
कोरबा। नईदुनिया प्रतिनिधि
एसईसीएल कुसमुंडा खदान से अब 26 मिलियन टन की जगह 36 मिलियन टन कोयला का उत्पादन प्रतिवर्ष किया जाएगा। इसके लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने मंजूरी प्रदान कर दी है। उत्पादन क्षमता बढ़ाए जाने कामामला पहले से एनजीटी दिल्ली में विचाराधीन है। जनसुनवाई के बिना खदान का विस्तार कार्य किए जाने का आरोप लगाया गया है।
एसईसीएल की मेगा प्रोजेक्ट की ओर ब़ढ़ रही कुसमुंडा परियोजना से भविष्य में 62 एमटीए कोयला उत्पादन होना है। इस खदान की उत्पादन क्षमता 18.75 एमटीए से बढ़ा कर 50 एमटीए (अधिकम 62 एमटीए) करने हेतु फरवरी 2015 में जनसुनवाई आयोजित की गई थी। इसके बाद फरवरी 2016 को परियोजना से 26 एमटीए कोयला उत्पादन करने की पर्यावरणीय स्वीकृति प्रदान की गई। नियमतः उत्पादन बढ़ाने के पहले पर्यावरणीय जनसुनवाई आयोजित की जाती है। इसके बाद ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से खदान करने की स्वीकृति मिलती है। बार-बार उत्पादन क्षमता बढ़ाए जाने के बाद भी जनसुनवाई नहीं किए जाने पर एनजीओ सार्थक के सचिव लक्ष्मी चौहान ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) नई दिल्ली के समक्ष याचिका दायर कर खदान की विस्तार परियोजना को रद्द करने की अपील की थी। इसके साथ ही उन्होंने आफिस मेमोरंडम की वैधता को भी चुनौती देते हुए कहा था कि पर्यावरण स्वीकृति के लिए संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन किया गया। 10 एमटीए के लिए स्वीकृत माइनिंग लीज एरिया 1675 हेक्टेयर में ही 26 एमटीपीए का उत्पादन किया जा रहा है, क्योंकि 10 से 15 एमटीपीए के लिए ग्राम रिस्दी, पड़निया, पाली, जटराज में अधिग्रहित की जाने वाली लगभग 800 हेक्टेयर भूमि का आधिपत्य अभी भी प्रबंधन के पास नहीं है। एनजीटी में यह मामला अभी विचाराधीन है और जल्द ही सुनवाई होनी है। इस बीच केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने खदान विस्तार के लिए पुुनः अनुमति दे दी। तीन जुलाई 2018 को जारी आदेश में कुसमुंडा खदान को 36 मिलियन टन कोयला उत्पादन करने की मंजूरी दी है। यानी चालू वित्तीय वर्ष में कुसमुंडा खदान नए टारगेट के साथ कोयला उत्पादन करेगा।
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गेवरा व दीपका की सुनवाई 14 अगस्त को
1980 में शुरू हुई गेवरा खदान की उत्पादन क्षमता 10 मिलियन टन प्रतिवर्ष थी। बाद में इसे बढ़ाकर 20 एमटी किया गया। चरणबद्ध ढंग से खदान का विस्तार करते हुए 20 से 35 एमटी, 35 से 40 एमटी, 40 से 41 मिलियन टन प्रतिवर्ष किया गया। बीते 21 फरवरी को 41 से बढ़ाकर 45 मिलियन टन प्रतिवर्ष उत्पादन करने की अनुमति प्रदान की गई। इसी तरह गेवरा से अलग खदान का दर्जा पाने के बाद दीपका में वर्ष 2009 में 20 से 25 एमटी तथा वर्ष 2012 में 25 से 30 मिलियन टन उत्पादन क्षमता बढ़ाने की अनुमति दी गई। इसके बाद 20 फरवरी 2018 को 31 से 35 मिलियन टन प्रतिवर्ष करने की अनुमति प्रदान कर दी गई। इसके खिलाफ भी एनजीटी में दायर याचिका की सुनवाई 23 जुलाई को हुई और आगामी तिथि 14 अगस्त निर्धारित की गई है।
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क्या है ऑफिस मेमोरंडम
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने 19 सितंबर 2017 को एक मेमोरंडम जारी किया। इसके तहत किसी भी कोल माइंस को वर्तमान में स्थापित क्षमता में जनसुनवाई की प्रक्रिया पूरी किए बगैर उत्पादन बढ़ाने की छूट दी गई है। इसमें संबंधित खदान वर्तमान क्षमता का 40 फीसदी उत्पादन बढ़ा सकती है। कुसमुंडा खदान की भी इसी नियम के तहत उत्पादन क्षमता बढ़ाई गई।
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नियम कायदे ताक में रख कर एसईसीएल कुसमुंडा परियोजना की उत्पादन क्षमता में लगातार बढ़ोतरी की जा रही है। बगैर जनसुनवाई उत्पादन क्षमता बढ़ाए जाने पर एनजीटी में चुनौती दी गई थी। यह मामला अभी विचाराधीन है। इसके बाद भी केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने खदान विस्तार को अनुमति प्रदान कर दी।
- लक्ष्मी चौहान, सचिव, सार्थक
