
विनोद सिंह, नईदुनिया, जगदलपुर: बस्तर की रियासत कालीन राजधानी वर्तमान जगदलपुर शहर का पुराना नाम जगतुगुड़ा था। रियासतकाल में इंद्रावती तट स्थित इस बसाहट को राजधानी बनाने के लिए जगतु माहरा ने राजपरिवार को अपनी जमीन दान कर दी थी। इस बात को आज से लगभग ढ़ाई सौ वर्ष से अधिक समय हो चुका है।
वह समय था, जब जगतु माहरा जगतुगुड़ा का मुखिया और जमींदार था आज उसके वंशज (पांचवी छठी पीढ़ी) शहर के प्रवीर वार्ड (पनारापारा) की गली में निवासरत है। यहां कुछ पक्के तो कई कच्चे मकान हैं। तंगहाल गलियां और घनी बसाहट हैं। शहर की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहरों की जब कभी चर्चा होती है जगतु माहरा को याद किया जाता है।
जगतु माहरा शासकीय बहुउद्देशीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जगदलपुर (बस्तर हाई स्कूल) की स्थापना के शताब्दी वर्ष पर सोमवार से तीन दिवसीय समारोह का शुभारंभ हुआ। समारोह मेंं मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी शामिल हुए। जगतु माहरा के वंशज अभिजीत बघेल और आदर्श बघेल का भी समारोह में सम्मान किया गया।
नईदुनिया इनके वंशज से मिलने पनारापारा पहुंचा और कुछ लोगाें से चर्चा की। चर्चा भी उनकी तरफ से ही शुरू की गई। 75 वर्षीय प्रेमबाई अपनी बहू नीरो बघेल के साथ घर पर ही थी। प्रेमबाई के भांजे इवन कुमार भी हमें देखकर वहीं पहुंच गए।
प्रेमबाई ने चर्चा शुरू करते हुए कहा, बेटा हमारी अपनी कोई पहचान नहीं है। हमारे पूर्वज ने जमीन दान का जाे काम किया था उसी की देन है कि कभी कभार विशेष अवसरों पर लोग हमें खोजते हुए आ जाते हैं। इससे हमें गर्व भी होता है।
सुशीला बघेल का कहना था कि जगतू माहरा के हम वंशज का एक ही अरमान है कि मान-सम्मान बना रहे, रोटी तो मेहनत से ही मिलेगी। ये हम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। इवन कुमार ने दो मांगे रखते हुए कहा कि शहर में जगतु माहरा की प्रतिमा स्थापित करना चाहिए। साथ ही निगम की इस गली जहां उनके वंशज निवासरत हैं उनका नामकरण कर बोर्ड लगाना चाहिए।
बस्तर के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले लेखकों लाला जगदलपुरी, हीरालाल शुक्ल, रूद्र नारायण पानीग्राही सहित कई ने अपनी किताब और लेखों में जगतु माहरा के विषय में लिखा है। इन लेखकों के अनुसार सन 1750-74 इस्वी के आसपास बस्तर रियासत के तत्कालीन राजा दलपत देव मराठाओं के आक्रमण से परेशान थे। वह अपने लिए नई राजधानी बनाने कोई उन्नात एवं समृद्ध गांव या कस्बा ढूंढ़ रहे थे ताकि उनके राज्य का विकास पूर्ण रूप से हो सके।
उस समय जगतुगुड़ा (वर्तमान जगदलपुर) के मुखिया जगतु माहरा थे। इस कस्बे में माहरा जाति का पूर्ण अधिपत्य था। राजा दलपत देव के आग्रह पर जगतु माहरा ने जगतुगुड़ा कस्बे को अपनी ओर से राजा को दान में दे दिया था। बाद में जगतु शब्द के प्रारंभिक दो अक्षर जग और दलपत देव के प्रारंभिक दो अक्षर दल को मिलाकर जगतुगुड़ा का नाम जगदलपुर कर दिया गया।