तिगत पत्र में स्वीकार किया कि हथियार उठाना संगठन की सबसे बड़ी भूल थी और इस गलती के लिए उन्होंने जनता से माफी भी मांगी।
सोनू की इस घोषणा ने माओवादी संगठन में भारी हलचल मचा दी। अधीनस्थ तेलंगाना स्टेट कमेटी ने तत्काल पत्र जारी कर इसे प्रवक्ता की निजी राय बताते हुए खारिज कर दिया। समिति के प्रतिनिधि जगन ने साफ कहा कि यह पार्टी का आधिकारिक निर्णय नहीं है, बल्कि इससे संगठन में अनावश्यक भ्रम और अस्थिरता फैल रही है। यह पहली बार है जब केंद्रीय समिति के प्रवक्ता की ओर से जारी घोषणा का अधीनस्थ इकाई ने सार्वजनिक रूप से विरोध किया है।
माओवादी संगठन की यह आंतरिक खींचतान ऐसे समय में उजागर हुई है जब लगातार नेतृत्व हानि और सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों से संगठन बुरी तरह कमजोर हो चुका है। 21 मई को एक बड़े हमले में महासचिव समेत 28 कैडर मारे गए। इसके बाद जून से सितंबर के बीच केंद्रीय समिति के सदस्य उदय उर्फ गजरला रवि, मोडेम बालकृष्ण और झारखंड के प्रवेश सोरेन जैसे कई बड़े नेता मारे गए। एक करोड़ रुपये की इनामी केंद्रीय समिति सदस्य सुजाता, कमलेश समेत कुछ वरिष्ठ माओवादी बीमारी और दबाव के चलते आत्मसमर्पण तक कर चुके हैं।
केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि मार्च 2026 तक माओवादी आंदोलन का पूरी तरह सफाया किया जाएगा। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बड़े पैमाने पर सैन्य अभियान, गिरफ्तारी और सुरक्षा शिविरों की स्थापना का रोडमैप तैयार किया है। इसी पृष्ठभूमि में सोनू की ओर से संघर्ष विराम और वार्ता का प्रस्ताव आया, जिसे कुछ सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों ने सकारात्मक बताया। हालांकि सरकार 2004 की वार्ता के अनुभव को देखते हुए ढील देने के मूड में नहीं है और अभियान पूरी ताकत से जारी रखे हुए है।
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तेलंगाना स्टेट कमेटी की ओर से सोनू के पत्र का विरोध इस बात का प्रमाण है कि संगठन भीतर से बिखर चुका है। लगातार नेतृत्व क्षति ने इसकी नीतिगत दिशा समाप्त कर दी है और अब यह केवल बंदूक के दम पर वसूली करने वाला गिरोह बनकर रह गया है। सुरक्षा बल अब मजबूत स्थिति में हैं और माओवादी प्रभाव वाले इलाकों में गहरी पैठ बना चुके हैं। अब माओवादियों के सामने विकल्प सीमित हैं या तो आत्मसमर्पण करें या मुठभेड़ में खत्म हो जाएं।
-सुंदरराज पी.,आइजीपी, बस्तर रेंज