जशपुरनगर(नईदुनिया प्रतिनिधि)। भव्य कलश यात्रा के साथ शहर के बालाजी मंदिर में बुधवार से श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह की शुरूआत हुई। कथा के पहले दिन शहर में भव्य कलशयात्रा निकाली गई। कलश यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्वालु शामिल हुए। करीब 300 कलश पात्र में पक्कीडांड़ी से जल भरकर महिलाओं ने इसे सिर पर धारण किया। कलश यात्रा शहर के महाराजा चौक, मेन रोड, बस स्टैण्ड चौक, पुरानीटोली होते हुए वापस बालाजी मंदिर पहुंची। यात्रा की अगुवाई नगाड़ा वादक दलों द्वारा किया गया। कलश को भगवान बालाजी मंदिर में विधि-विधान से स्थापित किया गया। दोपहर दो बजे से बालाजी मंदिर में भागवत कथा का वाचन शुरू हुआ। वृंदावन से आए पंडित बलराम शास्त्री द्वारा कथावाचन किया जा रहा है। पहले दिन आचार्य बलराम शास्त्री द्वारा श्रीमद भागवत मंगला चरण, महात्म्य, भक्ति, नारद संवाद, राजा परीक्षित का जन्म एवं वन भ्रमण जहां कलियुग का मिलना, कलियुग को वरदान प्राप्ति, शुकदेव का आगमन प्रसंग का विस्तृत विवरण बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया गया। आचार्य बलराम शास्त्री ने कहा कि जन्मांतरे यदा पुण्यं, तदा भागवतं लभेत! अर्थात जन्म-जन्मांतर एवं युग-युगांतर में जब पुण्य का उदय होता है तब ऐसे अनुष्ठान शुरू होता है। श्रीमद्भागवत कथा एक अमर कथा है। इसे सुनने से पापी से पापी व्यक्ति भी पाप से मुक्त हो जाता है। उन्होंने श्रीमद्भागवत कथा का महात्म्य बताते हुए कहा कि वेदों का सार युगों-युगों से मानव जाति तक पहुंचता रहा है। भागवत महापुराण यह उसी सनातन ज्ञान की पयस्विनी है जो वेदों से प्रवाहित होती चली आ रही है। इसीलिए भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा गया है। उन्होंने श्रीमद् भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद् भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है, श्री अर्थात चैतन्य, सौंदर्य, ऐश्वर्या, भागवतः प्रोक्तम इति भागवत भाव कि वो वाणी, जो कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है। जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है वो श्रीमद्भागवत कथा जो सिर्फ मृत्युलोक में ही संभव है और साथ ही यह एक ऐसी अमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्गा अमृत के बजाए कथामृत की मांग की। किस स्वर्गामृत का पान करने से पुन्यों का क्षय होता है पापों का नहीं। किंतु कथा अमृत का पान करने से संपूर्ण पापों का नाश होता है। कथा के दौरान उन्होंने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है। कभी-कभी इंसान के मन में भक्ति जागृत होती है। परंतु वह जागृति स्थाई नहीं होती। इसका कारण यह है कि हम ईश्वर की भक्ति तो करते हैं पर हमारे अंदर वैराग्य व प्रेम नहीं होता है। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुणी हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं। इसमें जीवन्तता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया। श्रीमद्भागवतेनैव भक्ति मुक्ति करे स्थिते अर्थात अगर भक्ति चाहिए तो भक्ति मिलेगी मुक्ति चाहिए तो मुक्ति मिलेगी। भागवत कथा महातम्य में तुंगभद्रा नदी के तट पर निवास करने वाले आत्मदेव का वर्णन आता है। आचार्य बलराम शास्त्री जी ने बताया कि तुंगभद्रा अर्थात कल्याण करने वाली, 84 लाख योनियों से उत्थान दिलाने वाली यह मानव देह कल्याणकारी है जो हमें ईश्वर से मिलाती है। यह यह मिलन ही उत्थान है। आत्मदेव जीवात्मा का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य मोह, आसक्ती के बंधनों को तोड़, उस परम तत्व से मिलना है। यूं तो ऐसी कई गाथाएं, कथाएं हम अनेकों व्रत व त्योहारों पर भी श्रवण करते हैं। लेकिन कथा का श्रवण करने या पढ़ने मात्र से कल्याण नहीं होता। अर्थात् जब तक इनसे प्राप्त होने वाली शिक्षा को हम अपने जीवन में चरितार्थ नहीं कर लेते, तब तक कल्याण संभव नहीं।
-