मुंगेली। नगर से 16 किमी की दूरी पर स्थित सेतगंगा में श्री राम जानकी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मंदिर की दीवार में रावण की मूर्ति है,ये मंदिर अपने आप में अनूठी मंदिर है जहां द्वारपाल रावण है।
श्रीराम जानकी के साथ मंदिर के मुख्य द्वार में दशानन रावण पद्मासन की मुद्रा में है। वहीं मंदिर के मुख्य द्वार में विराजित रावण की मूर्ति को लेकर यहां के स्थानीय लोग यह तर्क भी देते हैं कि वैसे तो रावण को महापंडित,महाप्रतापी और महाशक्तिशाली कहते थे लेकिन रावण के विनाश के पीछे मुख्य कारण उसका अहंकार ही था यही वजह है कि रावण के अहंकार के चलते उसका और उसके कुल का नाश हुआ इसलिए मंदिर में दर्शन करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के मुख्यद्वार में प्रतीक के रूप में रावण की मूर्ति विराजित की गई है। इसका अर्थ यही है कि जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में श्रीराम और जानकी के दर्शन करने आते हैं वे अहंकार को छोड़कर शुद्ध मन से भगवान का दर्शन करें।
पुजारी राधेश्याम महराज ने मंदिर के इतिहास 11 सौ वर्ष पुराना बताते हुए नवमीं में श्रद्धालुओं की जुटनी की बात कही। उन्होंने बताया कि स्थापना फणी नागवंशी राजा के द्वारा कराया गया था। इस मंदिर का निर्माण ग्रेनाइट पत्थर से किया गया है। इस मंदिर में श्रीराम जानकी के अलावा श्रीराधाकृष्ण ,शिव पार्वती परिवार सहित विराजित है। वहीं भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा भी विराजित है। मंदिर के बनावट ग्रेनाइट पत्थर से की गई है। मंदिर प्रांगण के खंभों में भगवान ब्रम्हा,गरुण एवं प्रथमपूज्य भगवान गणेश की मूर्तियां भी स्थापित है। वहीं मंदिर के सामने श्रीहनुमान लला जी भी विराजमान हैं। साथ ही मंदिर के पास में मां गंगा की कुंड निर्मित है जिसके नाम से गांव का सेतगंगा पड़ा। इसमें बारहों महीने जल भरा रहता है। इस कुंड के बारे में प्राप्त जानकारी के अनुसार मंदिर निर्माण कराने वाले फणी नागवंशी राजा को स्वयं मां गंगा ने स्वप्न देकरअपने होने की जानकारी दी थी। इसके बाद से ही इस जगह पर राजा के द्वारा भव्य मंदिर तथा श्वेत गंगा कुंड का निर्माण कराया गया था। वहीं इस मंदिर प्रांगण में माघी पूर्णिमा के अवसर पर पांच दिवसीय भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा श्रीराम नवमी एवं जन्माष्टमी सहित अन्य आयोजन भी धूमधाम से मनाया जाता है। गांव के लोगों ने बताया कि छत्तीसगढ़ सरकार के पर्यटन विभाग के द्वारा इस स्थल को पर्यटन स्थल तो घोषित किया गया है लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा इस जगह में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं कराया गया है। यही वजह है कि ऐतिहासिक स्थल शासकीय विकास से अभी तक अछूता है। इस मंदिर प्रांगण में जो भी निर्माण कार्य हुए हैं आसपास क्षेत्र के ग्रामीणों के सहयोग एवं यहां दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा दान की गई राशि से हुआ है। वहीं आसपास के ग्रामीण अलावा मुंगेली के पड़ोसी जिले सहित पूरे प्रदेश में मंदिर की प्रसिद्धि दूर दूर तक फैली हुई यही वजह है कि इस मंदिर के दर्शन को लोग बड़ी संख्या में पहुंचते हैं । वही यहां आनेवाले श्रद्धालु सत्येंद्र केशरवानी ने बताया कि इस मंदिर में दर्शन करने से सभी की मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर में आकर लोगों को शांति मिलती है।
वहीं इस मंदिर के सेवक के रूप में कार्य करने वाले केशव सिंह एवं नीरज केशरवानी ने बताया कि ये मंदिर ऐतिहासिक है। देश का पहला ऐेसा मंदिर है जहां श्रीराम और रावण दोनों की प्रतिमा है यहां के मुख्यद्वार में जिस तरह से पदमासन की मुद्रा में दशानन रावण की प्रतिमा विराजित है ऐेसी प्रतिमा भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व के शायद ही किसी मंदिर में देखने को मिलेगी। वहीं इस मंदिर के निर्माण में जिस तरह से बेशकीमती ग्रेनाइट पत्थर में चित्र उकेरे गये हैं अपने आप में अदभूत है। यही वजह है कि जो भी श्रद्धालु इस मंदिर में आते हैं इस मंदिर में आने के बाद इसकी भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । यही वजह है कि मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र बिंदु है। उन्होंने कहा छत्तीसगढ़ में पुरातात्विक धरोहरों की कमी नहीं हैं जरूरत है उन्हें पहचान दिलाने की है। जिले में इसी प्रकार से और भी मंदिर है। ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा जिस तरह से इस ऐतिहासिक धरोहर की उपेक्षा की जा रही है, लोगों की भावनाएं आहत हो रही है। अगर प्रदेश सरकार इस धरोहर को बचाने एवं इसके विकास को लेकर कोई सार्थक कदम उठाए तो ये स्थान भ्ाारत मे ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त कर सकती है साथ ही इस स्थान के महत्व के बारे में पूरी दुनिया को जानकारी होगी। इससे मुंगेली जिला ही नहीं बल्कि पूरा प्रदेश इस ऐतिहासिक मंदिर के चलते पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त कर एक अलग पहचान स्थापित कर सकती है।