
डिजिटल डेस्क। सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी को मानवता और समानता का संदेश देने वाला महान संत माना जाता है। हर साल उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर ज्योति ज्योत गुरपुरब धूमधाम से मनाया जाता है।
इतिहास में दर्ज है कि अपनी अमरकंटक से जगन्नाथपुरी यात्रा (1506 ई.) के दौरान गुरु नानक देव जी ने छत्तीसगढ़ के बसना के पास स्थित गढ़फुलझर गांव में दो दिन विश्राम किया था।

गुरु नानक देव जी के प्रवास से जुड़े दस्तावेजों में यह प्रमाण मिलता है कि उन्होंने गढ़फुलझर गांव (महासमुंद) में विश्राम किया था। बीते वर्ष इस स्थान पर ‘नानक सागर साहिब गुरुद्वारा’ के रूप में एक भव्य तीर्थस्थल बनाने की घोषणा की गई थी। जिस स्थान पर वे ठहरे थे, उसे अब ‘नानक डेरा’ के नाम से जाना जाता है, जबकि पूरे गांव का नाम ‘नानक सागर’ रखा गया है।
महासमुंद जिले के बसना-पदमपुर मार्ग से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित नानकसागर गांव का इतिहास गुरु नानक देव जी से जुड़ा है। स्थानीय लोगों के अनुसार, इस गांव की लगभग पांच एकड़ भूमि राजस्व रिकॉर्ड में गुरु नानक देव जी के नाम पर दर्ज है। यहां के निवासी उन्हें स्नेहपूर्वक ‘गुरु खाब’ के नाम से संबोधित करते हैं।
गढ़फुलझर से सटे नानक सागर गांव में एक ऐतिहासिक चबूतरा है, जहां गुरु नानक देव जी के बैठने की मान्यता है। आज भी गांववाले सिर ढककर वहां बैठते हैं और कहते हैं कि इस स्थान पर बैठने से मन को अद्भुत शांति मिलती है।
यह गांव एकता और सद्भाव का प्रतीक है। यहां आज तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई, और किसी विवाद की स्थिति में लोग उसी चबूतरे पर बैठकर समस्या का हल निकालते हैं।
गांव की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां के सभी घर गुलाबी रंग से रंगे हुए हैं, इसलिए इसे लोग प्यार से ‘गुलाबी गांव’ कहते हैं। सफाई व्यवस्था भी इतनी बेहतर है कि पूरे गांव में कहीं भी कचरा दिखाई नहीं देता।
गुरु नानक देव जी के आगमन की पुष्टि होने के बाद गढ़फुलझर अब एक ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान हासिल कर रहा है। यहां एक भव्य गुरुद्वारा, लंगर हॉल, धर्मशाला, मल्टी-स्पेशियलिटी अस्पताल और विद्यालय बनाने की योजना पर काम चल रहा है।
यह पवित्र स्थल अब न केवल श्रद्धा का प्रतीक बन चुका है, बल्कि सेवा और एकता का संदेश देने वाला गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का जीवंत उदाहरण भी है।