रायगढ़ (नईदुनिया न्यूज)। यूं तो भारत को संतों और महात्माओं का देश माना जाता है। संतों के चमत्कार देखे भी जाते हैं। ऐसी एक तपस्वी रायगढ़ से लगे कोसमनारा में सालों से अन्ना त्याग कर साधना में लीन है। ऐसे बहुत कम योगी होते हैं जो सभी भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागकर तप में लीन हो जाते हैं। रायगढ़ के तपस्वी सत्यनारायण बाबा भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं। वे न सिर्फ लोगों की आस्था का केंद्र है बल्कि विज्ञान को भी चुनौती दे रहे हैं।
रायगढ़ शहर से छह किलोमीटर दूर कोसमनारा के हठयोगी बाबा सत्यनारायण के प्रति लोगों की आस्था दिनों दिन बढ़ती जा रही है। उन्हें कठिन तपस्या में लीन दर्शन पाने दूर-दराज से लोग आते हैं। हर मौसम में बाबा सत्यनारायण इसी तरह जप में लीन रहते हैं। लोग बाबा को शिव भक्त मानते हैं। बाबा को मानने वालों की संख्या काफी ज्यादा है। बाबाधाम कोसमनारा में बाबा सत्यनारायण का 37वां जन्मोत्सव 12 जुलाई को मनाई गई। कोविड काल के कारण नियमों के पालन में खासा ध्यान रखा गया।
बाबाधाम सेवा समिति के पदाधिकारियों ने बताया कि सुबह से ही यहों भक्त ों के आने का सिलसिला शुरू हो गया। इसके लिए पहले से ही इंतजाम किए गए थे।
कैसे बने हलधर से बाबा सत्यनारायण
कोसमनारा से 19 किलोमीटर दूर ग्राम देवरी, डूमरपाली निवासी किसान दयानिधि साहू एवं हंसमती साहू के परिवार में 12 जुलाई 1984 को हलधर का जन्म हुआ। 16 फरवरी 1998 को आम दिनों की भांति घर से स्कूल जाने निकले, लेकिन स्कूल न जाकर अपने ईष्ट देव का नाम जापने उचित स्थान की तलाश में चल पड़े। पैतृक ग्राम डुमरपाली से 18 किमी दूर कोसमनारा ग्राम के उजाड़ जगह पर तलाश पूरी हुई और इसी स्थल को अपनी तपोस्थली बना लिया। इसी दिन एक पत्थर को शिवलिंग मानकर अपनी जिह्वा अर्पित कर तपस्या में लीन हो गए। यहीं से उनके बाबा सत्यनारायण बनने की कहानी शुरू हुई। लगभग एक सप्ताह बाद एक सेवक ने शिवलिंग के पास बाबा की आज्ञा से धुनि प्रज्जावलित कर दी। यह आज भी अखण्ड प्रज्जावलित है। शुरू में बाबा की तपस्या को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। बाबा को साधना से हटाने का प्रयास प्रशासन एवं कई लोगों ने किया। लेकिन बाबा की तपस्या को देखकर श्रद्घालुओं की संख्या लगातार बढ़ती गई और बाबा की 24 घंटे चौकसी होने लगी। अब बाबा की ख्याति चारों ओर फैलने लगी है।
श्री 108 की उपाधि
श्रद्घालु बताते हैं कि बाबा की ख्याति सुनकर असम कामाख्या से 108 मौनी कलाहारी बाबा (108 वर्ष) भी कोसमनारा आए और बाबा की तपस्या से प्रभावित होकर दो से आठ अपै्रल 2003 तक 108 सतचण्डी महायज्ञ किया । बाबा सत्यनारायण को इस दौरान श्री 108 की उपाधि दी और अपने धाम चले गए। तब से आज तक प्रतिवर्ष उनके अनुयायी यहां आते हैं।
धीरे-धीरे संवरता रहा धाम
कोसमनारा स्थित जिस स्थान पर बालक हलधर ने तप प्रारंभ की, उस स्थल पर धीरे-धीरे निर्माण शुरू हुआ, सबसे पहले कुटिया बनी, फिर पानी की व्यवस्था हुई। धीरे-धीरे बाबा धाम अपना स्वरूप लेने लगा। पत्थरों की जगह शिवलिंग की स्थापना हो गई। धुनि की जगह हवन कुण्ड बना दिया गया। बाबा खेत की जमीन पर बैठे थे। भक्तों के अनुरोध पर चबूतरा पर बैठने को राजी हुए। वहीं जगत जननी अष्टभुजी दुर्गा माता मंदिर का निर्माण 2009 में पूर्ण हुआ।
खुले आसमान के नीचे साधना
बाबा 16 फरवरी 1998 से अब तक तीनों मौसम ग्रीष्म, वर्षा एवं ठंड ऋ तु में खुले आसमान के नीचे निरंतर सुबह सात से रात्रि 12बजे तक तपस्यारत रहते हैं। बाबा रात्रि 12 से दो बजे तक भक्त ों से मुलाकात करते हैं। बाबा अपनी बात भक्त ों को ईशारे से समझाते हैं। शनिवार को बाबा अपने भक्त ों से रात्रि साढ़े 12 से सुबह पांच बजे तक मिलते हैं।