
जगदलपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा जमाकर कच्चे-पक्के आवास का निर्माण करने वालों को कब्जा खाली करने नोटिस थमाने का काम शुक्रवार को भी जारी रहा। मेटगुड़ा जवाहरनगर क्षेत्र में 85 लोगों को नोटिस जारी किया गया। गुरूवार को इसी क्षेत्र में 198 लोगों को नोटिस थमाई गई थी। अकेले इस क्षेत्र में अब तक 283 लोगों को नोटिस दिया जा चुका है। यहां अभी भी दो सौ से अधिक लोगों को नोटिस दिया जाना बाकी है। रेलवे आवासीय कालोनी, झोपड़ीपारा व मेटगुड़ा जवाहरनगर को मिलाकर पिछले एक एक सप्ताह में अब तक 501 लोगों को नोटिस जारी किया जा चुकी है।
नोटिस जारी करने का काम अभी और चार पांच दिन चलने की संभावना है। रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करना सबसे आसान रहा है। केंद्रीय विभाग होने तथा रेलवे की जमीन शहर के बाहरी क्षेत्र में स्थित होने से अतिक्रमण करना हमेशा से आसान रहा है। इस काम को बढ़ावा देने में राजनीतिक दलों से जुड़े नेता, स्थानीय प्रतिनिधि सबकी अपनी अपनी भूमिका रही है। नोटिस मिलने के बाद मेटगुड़ा क्षेत्र के कुछ प्रभावितों ने कहा कि उनके द्वारा वार्ड के पूर्व पार्षदों को पैसा देकर रेलवे की जमीन पर कब्जा करने सहमति ली थी। पार्षदों की सहमति मिलने के बाद भी जमीन पर कब्जा कर मकान बनाया है। इस वार्ड के एक पूर्व पार्षद का नाम लेकर वार्ड के कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें भरोसा दिया था कि रेलवे की जमीन पर कब्जा कर लो कोई खाली नहीं कराएगा।
पांच साल में 30 फीसद बढ़ी अतिक्रमणकारियों की संख्या
पांच साल पहले रेलवे ने अतिक्रमण को लेकर सर्वेक्षण कराया था उस समय जो संख्या सामने आई थी उसकी तुलना में आज की स्थिति में अतिक्रमणकारियों की संख्या तीस फीसद तक बढ़ गई है। रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाने वालों में से कुछ लोगों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर नईदुनिया से कहा कि कांग्रेस हो या भाजपा दोनों दलों के नगरीय निकाय में जनप्रतिनिधि रहे कुछ नेता चाहे वो पूर्व के हो या वर्तमान समय के अतिक्रमण को बढ़ावा देने में भूमिका रही है।
वोट बैंक की राजनीति आड़े आई
रेलवे की जमीन से कब्जा खाली कराने में यहां जगदलपुर में बीते दो दशक में हमेशा वोट बैंक की राजनीति आड़े आई है। भाजपा हो कांग्रेस दोनों दलों के जनप्रतिनिधि और नेता जब भी कब्जा हटाने रेलवे ने सख्ती बरतना शुरू किया इनके लिए ढाल बनकर खड़े होते रहे। कभी इनके उचित व्यवस्थापन को लेकर इनके द्वारा उचित पहल अथवा रेलवे या जिला प्रशासन के साथ सारगर्भित चर्चा के लिए बैठक नहीं की गई। पांच साल में तीन साल विधानसभा, लोकसभा, नगरीय निकाय के चुनाव के लिहाज से चुनावी साल होते हैं। चुनावी साल में अतिक्रमण विरोधी अभियान का हमेशा विरोध किया जाता रहा है।