कोरबा (निप्र)। संरक्षित जनजाति के पहाड़ी कोरवा भी इंदिरा आवास में हुए भ्रष्टाचार से अछूते नहीं रह सके। नकिया के ग्राम खम्होन में रहने वाले 15 पहाड़ी कोरवा परिवारों के लिए 25-25 हजार निकालने के बाद केवल 1500-1500 रुपए ही थमा दिया गया। नौबत यह है कि आज भी यहां रहने वाले ज्यादातर कोरवा आदिवासी परिवार घास-फूस की झोपड़ी में रहने को मजबूर हैं। हितग्राहियों को सीधे राशि प्रदान किया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। पूर्व सरपंच पर इंदिरा आवास की राशि हड़प जाने का भी आरोप है।
ग्राम पंचायत नकिया का आश्रित ग्राम खम्होन जिला मुख्यालय से करीब 190 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां कुल 15 कोरवा आदिवासी परिवार निवास करते हैं। इंदिरा आवास योजना के तहत इन कोरवा परिवारों के लिए वर्ष 2009 से 2011 के बीच राशि की स्वीकृति दी गई थी। बैंक खाता खुलवाकर शासन से राशि 15 कोरवा हितग्राहियों खाते में जारी की गई। हमारे ग्रामीण प्रतिनिधि अशोक कैवर्त को प्रभावित आदिवासियों ने जो बताया उसके अनुसार गांव के पूर्व सरपंच फूल सिंह ने उन्हें मकान बनाकर देने का वादा करते हुए उनके खाते से रकम निकलवा लिए। पूर्व सरपंच ने कोरवाओं को महज 1500-1500 रुपए थमा दिया और 23 हजार 500 रुपए खुद रख लिए। इसके बाद सरपंच ने 15 में मात्र 3 कोरवाओं को मिट्टी व घास-फूस का मकान दिया और बाकी लोगों ने अपना मकान स्वयं तैयार करना पड़ा। आर्थिक मजबूरी के चलते घर बनाने में अक्षम परिवारों के लिए शासन ने इंदिरा आवास योजना शुरू की थी। बेघर लोगों को छत देने शुरू की गई योजना को भी बंदरबाट का जरिया बनाया जा रहा है।
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शासन से अनुदान, हितग्राही का श्रमदान
इंदिरा आवास योजना के नियमों के अनुसार हितग्राही को अपने मकान का निर्माण खुद करना होता है। शासन से इसके लिए अनुदान के तौर पर केवल आर्थिक मदद दी जाती है। मकान का निर्माण स्वयं हितग्राहियों को श्रमदान करना है। हितग्राही यदि अधिक उम्र का हो, विधवा या परित्यक्तता या वह स्वयं मकान बनाने सक्षम नहीं हो, तो ऐसी स्थिति में सरपंच उनके मकानों का निर्माण करा सकता है। इस राशि में अगर हितग्राही चाहे तो स्वयं की राशि मिलाकर और बेहतर व बड़े मकान का निर्माण कराया जा सकता है। इस मामले में पूर्व सरपंच व सचिव का कहना है कि 25 हजार रुपए में ईंट-गारे का मकान नहीं बन सकता। पहाड़ी कोरवाओं को इंदिरा आवास की राशि देने की बजाय उन्हें मकान बनाकर दिया गया।
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अफसरों ने बगैर तस्वीर देखे किया पास?
