नईदुनिया न्यूज,जांजगीर - चांपा : भोजली का पारंपरिक पर्व मंगलवार को अंचल में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। गांवों में बाजे गाजे के साथ भोजली विसर्जन किया गया। नदी और तालाब में महिलाओं व युवतियों ने भोजली विसर्जन किया। तालाब किनारे ''देवी गंगा... देवी गंगा लहर तुरंगा'' की स्वर लहरियां फिजां में गूंज रही थी। ''जियत जागत रहिबो भोजली हो जाही फेर भेंट'' जैसे पारंपरिक गीतों के साथ फिर अगले साल मिलने की कामना की गई।
छत्तीसगढ़ के लोक पर्व भोजली पर शाम होते ही बाजे- गाजे के साथ रंग - बिरंगे वस्त्रों में सिर पर भोजली धारण किए कतार में महिलाएं व युवतियां की भोजली यात्रा निकली। भोजली गीतों की स्वर लहरियों के साथ कतारबद्ध भोजली लिए महिलाओं का अद्भूत नजारा था। धीरे- धीरे महिलाओं का समूह तालाब किनारे पहुंचा और देवी भोजली का गीत गाते हुए तालाब में विसर्जन किया गया।
इसके बाद एक - दूसरे को भोजली देकर अभिवादन किया गया। परंपरानुसार भोजली देकर मितान - मितानिन बदने की भी रस्म निभाई गई। एक - दूसरे के कानों में भोजली खोंच कर मितान बदा गया। मितान बदना मित्रता का वह अटूट रिश्ता है, जो जीवन पर्यंत चलता है। इसके बाद भोजली बांटी गई। इसी तरह नगर के भीमा तालाब, नहर व चांपा के रामबांधा तालाब, खोखरा के मनकादाई तालाब, सरखों के नइया तालाब, गोधना, सलखन, खोरसी आदि गांवों के तालाब में भोजली का विसर्जन किया गया। इस मौके पर तालाब किनारे महिला, पुरूष तथा बच्चों की भीड़ उमड़ पड़ी। भोजली विसर्जन के बाद लोगों ने बड़े बुजुर्गो को भोजली भेंटकर आर्शीर्वाद लिया।
अष्टमी को बोई जाती है भोजली
भोजली सावन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बोई जाती है और भादो कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को इसका विसर्जन किया जाता है। भोजली के लिए किसी टोकरी या बर्तन में गेहूं बोए जाने के बाद उसके पौधों को बढ़ने दिया जाता है। घर की महिलाएं और युवतियां हल्दी और पानी से पौधों को सिंचती है। घर के किसी कोने में रखी गई भोजली के सामने दीपक जलाया जाता है और उसे लौ की रोशनी में रखा जाता है।