
कवर्धा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जिले के बार्डर में एक बार फिर गजराज पधार चुके हैं। शुक्रवार को ये पंडरिया के तेलियापानी धोबे तक पहुंच गए थे। वहीं फोटो लेने गए ग्रामीणों को हाथियों ने दौड़ाया है। वन विभाग की टीम वहां पहुंची गई है। इसके अलावा हाथियों के उत्पात के चलते वन विभाग ने 10 गांवों में अलर्ट जारी किया गया है। बीते महीनों में उत्पात मचाने के बाद हाथी एक बार फिर वापस कवर्धा लौट उत्पात मचाने आए हैं। इस दल में एक दंतैल हाथी भी शामिल है जिसे देखते हुए ग्रामीणों को हाथियों के दल से दूर रहने सतर्क किया जा रहा है। प्रशासन के लिए हाथियों को रहवासी क्षेत्रों से खदेड़ना एक चुनौती बन गई है।
बता दें कि पूर्व में जिले के तरेगांव जंगल में 6 हाथियों के दल मौजूद थे। तरेगांव जंगल के ग्रामीणों का हाथियों के उत्पात मचाने से बुरा हाल हुआ था। हाथियों के इस दल में एक दंतैल हाथी भी सक्रिय हैं, जिसको लेकर विशेष चिंता वन विभाग ने दिखाई हैं। दंतैल हाथी इंसानों को बुरी तरह घायल करने में सक्षम हैं। ऐसे हाथी ज्यादा गुस्सैल होते हैं।
कृषि कार्य हो रहा प्रभावित
हाथियों की मौजूदगी के कारण इस क्षेत्र में कृषि कार्य काफी प्रभावित हुआ है। हाथियों के डर से ग्रामीण खेतों में जाने से कतरा रहे हैं। इसके कारण कृषि कार्य काफी पिछड़ गया है। पूर्व में हाथियों के दल ने तरेगांव रेंज के ग्राम गभोडा में पहुंच मकानों और बाड़ी के रखे अनाजों को भी नुकसान पहुंचाया था। हाथियों के दल ने ग्रामीणों के 4 मकानों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया था।
वन विभाग, कवर्धा दाखिल हाथियों पर पैनी नजर रखी हुई है। हाथियों के दल बीते 6 माह से कबीरधाम जिले के पंडरिया व बोड़ला ब्लाक के वनांचल क्षेत्र में सक्रिय है। ये एमपी के लगे जिले डिंडौरी व मंडला के बार्डर में भी एक्टिव रहते हैं। वहीं एमपी व सीजी के जिले भी परेशान हैं। इसमें सीजी के कबीरधाम व मुंगेली जिले व एमपी के मंडला, डिंडौरी में इनकी गतिविधि दिखाई दे रहीं है।
भोजन-पानी के कारण हाथियों को भा रहा पंडरिया का जंगल
पंडरिया वन परिक्षेत्र में इसके पहले हाथी दो से अधिक बार आ चुके हैं। अब तीसरी बार है कि हाथी झुंड में पहुंचे हुए हैं। इसके पीछे कारण बताया जा रहा कि हाथियों को पर्याप्त भोजन और पानी की व्यवस्था। क्षेत्र के नदी में पानी और कई छोटे नाले हाथियों के रूट में है। यही वजह है कि इस क्षेत्र मेें इस साल सूखा नहीं पड़ा। हरियाली होने की वजह से जंगल में झुंड आराम से रहता है। हाथियों को घने जंगल जहां शोर-शराबा ना हो ऐसा इलाका ज्यादा पंसद होता है। वर्तमान में पहुंचे हाथियों के झुंड ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है।
नौ साल पहले एक हाथी आया था, फिर झुंड में आने लगे
विभाग के अनुसार प्राकृतिक रहवास क्षेत्र में जब आबादी बढ़ने लगती है और परिस्थितियां प्रतिकूल होने लगती हैं, तब झुंड से नर हाथी नए अनुकूल आवास क्षेत्र की तलाश में निकलता है और देखता है कि कहां भोजन, पानी की पर्याप्त व्यवस्था है। इसके बाद वह अपने पूरे झुंड को यहां लेकर आ जाते हैं। 9 साल पहले मार्च 2013 में एक हाथी सिंगपुर बीट क्रमांक- 505 में आया था, जो करीब डेढ़ महीने तक घूमता रहा। दूसरी बार 2015 में एक हाथी रुखमीदादर की ओर और अचानकमार टाइगर रिजर्व (एटीआर) लौट गया था। तीन बार में 6 हाथियों का दल गभोड़ा पहुंचा था। इसके बाद इन गजराजों का का आने का सिलसिला जा रहा।
ग्रामीणों के लिए बढ़ रहा खतरा
जिले के जंगली क्षेत्रों के साथ ही आवासीय क्षेत्रों में भी हाथियों की दखल बढ़ी है। हाथियों की यह दखल ग्रामीणों के लिए चिंता का कारण बनते जा रहा है। माह भर पहले ही हाथियों के झुंड ने बहुत उत्पात मचाया था। यहां तक कि एमपी के क्षेत्र में एक ग्रामीण महिला की जान भी ले ली थी। इस तरह हाथियों का उत्पाद अब जिले के ग्रामीण अंचलो में रहने वाले आदिवासी परिवारों के लिए परेशानियों का कारण बन गया है।
हाथी बिना रेडियो कालर आइडी के, इसलिए बढ़ी चिंता
दरअसल इन हाथियों के दल में किसी भी हाथी में रेडियो कालर आइडी नही हैं। दल के किसी भी हाथी में सेटेलाइट कालर आइडी नहीं होने से हाथियों के दल का सही लोकेशन नहीं मिल पा रहा है। इससे हाथियों के दल के अचानक गांवों में घुसने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। इसलिए वन विभाग भी बचाव करने में असक्षम है। फिलहाल, वन विभाग की अलग-अलग टीमें पंडरिया ब्लाक के वनांचल क्षेत्र में है। इनका लगातार लोकेशन लिया जा रहा है।