नईदुनिया प्रतिनिधि, कोरबा। तीन आदिवासी युवतियों की मानव तस्करी के मामले में गिरफ्तार की गई दो नन में एक प्रीति मेरी करीब आठ साल पहले कोरबा के सुदूर वनांचल क्षेत्र में सक्रिय थी। बेहतर स्वास्थ्य के नाम पर ग्राम कुटुरूंवा में मिशनरी अस्पताल चलाते थे। इस दौरान कई आदिवासी परिवार को बरगला कर मतांतरित करने का गुप्त एजेंडा चलता रहा। सरकारी अस्पताल खुलने के बाद मिशन का अस्पताल बंद कर दिया गया। इसके बाद मेरी को मिशनरी ने मध्य प्रदेश भेज दिया गया।
दुर्ग रेलवे स्टेशन में नारायणपुर के ग्राम मरकाबोड़ में रहने वाली तीन आदिवासी युवतियों को आगरा ले जाने की साजिश रची गई थी, पर इससे पहले पुलिस ने नन प्रीति मेरी व प्रीति मेरी, वंदना फ्रांसिस के साथ युवक सुखमन मंडावी को गिरफ्तार कर लिया। बजरंग दल के सदस्यों की सक्रियता से मानव तस्करी के इस मामले का पर्दाफाश हुआ।
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आरोप है कि नन तीनों युवतियों को बहला फुसलाकर मतांतरण कराने आगरा ले जाने की तैयारी में थीं। जीआरपी को पूछताछ के दौरान नन प्रीति मेरी से आधार कार्ड मिला है। इसमें कोरबा जिले के नकटीखार का पता लिखा है।
नईदुनिया ने कोरबा से प्रीति के जुड़े तार के संबंध में जानकारी जुटाई, तब पता चला कि करीब 16 साल पहले मेरी यहां के सुदुर वनांचल क्षेत्रों में सक्रिय थी। जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर ग्राम कुटरूंवा में असीसी सिस्टर आफ मेरी इमाकुलेट संस्था केरल का अस्पताल संचालित था। इसकी मुखिया नन प्रीति को बनाया गया था। वह शहर के निकट नकटीखार गांव में संचालित मिशनरी के संत फ्रांसिस स्कूल के कंपाउंड में रहने वाली अन्य नन के साथ रहती थी।
यहां से वह आना जाना करती थी, इस वजह से उसने अपने आधार कार्ड में नकटीखार पता दर्ज कराया था। करीब आठ साल पहले मिशनरी का अस्पताल बंद हुआ और नन मेरी को मध्य प्रदेश डिंडौरी जिला के दुहनिया भेज दिया गया। संत फ्रांसिस स्कूल की प्राचार्य सिस्टर लिजा का कहना है कि मेरी हमारे स्कूल में अध्यापन कराने वाली शिक्षिका नन के साथ तो रहती थी पर स्कूल से उनका कोई सरोकार नहीं था।