कोरबा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। स्वयंसेवियों की पहल से सुदूर वनांचल गांव में घास-फूस के कच्चे मकान में रहने वाले कोरवा आदिवासी परिवार को सुंदर घर मिला। उनके जीवन में एक नए मेहमान का प्रवेश हुआ था, जिसके लिए सुरक्षित घर बनाने की यह कवायद की गई। जनसहयोग से राशि जुटाकर स्वयंसेवियों ने उस कच्चे मकान को ईंट की दीवारों व शेड के जरिए बेहतर रूप दिया और शिशु की आमद के साथ मिले इस उपहार को उन्होंने नन्हें कोरवा का आशियाना बना दिया।
घास-फूस के कच्चे मकान को नया रूप देने का बीड़ा लेकर यह पहल वनांचल ग्राम माखुरपानी के आश्रित गांव टोंकाभांठा में की गई। ग्राम गढकटरा के शिक्षक श्रीकांत सिंह भारिया ने भ्रमण के दौरान शंकर व शनीचरी कोरवा के परिवार को देखा था। तभी उन्होंने बच्चे के आगमन के साथ उसके लिए बेहतर आशियाना तैयार करने की एक कोशिश करने का संकल्प किया। जब मकान बनाना शुरू किया तो योजना थी, कि घास-फूंस निकालकर सीधे शीट लगा देंगे। फिर लगा दीवार थोड़ा ऊपर कर दिया जाय और ज्यादा सुरक्षित बनाने पानी की ढाल को एक ही तरफ किया गया। इससे काफी मात्रा में शीट, ज्वाइंटर आदि की बचत हो गई। अब पानी की ढाल सिर्फ एक ही तरफ सामने की ओर है। घर लगभग तैयार हो ही गया है। दरवाजे और शीट के ऊपर कुछ भार रखने बाकी है। शंकर और शनिचरी ने भी खूब मेहनत की है। पर यह मुहीम जितनी आसान लगती है उतनी है नहीं। श्रीकांत ने बताया कि अपने पंचायत क्षेत्र के बाहर उनकी यह उनकी पहली कोशिश है। उन्होंने इस संकल्प को पूरा करने में मदद करने वाले सभी सहयोगियों का आभार जताया है।
पोस्ट किया था पतझड़ में बसंत लाना है, खूब बरसी मदद
शिक्षक श्रीकांत ने बताया कि लगभग एक माह पूर्व उन्होंने शंकर व शनीचरी के जीवन पर आधारित पतझड़ में बसंत लानी है, शीर्षक से इंटरनेट मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया था। योजना थी कि उनके घास-फूंस के घर को एक सुरक्षित छत मिल जाए। बस यही सोच लेकर किए गए पोस्ट के बाद इंटरनेट मीडिया पर दोस्तों ने भरपूर प्रोत्साहन दिया और जनसहयोग की भी वर्षा होती गई। एक महीने बाद यह योजना नन्हें के आशियाने में बदल गई। घर के बनते बनते उस शिशु के नन्हें के कदम घर में पड़े। कितनी खुशी की बात है कि अब शंकर का घासफूंस का घर नन्हें के लिए एक मजबूत और सुरक्षित आशियाने में बदल चुका है।
भिलाई-बलौदा समेत प्रदेशभर से आई मदद
इस पुनीत कार्य में सहयोग करने वालों में मिलिंद भिड़े भिलाई, आनंद सिंह कस्तूरबा आश्रम पाली, दिव्या सिंह प्राथमिक शाला कुम्हारपारा (बलौदा), शैलू कुमार, अनिता ध्रुवे माध्यमिक शाला धराशिव(नवागढ़), प्रीती खैरवार एबीईओ पोड़ी-उपरोड़ा, शशि कैवर्त प्राथमिक शाला गैंगदेई (कटघोरा), रामकुमारी सिदार, प्राथमिक शाला नवागांव (कटघोरा), फेसबुक मित्र वीरेंद्र यादव, अजय कोशले प्राथमिक शाला गढक़टरा, रविंद्र क्षत्रीय व सुमित फाउंडेशन रायपुर ने शनीचरी के खाते में उनके निजी उपयोग के लिए प्रदान किए। इन सभी के सहयोग की बहुत सी राशि बची हुई है, जिसे इसी तरह की किसी कोशिश में खर्च करने की योजना बनाई जा रही।
रोज पूछता, कहा सो रहा है, दूर से निहारकर मिला सुकून
घर बनने के बाद अनेक बाद शिक्षक श्रीकांत उस शिशु को देखने, गोद में लेकर पुचकराने की मंशा से पहुंचे। पर जब भी वे वहां पहुंचे, उसकी मां से पूछने पर बतातीं ही वह ठीक है और सो रहा है। दस से अधिक पर जाने के बाद भी वह जागते हुए नहीं मिला। इस बीच दूर से ही उसे कुछ पल उसे निहार लिया। सुरक्षित माहौल में नन्हा भरपूर नींद ले रहा था और यह देखकर जो सुकून मिला, वह अनमोल है।