यह पहली बार नहीं जब ऐसी गड़बड़ी सामने आई हो। इंदिरा आवास हितग्राहियों का चयन ग्राम सभा करती है। गड़बड़ी खत्म करने शासन राशि सीधे हितग्राही के खाते में जारी करती है। जानकारी के अभाव में भोले-भाले आदिवासी ठगे जाते हैं और बार-बार शिकायतों के बाद भी विभाग के जिम्मेदार अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते हैं। हितग्राही को इंदिरा आवास बनाने सामग्री खरीदने पहली किस्त के तौर पर आधी रकम जारी की जाती है। मकान की दीवारें खड़ी होने के बाद उसकी तस्वीर खींची जाती है और एक प्रस्ताव गांव के सरपंच से हस्ताक्षरित कराकर बैंक में जमा करना होता। इसके आधार पर दूसरी किस्त जारी होती है। जनता की राशि का दुरूपयोग रोकने इतनी विस्तृत प्रक्रिया के बाद भी चूक होना अफसरों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है।
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फोटो नंबर-17केओ8- रामसाय उइके ।
गड़बड़ी मिली है, कराई जाएगी जांच- बीडीसी
खम्होन का दौरा करने पहुंचे अरसेना, लेमरू व नकिया क्षेत्र के बीडीसी रामसाय उइके ने बताया के कुछ दिनों पहले जब वे कोरवा आदिवासियों का हाल-चाल जानने उनके बीच गए, तो उन्होंने अपने लिए मकान की मांग की। इंदिरा आवास के तहत आवास के लिए राशि जारी होने की बात पूछने पर उनका कहना था कि गांव के कुल 15 कोरवा परिवारों के लिए इंदिरा आवास के तहत शासन से 25-25 हजार रुपए जारी हुए थे। इसमें पूर्व सरपंच ने सचिव के साथ मिलकर उनके खाते से इंदिरा आवास का पैसा निकाल लिया। पूर्व सरपंच इंदिरा आवास की कुल राशि में इन्हें मात्र 1500-1500 रुपए दिए और बाकी रकम से मकान बनाकर देने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं किया। श्री उइके ने कहा कि उनके पास सभी कोरवा हितग्राहियों की लिस्ट है, मामले की जांच कराई जाएगी।
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क्या कहते हैं हितग्राही
1500 में कैसे बने मकान
कई साल हो गए मकान नहीं बन सका है, मात्र 1500 रुपए देकर पूर्व सरपंच बाकी रकम खुद निकाल लिया। सरपंच ने जल्द ही मकान पूरा बनाकर देने की बात कही थी। कई बार जा चुके हैं, लेकिन घुमाया जाता रहा। थकहार कर जैसे-तैसे खुद ही अपना-अपना मकान बनाए।
- सिंहलसाय कोरवा
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बरसात में होती है परेशानी
ठंडी और गर्मी का मौसम तो किसी तरह निकल जाता है, लेकिन हर साल बरसात के मौसम में सबसे ज्यादा परेशानी होती है। कच्चा मकान होने के कारण पानी घर के अंदर घुस जाता है। इंदिरा आवास का पैसा मिलने से मकान बन जाने की उम्मीद थी, लेकिन वह भी नहीं बन सका।
- वीरूराम कोरवा
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सांप-बिच्छू का खतरा
बरसात के मौसम में घर के बाहर सांप-बिच्छू का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। शाम होने के बाद जंगली-जानवरों का खतरा तो साल भर बना रहता है। खासकर बच्चों के लिए डर बना रहता है। घास-फूस का घर होने से खाना सूंघकर जानवर घर में घुस सकते हैं।
- नवल कोरवा
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पैसे कम थे इसलिए नहीं बना छप्पर
बैंक ले जाकर कागज में अंगूठा लगवाए गए थे, उसके बाद मकान बनाने के लिए सरपंच ने पैसे निकाल लिए। हम लोगों को 1500-1500 रुपए देकर कहा था कि मकान वही बनवाकर देंगे। आज तक न पैसे मिले और न ही मकान ही बनवाकर दिया। कई लोगों ने खुद ही मकान बनाए।
- सुंदर कोरवा
फैक्ट फाइल
जिले में कोरवाओं की स्थिति
कुल कोरवा बस्ती 41
कोरवा परिवार 719
जनसंख्या 2784
इनका कहना है
पूर्व सरपंच ने ही सबका घर बनवाया था। जो भी सामान लगे, उसके लिए मैंने सरपंच को जारी राशि की थी। बाल्को से ईंट लाने में काफी दूर पड़ता और स्थानीय स्तर पर भी ईंट काफी महंगा था। 25 हजार में घर नहीं बन सकता, इसलिए मिट्टी का दीवार उठाकर खपरैल छा दिया गया।
- इतवार साय, ग्राम सचिव
इंदिरा आवास की राशि देने की बजाय मैंने मकान बनाकर दिया है। सचिव के पास इसकी पूरी जानकारी है।
- फूल सिंह, पूर्व सरपंच, नकिया
वर्ष 2009 में इंदिरा आवास बनाने ईंट-गारे का प्रावधान नहीं था, शासन से मिट्टी व खपरैल के लिए अनुदान दिया जाता था। नकिया के खम्होन गांव से मिल रही शिकायत सही है या नहीं, इसकी जांच की जाएगी। अगर राशि की गड़बड़ी होना पाया गया, तो कार्रवाई भी की जाएगी।
- सीएस शर्मा, सीईओ, जनपद पंचायत कोरबा