
पवन शाह
दोरनापाल। नईदुनिया
सरकार भले ही अंतिम व्यक्ति तक विकास की योजनाओं को पहुंचाने की हर संभव कोशिश करती हो पर जिले के अंदरूनी इलाकों में विकास लोगों से कोसों दूर है। सड़क हो या शिक्षा हो या फिर पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं से ग्रामीण आज भी महरूम हैं। माओवाद प्रभावित होने के कारण सरपंच-सचिव जैसे सरकारी मुलाजिमों ने भी गांव से दूरी बना ली और पेंशन से लेकर ग्रामीण रोजगारमूलक योजनाओं पर ग्रहण लग गया हैं। संवेदनशील क्षेत्र होने का हवाला देकर सरकार ने भी इन इलाकों को भगवान भरोसे छोड़ दिया जिसके बाद खुद ग्रामीणों ने विकास करने की फैसला लिया है।
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीण श्रमदान कर गली-मोहल्ले में सड़क बनाने का काम रहे है। सुकमा जिले के कोंटा विकासखण्ड के पालामड़गू, जग्गावरम, कोलाईगुड़ा, दंतेशपुरम, डब्बाकोंटा समेत दर्जनभर से भी ज्यादा गांवों में ग्रामीण मिटटी की सड़क बना रहे हैं। नईदुनिया से पालामड़गु और जग्गावरम के ग्रामीणों ने नक्सल प्रभाव इलाका होने के कारण अखबार में फोटो व नाम न छापने के शर्त पर बताया्र कि गांव तक पहुंच मार्ग नहीं है, पगडंडियों के सहारे ग्रामीण आवागमन करते हैं। अगर ग्रामीणों की माने तो उनके अनुसार प्रशासन के मुलाजिमों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक लगातार हर किसी के सामने अपनी फरियाद लगाने के बाद जब गांव में कार्य नहीं हुए तो ग्रामीणों ने खुद ही सड़क बनाने का जिम्मा उठा लिया। शासन व प्रशासन की इस उदासीनता का जवाब ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार करके देने का फैसला किया है।
पंचायत तक भी नही पहुंचते सरपंच-सचिव
कोंटा विकासखण्ड के 58 ग्राम पंचायतों में 90 फीसद सरपंच-सचिव ब्लॉक मुख्यालय या जिला मुख्यालय से ही पंचायती राज का संचालन कर रहे हैं॥कई ऐसे भी पंचायत हैं जहां सरपंच व सचिवों ने तो पंचायत के दर्शन तक नहीं किया है। जग्गावरम गांव में करीब 85 घर है। गांव में एक भी पीएम आवास नहीं है, हैंडपंप है लेकिन शुद्ध पेयजल नसीब नहीं। पीएम आवास नहीं होने के सवाल पर ग्रामीणों के थोड़ी देर चुप्पी साध ली फिर दबी आवाज में बताया कि नक्सलियों ने मना किया है। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में सचिव, शिक्षक और स्वास्थ्यकर्मियों के आने में नक्सलियों द्वारा पर प्रतिबंध नहीं है।
15 सरपंच निर्विरोध चुने गए
कोंटा विकासखण्ड के 58 ग्राम पंचायतों में 15 सरपंच निर्विरोध चुने गए हैं। इनमें कुंदेड़, दुलेड़, केरलापेंदा, कोंण्डसांवाली, सिंलगेर, तारलागुड़ा, गोंदपल्ली, सुरपनगुड़ा, गुमोड़ी, रामाराम, करीगुंडम, एलमागुंडा, भेज्जी, गोगुंडा, और नागलगुंडा शामिल हैं। यहां से किसी भी अन्य प्रत्याशी ने नामांकन दाखिल नहीं किया।
15 साल बाद ग्रामीणों ने किया था मतदान
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में 15 वर्षों बाद पालामड़गु को मतदान केन्द्र बनाया गया था। माओवादी नारों से आंगनबाड़ी की दीवारें आज भी भरी है। नारे एक साल पहले विधानसभा के दौरान लिखी थी लेकिन आज तक उसे मिटाने की हिम्मत किसी की नही हुई। बच्चे इन्हीं नारों के बीच अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। लोकसभा और पंचायत चुनाव में पालामड़गु के मतदाताओं को मतदान करने के लिए 8 किमी दूर पोलमपल्ली जाना पड़ेगा, पर सरकार की उदासीनता के बाद आगामी पंचायत चनाव में क्या ग्रामीण मतदान करेंगें या फिर करेंगें निर्वाचन का बहिष्कार ये देखना बड़ा दिलचस्प होगा।