Kondagaon News: पूनमदास मानिकपुरी, कोंडागांव। धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे आदिवासी अंचल में हाईब्रिड धान की रोपाई से देसी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इन विलुप्त होती देसी प्रजातियों को बचाने के लिए कोंडागांव के किसान शिवनाथ यादव आगे आए हैं। करीब 25 साल में शिवनाथ ने 290 देसी प्रजातियों का संग्रहण किया है और करीब 44 पर उनका अनुसंधान जारी है।
शिवनाथ को मुंबई की एक स्वयंसेवी संस्था रूरल कम्यूनस के फाउंडर स्व. मुन्नीर से स्थानीय देसी बीजों के संरक्षण की प्रेरणा मिली। इसके बाद उन्होंने धरोहर नामक किसानों का समूह गठित कर गोलावंड में वर्ष 1995 से बीज संरक्षण का कार्य शुरू किया। समूह को बीज संरक्षण के क्षेत्र में कार्य करने के लिए पौधा किस्म और कृषक अधिकार प्राधिकरण कृषि मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2016 में प्रशस्ति पत्र व 10 लाख की प्रोत्साहन राशि भी मिल चुकी है। शिवनाथ और उनका समूह बीजों को बेचते नहीं, किसानों से अदला-बदली करते हैं तथा उत्पादन कर उसे अन्य किसानों को देने की बात कहते हैं। समूह धान की किस्मों को पारंपरिक ज्ञान के सहारे संरक्षित कर रहा है इसमें कृषि वैज्ञानिकों का भी सहयोग मिल रहा है।
किसानों को लौटना पड़ेगा पारंपरिक किस्मों की ओर
शिवनाथ यादव ने नईदुनिया से चर्चा में कहा कि पहले क्षेत्र के किसान धान की अलग-अलग किस्म की खेती भूमि के अनुसार करते थे, गोबर की खाद तथा कीटों के प्राकृतिक उपचार से पर्यावरणीय सामंजस्य बरकरार रहता था। आज अधिक उत्पादन के लालच में किसान हाईब्रिड बीजों की खेती कर रासायनिक खाद व दवाओं का उपयोग कर रहे हैं। इसका पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वहीं देश-विदेश का एक खास तबका ब्लैक राइस, रेड राइस के साथ ही पोषकता प्रदान करने वाली देसी प्रजातियों की मांग कर रहा है। इसससे बस्तर में जैविक खेती की संभावनाएं बढ़ेगी।
पौष्टिकता के साथ औषधीय गुण
शिवनाथ ने बताया कि देसी धान में कई ऐसी किस्में है जो पौष्टिकता से भरपूर हैं। जैसे काटा मैहर धान में प्राकृतिक रूप से आयरन पाए जाने की बात हमारे बुजुर्ग कहते थे। स्थानी परंपरागत ज्ञान के आधार पर इलायची आलचा जैसी धान की किस्में दवाई के रूप में भी उपयोग होती हैं। देसी सुगंधित किस्मों में पतला में बादशाहभोग, लोकटी माछी, मोटा में दांदर धान, कुमडा फूल, कुकड़ी मुंही, अलसागार, बासमुही, अर्ली वैरायटी में सुगंधित भूरसी धान, लालू 14, धंगढ़ी काजर और भी सुगंधित किस्में हैं।