
नईदुनिया प्रतिनिधि, रायपुर। बस्तर संभाग के कांकेर जिले में मतांतरण को लेकर उपजा तनाव अब गांव-गांव तक फैल गया है। भानुप्रतापपुर विकासखंड के कुड़ाल गांव से शुरू हुई यह मुहिम अब जिले के 14 से अधिक गांवों तक पहुंच चुकी है।
इन गांवों की सीमाओं पर बकायदा बोर्ड लगाकर पादरियों (पास्टरों) के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। संभाग की 67% जनसंख्या आदिवासी है, जिनमें से लगभग सात प्रतिशत का मतांतरण हो चुका है।
अनुसूचित जाति की लगभग तीन लाख आबादी वाली माहरा जाति में 95% तक मतांतरण हो चुका है। यह विवाद आमाबेड़ा क्षेत्र के बड़ेतेवड़ा गांव में अंतिम संस्कार के दौरान हुई हिंसा और तोड़फोड़ के बाद और तेज हुआ है। ग्रामीणों और सरपंचों का कहना है कि यह फैसला किसी धर्म के विरोध में नहीं, बल्कि आदिवासियों को प्रलोभन देकर कराए जा रहे मतांतरण को रोकने के लिए लिया गया है। उनका तर्क है कि बाहरी हस्तक्षेप से उनके पुराने रीति-रिवाज और उनका सामाजिक ढांचा खतरे में है।
वर्तमान में कुड़ाल, मुसुरपुट्टा और कोड़ेकुर्रो जैसे 14 से अधिक गांवों में बोर्ड लग चुके हैं, जबकि दर्जनों अन्य गांवों मे ऐसे ही प्रस्ताव लाने की तैयारी है। ग्राम सभाओं ने पेसा अधिनियम 1996 के तहत यह निर्णय लिया और बोर्ड लगाकर स्पष्ट किया कि गांवों में मसीही धार्मिक आयोजन वर्जित रहेंगे।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी इन ग्राम सभाओं के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने माना कि जबरन या प्रलोभन देकर मतांतरण रोकने के लिए लगाए गए ये बोर्ड असंवैधानिक नहीं हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति की रक्षा के लिए ग्राम सभा का एहतियाती कदम हैं।
चंगाई सभाओं के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली जाती। छोटे घरों में प्रार्थना सभाएं हो रही हैं। मतांतरण के बाद नाम नहीं बदले जा रहे, जो नियम विरुद्ध है।-गौरव राव, सामाजिक कार्यकर्ताक्षेत्र में बढ़ते विवादों को रोकने के लिए प्रभावी कानून बनाना और उसका सख्ती से पालन सुनिश्चित करना आवश्यक है। अन्यथा सामाजिक संघर्ष बना रहेगा।-गुप्तेश उसेंडी,, जिपं सदस्य