0.भागवत कथा के सातवें दिन राजा परीक्षित के मोक्ष का वर्णन
पᆬोटो 1 जेएसपी 11 : कथा वाचन करते कथा व्यास, 1 जेएसपी 12 : कथा श्रवण करते श्रद्वालु, 1 जेएसपी 13 : झांकी प्रस्तुत करते कलाकार।
जशपुरनगर नईदुनिया प्रतिनिधि। अहंकार विनाश का सबसे बड़ा कारण बनता है। रामायण में रावण का अंत और महाभारत में कौरव वंश के विनाश का जड़ अहंकार ही था। राजा परीक्षित को भी अपने अहम की कीमत तक्षक रूपी काल का ग्रास बन कर चुकाना पड़ा था। तक्षक रूप में आए ईश्वर ने राजा परीक्षित शहर के श्रीबालाजी मंदिर में चल रहे श्रीमद भागवत कथा के सातवें दिन आचार्य पं. बलराम शास्त्री ने द्वारिका लीला, सुदामा चरित्र सहित कई प्रसंगों का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भक्ति के लिए धन की नहीं प्रेम और समर्पण का भाव जरूरी है। जिस दिल मे प्रभु का प्रेम न हो, वह दिल पत्थर के समान है। उसका कोई मोल नहीं है। मनुष्य को दिल से धनवान होना चाहिए। धन का अभिमान होने से मनुष्य गर्त में चला जाता है और उसे भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती है। पं शास्त्री ने कहा कि सुदामा से बड़ा धनवान कोई नहीं। हम सब भगवान के श्रीचरणों मे मांगने जाते हैं, लेकिन सुदामा देने गए। सब कुछ तो भगवान का ही दिया हुआ। फिर इस पर अभिमान सही नहीं है। गुरु तत्व रूप है। गुरु ही ईश्वर की प्रतिमूर्ति है। जिस जीवन में सच्चे सद्गुरु की प्राप्ति हो जाए वह धन्य हो जाता है। कथा व्यास ने कहा कि भागवत की कथा श्रवण कर राजा परीक्षित को पांच फल की प्राप्ति हुई। कथा के दौरान विभिन्न प्रसंगों की व्याख्यात करते हुए उन्होंने कहा कि जीव प्रभु कृपा से जन्म लेता है और फिर अपने जीवन के नित्य कायोर्, खुशियों और दुख के चक्कर में पड़ कर प्रभु को भूल जाता है। जीव ये भूल जाता है की इस जीवन का थोड़ा सा वक्त भगवान के धन्यवाद में भी लगाना जरूरी है। उम्र बढ़ते-बढ़ते मनुष्य को भगवान की ओर रुख कर लेना चाहिए। नहीं तो एक समय आएगा जब जीवन के अंतिम समय होगा और प्रभु का नाम लेना भी संभव नहीं हो पाएगा। राजपुरोहित पं. रामचंद्र मिश्र पौराणिक की स्मृति में आयोजित इस भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का समापन कल रविवार को होगा।