0- स्लगः पुश्तैनी व्यवसाय को अब तक रखा जीवित, दो वक्त की रोटी भी ठीक तरह से नहीं मिल पाती
दुर्गूकोंदल। नईदुनिया न्यूज
ब्लॉक मुख्यालय से 30 किमी दूर ग्राम पंचायत गुदुम के आश्रित ग्राम फितेफूलचुर में कई पीढ़यिों से सोनझरिया परिवार आज भी पुश्तैनी व्यवसाय सोना निकालने का काम कर रहा है। बारिश में खेती करते हैं और बारिश के बाद नदियों से सोना निकालने में जुट जाते हैं।
सोनझरिया नदियों की मिट्टी कंकड़ पत्थर को धोकर सोना निकालते हैं। परिवार के सदस्य क्षेत्र के पतासा बड़गांव, कोडे नदी, कोटरी नदी, खडी नदी में नाव बड़े डोंगर के अलावा महाराष्ट्र की कुछ नदियों में जाकर सोने निकालने का काम करते है। डोंगीनुमा लकड़ी के पात्र में धोते हैं धुलाई के बाद जो बारीक कण बनते हैं, उसे इकट्ठा किया जाता है। कण से अधिक मात्रा में जमा होने पर पाया जाता है। उसे जलाकर सोना तैयार किया जाता है। इसे कुंवारी सोना कहा जाता है। माना जाता सोनझारिया परिवार भले ही दुनिया की कीमती धातु सोना निकालने का काम करते हैं लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब है। सोना इकट्ठा करने के बावजूद उन्हें दो वक्त की रोटी भी ठीक से नहीं मिल पाती।
परंपरागत तरीके से निकालते हैं सोना
सोनझरिया परिवार के सदस्य अपनी चिन्हित नदियों से सोना निकालने का काम करते हैं इन नदियों के कुछ अनुमानित स्थानों की मिट्टी रेत कंकड को अपने डोगीनुमा लकड़ी के बनाए पात्र में डालकर धोते हैं धुलाई के बाद जो बारीक कण बचते हैं, उसे इकट्ठा किया जाता है करके अधिक मात्रा में जमा होने के बाद उसे पिधलाया जाता है।
कण को पिघलाकर उसे सोना का रूप जाता है, जिसे कुंवारी सोना कहा जाता है। शुद्ध होता हैं, सोन झरिया पुनाराम मंडावी, अमरू नेताम, राखी नेताम, विजय मंडावी, हजारी मंडावी ने बताया है कि पूर्वजों द्वारा बताए गए तरीके से नदियों से सोना निकालते हैं सोना झारने के लिए हमारे पास डोगीनुमा लकड़ी के पात्र के अलावा कोई आधुनिक तकनीकी नहीं है।
सोनझरिया इतवारीन बाई ने बताया कि कड़ी मेहनत कर नदी के कंकड़ पत्थर मिट्टी को सोना पाने के लिए रात दिन मेहनत करते हैं तभी सोना मिलता है तो कभी खाली हाथ लौटना पड़ता है। कभी-कभी दिन भर मेहनत करने के बाद भी कुछ हाथ नहीं आता। सोंनझारिया परिवार के अन्य सदस्यों ने बताया कि वह सप्ताह भर बाद इकट्ठा किए गए कण को जलाकर सोने का रूप देते हैं। प्राप्त सोना को बेचने पर मुश्किल से पांच से 600 रूपये मिलता है। जिसे राशन एवं अन्य सामग्री खरीदा जाता है। ज्ञान के अभाव में नहीं बनाते आभूषण सोने से आभूषण बनाने का ज्ञान सोनझरिया परिवार के पास नहीं है जिसके चलते उन्हें वह बेच देते हैं जो सोना उनके पास होता है वहां सबसे उच्च क्वालिटी का होता है पर आभुषण बनाने का ज्ञान नहीं होने के कारण वे उसे औने पौने दाम पर बेचकर जीविका चलाते है।
सोना निकाल कर बेचते हैं सुनार के पास
राजू राम मंडावी ने बताया कि उनके पूर्वज पीढ़ी से सोना झारने का काम करते आ रहे है। सोना निकालने के बाद उसे सुनार के पास बेच दिया जाता है। सोनझरिया शंकर ने बताया कि हमने कभी नहीं सोना बेचकर रकम नहीं बना पाए जो भी किया वहां रोटी कपड़े के लिए खर्च हो गया। शासन गरीबों के जीवन स्तर को बढ़ावा देने जा रही है, इसके अलावा पैतृक व्यवसाय को उठाने प्रशिक्षण व अनुदान दे रही है। कई पीढियों से यहां निवासरत सोनझरिया परिवार काफी गरीब है।
अशिक्षा बना कारण
फितेफुलचुर में निवासरत सोनझरिया परिवार अब भी अशिक्षा की मार झेल रहे हैं इनके परिवार में पांचवी कक्षा से ज्यादा कोई भी पढ़ नहीं पाया है यह लोग सोना झारने के लिए कई महीने भर से बाहर रहते हैं। इस दौरान उनके बच्चे भी साथ में होते हैं, जिससे यह बच्चे शिक्षा से वंचित हो जाते हैं, उन्होंने कहा कि पढ़ाई से ज्यादा पेट भरने के लिए काम का महत्व है। उनका कहना है कि पढ़ कर क्या करेंगे हमारे वैसा को देगा तो उन्हें अपने परिवार पालने में दिक्कत नहीं होगी।
लगता है अस्थाई कैंप
सोना निकालने के लिए बारिश के बाद सोनझरिया नदियों के निकट जंगलों में अस्थाई केफ बनाकर रहते हैं दिन भर सोना निकालने के कार्य में जुड़ने के बाद शाम परिवार को शाम को लोटते हैं उन्होंने बताया कि जंगलों के बीच रहने से कोई डर नहीं लगता अपनी ईस्ट देवी को आस्था मानकर रहतें है।