जगदलपुर। शहर के आसपास के गांवों में ग्रामीणों की गाढ़ी कमाई गैर कानूनी रूप से खुड़खुड़ी खिलाने वाले गिरोह की भेंट चढ़ रही है। हाट-बाजारों में इनके द्वारा खुलेआम खुड़खुड़ी के बहाने लोगों से नगद राशि का दांव लिया जाता है। अधिकांश शौकीन किसान अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा इसमें तथा मुर्गाबाजार(कुकड़ाघाली ) में लगा रहे हैं।
शहर से लगे घाटपदमूर भाटागुड़ा, पामेला, डुरकीगुड़ा मारेंगा, करकापाल व जामावाड़ा व हाटगुड़ा गांवों में इस धंधे से लगे खिलाड़ी डंके की चोट पर लोगों से दांव लगवाते नजर आते हैं। कुछ खुड़खुड़ियों ने तो यहां तक कहा कि वह संबंधित थानों में महीना भी देते हैं। उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। इस गोरखधंधे में शहर समेत देहात के गिरोह सक्रिय हैं। खुड़खुड़ी के खेल में ग्रामीण चौसरनुमा कार्डबोर्ड में कौड़ियां फेंककर दांव लगाते हैं। सही जगह कौड़ी पड़ने पर दांव में लगाया गया रकम उसे दिया जाता है। जहां-जहां खुड़खुड़ी का खेल चल रहा है वहां कुकड़ाघाली में भी हजारों रुपए का जुआ खेला जा रहा है। पुलिस के द्वारा खानापूर्ति के लिए इक्का-दुक्का प्रकरण खुड़खुड़ी के बनाए जाते हैं।
परंपरा ने लिया जुआ का रूप
मुर्गा लड़ाई आमतौर पर बस्तर के परम्परागत मनोरंजन से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसलिए इसे जुआ एक्ट के दायरे से बाहर रखा गया है। बीते कुछ वर्षों में दक्षिण व उत्तर बस्तर के हाट-बाजारों को छोड़कर कस्बाई शहरों में मुर्गा लड़ाई ने विशुद्ध रूप से जुए का शक्ल अख्तियार कर लिया है। इसमें हिस्सा लेने वाले अधिकांश लोग शहरी होते हैं। शहर के अधिकतर लोग कार में सवार होकर मुर्गा लड़ाई में दांव लगाने पहुंचते हैं। बस्तर के हाट-बाजारो पर प्रत्येक साप्ताहिक बाजार में लाखों रुपए का दांव इसमें लगाया जा रहा है।
'खुड़खुड़ी या किसी भी रूप में जुआ खेलने-खिलाने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। पुलिस से इनकी सेटिंग की बात निराधार है।'
-आशीष वासनीक, टीआई परपा