महासमुंद। पुरा नगरी सिरपुर स्थित बोल बम परिसर में चल रहे श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह में सती कथा का बखान करते हुए व्यासपीठ से दुर्गा प्रसाद तिवारी ने कहा कि जब दक्ष प्रजापति ने अपनी पुत्री सती का अपमान किया और भगवान शिव के प्रति तिरस्कार भाव प्रकट किया तो सती दुखी हुई।
उन्होंने योगमाया के द्वारा अपने देह का त्याग किया। सती के देह त्याग के बाद यज्ञ स्थल में खलबली मच गई। जब खबर भगवान भोलेनाथ को मिली तो वे दुखी हुए और क्रोध में आकर वीरभद्र को प्रकट किया। वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर काटकर यज्ञ का विध्वंस किया।
भगवान शिव यज्ञ स्थल पर पहुंचे और सती के वियोग में शोकाकुल हो गए। उपस्थित देव गणों ने भगवान शिव से यज्ञ पूर्ण करने के लिए दक्ष प्रजापति को पुनः जीवित करने का अनुरोध किया। इस पर भगवान भोलेनाथ ने उन्हें बकरे का सिर लगाकर जीवित किया। इसके बाद यज्ञ पूर्ण हुआ।
सही मायने में बकरा हमेशा मैं मैं करता है इसलिए उसे अहंकार का प्रतीक बताया गया है। दक्ष प्रजापति भी अहंकार के वशीभूत हो गए थे। जिसके कारण उसे बकरे का सिर लगाकर उनके अहंकार को दूर किया गया। इसके बाद दक्ष प्रजापति भगवान शिव का गुणगान करने लगे।
इधर सती के वियोग में व्याकुल होकर शिवजी उनकी शरीर को लेकर इधर उधर भटकने लगे। इस पर भगवान विष्णु ने सती के अंगों को 108 भागों में विभक्त किया। जहां जहां सती के अंग गिरे वह शक्तिपीठ कहलाए। आज भी हमारे देश में 51 शक्तिपीठ विद्यमान है।
जहां माता का वास है जहां जहां पर अंग गिरे हैं वह शक्ति पीठ के रूप में पूजे जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में मां सती का दांत गिरा था इसलिए दंतेश्वरी शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है।
व्यासपीठ से तिवारी ने सती से पार्वती जन्म कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए बताया कि माताओं को मायके का अपमान सहन नहीं होता।
जब माता सती अपने पिता दक्ष प्रजापति के यहां पहुंची तो उसे तिरस्कार मिला। मायके में माताओं को कोई कठोर वचन बोल दे उन्हें अपार दुख होता है। कथा सुनने बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुच रहे हैं।