जगदलपुर। बरसों पहले गर्मी शुरू होते ही राहगीरों को पानी पिलाने के लिए शहर समेत ग्रामीण क्षेत्र में जगह-जगह सार्वजनिक प्याऊ नजर आता था। मटके के घड़ों में टाट या कपड़ा बांधकर उसे गीला रखा जाता था, ताकि पानी ठंडा रहे। वहीं दो-चार गिलास भी रखे जाते थे। इस प्रकार भरी दोपहरी राहगीरों की प्यास मिट्टी की सोंधी खुशबु व शीतलता से तृप्त हो जाया करती थी। शहर के बीते कुछ साल से इस प्रकार के सार्वजनिक प्याऊ का चलन समाप्त होता जा रहा है।
गर्मी के समय सीआरपीएफ द्वारा खोले गए स्थाई प्याऊ को छोड़कर एक भी प्याऊ नजर नहीं आ रहा है। भारतीय परंपरानुसार पथिकों को पानी पिलाने समेत घरों के सामने पक्षियों व मवेशियों की प्यास बुझाने भी लोग पेयजल की व्यवस्था करते रहे हैं। गांव, कस्बों व शहरों में गरमी के दिनों में दर्जनों की संख्या में दिखने वाले प्याऊ अब लुप्त हो चुके हैं। कभी पानी पिलाने को पुण्य का काम समझा जाता था पर अब पाउच व बोतलबंद पानी बेचने की परंपरा चल पड़ी है।
प्याऊ का चलन खत्म हो गया है। सड़क किनारे मिट्टी की घड़ों से पानी पिलाने वाले अथवा चुल्लू से पानी पीते हुए लोग नजर नहीं आते हैं। शहर में पूर्व में एक दर्जन से अधिक प्याऊ विभिन्ना सामाजिक संगठनों की ओर से खोले जाते थे। इस साल एक भी इस प्रकार का प्याऊ नहीं खोला गया है। शहर बस स्टैंड समेत कुछ सार्वजनिक स्थलों पर वाटर एटीएम लगाए गए हैं, लेकिन वह भी अधिकतर खराब रहता है। शहर में गिने-चुने ही हैंडपंप है।
पक्षियों के प्यास की भी चिंता किसी को नहीं
इसके चलते दूर-दराज से आए मुसाफिरों व राहगीरों, रिक्शा चालकों व मजदूरों को पाऊच व बोतल बंद पानी खरीदने के कोई दूसरा चारा नहीं रहता है। मनुष्यों के अलावा अब घूमंतू मवेशियों व पक्षियों के प्यास की भी चिंता किसी को नहीं रह गई है। शहर के सिरासार चौक, संजय बाजार रोड, अनुपमा चौक में पहले स्थाई रूप से प्याऊ खोला गया था लेकिन वह अब बंद कर दिया गया है।