धैर्यपूर्वक कार्य करने से सफलता निश्चित : चित्रलेखा
यदि आप शास्त्रों द्वारा निर्देशित एवं आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रमाणित भक्तिमय सेवाओं एवं कर्तव्यों को धैर्यपूर्वक करते हैं तो निश्चिन्त रहिये सफलता तय है। उक्त उदगार श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन व्यासपीठ से कथा वाचिका चित्रलेखा देवी ने कही।
By Yogeshwar Sharma
Edited By: Yogeshwar Sharma
Publish Date: Thu, 21 Sep 2023 12:33:49 AM (IST)
Updated Date: Thu, 21 Sep 2023 12:33:49 AM (IST)

लोरमी(नईदुनिया न्यूज)। यदि आप शास्त्रों द्वारा निर्देशित एवं आध्यात्मिक गुरु द्वारा प्रमाणित भक्तिमय सेवाओं एवं कर्तव्यों को धैर्यपूर्वक करते हैं तो निश्चिन्त रहिये सफलता तय है। उक्त उदगार श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन व्यासपीठ से कथा वाचिका चित्रलेखा देवी ने कही।
उन्होंने कहा धैर्य एवं उत्साहपूर्वक भक्ति करनी चाहिए। उत्साही होना चाहिए सुस्ती कोई सहायता नहीं करेगी। आपको बहुत उत्साही होना होगा। यदि आप उत्साही और धैर्यवान हैं और अब जब आपने भक्तिमार्ग को अपना लिया है, तो सफलता निश्चित ही है। उन्होंने कथा की कड़ी में सर्वप्रथम गजेन्द्र मोक्ष की कथा श्रवण कराते हुए बताया कि किसी भी योनि का जीव भगवान को प्राप्त कर सकता है। जिस तरह गजेन्द्र नाम के हाथी को तालाब में स्नान कर रहा था तब ग्राह नामक हाथी ने उसके पांव पकड़ लिया और सभी से मदद मांगने के बाद भी किसी ने मदद नहीं की तब गजेन्द्र ने भगवान को खुद को समर्पित किया। और भगवान ने गजेन्द्र की रक्षा की। इस प्रकार भगवान को प्राप्त करने के लिए जीव योनि का कोई महत्त्व नहीं, उच्च योनि से लेकर निम्न योनि तक का कोई भी प्राप्ति कर सकता है। कथा के आगे उन्होंने समुद्र मंथन के बारे में बताया कि समुद्र मंथन में एक तरफ देवता और एक तरफ राक्षस रहे। जहां भगवान ने मोहिनी अवतार ग्रहण कर के देवताओं को अमृत पान कराया। इसके बाद उन्होंने वामन अवतार का कथा सुनाई।
भगवान वामन ने राजा बलि से संकल्प कराकर तीन पग भूमि दान में मांगी और इस तीन पग में भगवान वामन ने पृथ्वी, आकाश और तीसरे पग में राजा बलि को मापा और बलि को सुतल लोक का राजा बना के खुद वहां के द्वारपाल बने। पश्चात देवीजी ने संक्षिप्त में प्रभु श्रीराम अवतार का श्रवण कराया। बताया कि भगवान राम अपने आचरण के लिए मर्यादा पुरूषोत्तम कहे जाते हैं क्योंकि भगवान राम सभी नैतिक गुणों से संपन्न हैं। प्रभु राम के द्वारा सभी दैत्यों का संहार किया गया और मां सीता के हरण के बाद हनुमान से प्रभु की भेंट हुई व लंका दहन के साथ के पश्चात रावण वध का श्रवण कराकर भगवान राम के जीवन का संक्षिप्त रूप मे श्रावण कराया और कथा के विश्राम में कृष्ण जन्म की कथा को स्पर्श करते हुए बताया क़ि द्वापर युग में कंस जैसे दुष्ट पापी का अत्याचार बढ़ जाने पर प्रजा की आग्रह भगवान ने नटखट रूप में अवतार लिए और वासुदेव भगवान कृष्ण को गोकुल लेकर गए वहां से यशोदा मैया को जन्मी योगमाया को अपने पास ले आए और कृष्ण को उनके पास रख के वापस आ गए फिर कथा स्थल में सभी ने कृष्ण जन्मोत्सव का आनंद लिया और इसके बाद कथा का विश्राम हुआ।