श्रद्वा का महासावन
देवताओं के सेवा भाव का साक्षी है कोतेबीराधाम
यहीं से मिला है तपकरा को नागलोक का पहचान
फोटो 25 जेएसपी 1ः दंतली के जंगल में स्थित नागलोक का प्रवेश द्वार
फोटो 25 जेएसपी 2ः कोतेबीरा का प्रसिद्व शिवलिंग
तपकरा (नईदुनिया न्यूज)। जिला मुख्यालय जशपुर से लगभग 70 किमी की दूरी पर स्थित है तपकरा। फरसाबहार विकासखंड का एक छोटा सा यह गांव प्रदेश के छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर स्थित है। तपकरा की पहचान प्रदेश स्तर पर नागलोक के रूप में है। आमतौर पर बहुसंख्या में पाए जाने वाले सांपों के कारण तपकरा को नागलोक कहा जाता है। इस संबंध में स्थानीय नागरिकों से की गई चर्चा से एक अलग ही दिलचस्प कहानी उभर कर सामने आई।
यहां देवता करते थे राहगीरों की सेवा
तपकरा से लगभग 8 किमी दूर तपकरा-झारसुगड़ा मुख्य मार्ग पर स्थित है जिले का प्रसिद्व धार्मिक पर्यटन स्थल कोतेबिरा। तपकरा को नागलोक की पहचान दिलाने में इस स्थान का विशेष योगदान है। सैकड़ों वर्ष पुराने इस मंदिर के पुजारी बचन राम ने बताया कि बरसों पहले तपकरा क्षेत्र घनघोर जंगल और जंगली जानवरों से भरा हुआ था। इस घने से गुजर कर लोग ओडिशा की ओर जाया करते थे। किवदंती के मुताबिक इस जंगल में राहगिरों की रक्षा देवगण किया करते थे। जंगल में ईब नदी के तट पर स्थित शिवलिंग की पूजा और सेवा के लिए रहने वाले नागदेव ही वास्तव में ये देवगण थे। देवगण राहगीरों की ना केवल जंगली जानवरों से रक्षा किया करते थे अपितु उनके भोजन और विश्राम कि व्यवस्था भी किया करते थे।
लालच ने किया बेड़ागर्क
क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक और पूर्व बीडीसी श्याम बिहारी ने बताया कि राहगीरों को देवगण सोने और चांदी के बर्तनों में भोजन दिया करते थे। वास्तव में नागगण इस जंगल में ईब नदी के तट पर स्थित सोना और हीरे की विषाल खजाने की रक्षा में देवराज इंद्र द्वारा रक्षा के लिए तैनात किए गए थे। किवदंती के मुताबिक देवताओं द्वारा सोने चांदी के बर्तनों में भोजन कराने की बात धीरे-धीरे आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। लालच में आकर कुछ लोगों ने भोजन करने के बाद देवताओं को बर्तन वापस नहीं किया और खजाने को लूटने का प्रयास किया। इंसानों की लालच से बचाने के लिए देवराज इंद्र ने खजाने सहित नागगण को पाताल लोक भेज कर पाताल लोक का कपाट द्वार बंद कर दिया।
यहां है नागलोक का प्रवेश द्वार
स्थानीय निवासियों के मुताबिक क्षेत्र को नागलोक के रूप में प्रसिद्धि का कारण कोतेबीरा में स्थित नागलोक का प्रवेश द्वार के कारण मिली है। यह प्रवेश द्वार ईब नदी के दूसरी ओर स्थित दंतली के जंगल में स्थित है। लूटपाट से बचाने के लिए देवराज इंद्र ने खजाना सहित नागगण को पाताल लोक में अलग नागलोक स्थापित कर बसा कर प्रवेश द्वारा को हमेशा के लिए बंद कर दिया था। मंदिर के पूजारी बचन राम ने बताया कि शिव दर्शन के लिए नाग अब भी मंदिर आते हैं। महाशिवरात्रि के अलावा अक्सर सोमवार के दिन मंदिर आतें हैं और कुछ देर तक शिवलिंग से लिपटने के बाद वापस चले जातें हैं। इस दौरान ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।
विलुप्त हो गए दुर्लभ जड़ी-बूटियां
किवदंती के मुताबिक ईब नदी के तट में स्थित दंतली के इस जंगल में देवतावास किए करते थे। इस जंगल में कई दिव्य जड़ी-बूटियां मिला करती थी। नागदेवता के नागलोक जाने के बाद भी ये जड़ी बूटियां इस जंगल में मौजूद थे। जिनका प्रयोग कर पूर्वजों असाध्य रोगों का इलाज किया करते थे। लेकिन लगातार घटते जंगल और संरक्षण के अभाव में सभी दुर्लभ जड़ी-बूटी विलुप्त हो गई। वर्तमान में इस जंगल में सतावर,वनपोई,भुईनीम जैसे कुछ जड़ी ही जंगल में मौजूद है।
नहीं हो रहा सर्प ज्ञान केंद्र का उपयोग
वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम तपकरावासियों को लिए जान लेवा साबित हो रहा है। इस अधिनियम के कारण एक ओर जहां केंद्र सरकार स्नेक पार्क के प्रस्ताव को ठुकरा चुकी है,वहीं 15 लाख की लागत से पांच वर्ष पूर्व बना सर्प ज्ञान केंद्र का भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। सांप के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए गत एक दशक से काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता शांतनु शर्मा ने बताया कि कानूनी पेचीदगियों के कारण वन विभाग का यह भवन फिलहाल,ताले में कैद है।
ग्रामीण गवां रहे जान
एक ओर जहां वन्य प्राणियों के संरक्षण और स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए केंद्र सरकार ने स्नेक पार्क प्रोजेक्ट को रद्दी के टोकरी में डाल दिया है। वहीं सर्प दंश का शिकार हो कर असमय काल के गाल में समा रहे ग्रामीणों की चिंता किसी को नहीं है। सरकार मृतकों के परिजनों को मुआवजा वितरित करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर पा रही है। जागरूकता के अभाव में सर्प दंष के बाद झाड़ फूंक के चक्कर में ग्रामीणों की जान अधिक जा रही। शासन से एनजीओ के माध्यम से ग्रामीणों को जागरूक करने का विशेष कार्यक्रम चलाया था,जो फिलहाल फंड के अभाव में ठप्प पड़ा हुआ है।
इसलिए मिलते हैं अधिक सांप
किवदंतियों से इतर वैज्ञानिक आधार पर तपकरा क्षेत्र की आर्द्र जलवायु,भुरभुरी मिट्टी,धान का अधिक उत्पादन और चूहे व दीमकों की उपस्थिति को क्षेत्र में सांपों की उपस्थिति का कारण माना जाता है। जानकारों के मुताबिक अनुकुल परिस्थितियों के कारण तपकरा क्षेत्र सांपों का पसंदीदा निवास क्षेत्र है।
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