0 जिले के उद्योग प्रतिदिन 16 हजार मिट्रिक टन उगल रहे राख
0 4 प्रतिशत फ्लाई ऐश का ईंट बनाने में होता है उपयोग
रायगढ़ (निप्र)। जिले के उद्योगों से प्रतिदिन 16 हजार मिट्रिक टन फ्लाई ऐश निकलता है। फ्लाई ऐश जिले के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। फ्लाई ऐश के प्रदूषण से क्षेत्रवासी हलाकान है। दरअसल जिले में फ्लाई ऐश का सही तरीके से उपयोग नहीं होने व कंपनी प्रबंधन द्वारा नियम कानून को धता बताते हुए अनियमित तरीके से डंप करने से सर्वाधिक परेशानी होती है। तमनार क्षेत्र के उद्योगों द्वारा वन भूमि पर भी डंप करने की शिकायत हो चुकी है।
फ्लाई ऐश की समस्या से निजात दिलाने बीते दिवस रायपुर राजधानी में एक बैठक हुई थी। जिसमें जिले के पर्यावरण अधिकारी भी शामिल हुए थे। बैठक में फ्लाई ऐश के प्रबंधन को लेकर व्यापक मंत्रणा की गई। क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार जिले में फ्लाई ऐश से ईंट का निर्माण तो किया जाता है, पर कुल फ्लाई ऐश का मात्र 4 प्रतिशत ही ईंट बनाने में उपयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में हजारों मिट्रिक टन फ्लाई ऐश को कंपनी प्रबंधनों द्वारा यहां वहां डंप किया जाता है। यह डंप फ्लाई ऐश हवा से उड़कर न सिर्फ आबो हवा को प्रभावित करती है इसके अलावा बारिश में यह फ्लाई ऐश पानी से बहकर नदी नालों में जाती है। फ्लाई ऐश का दूषित पानी भूमिगत जल में समाहित होता है जो पानी को भी प्रभावित करता है।
फ्लाई ऐश ईंट बनाने प्रोत्साहन
उद्योगों से हर रोज बड़े पैमाने पर निकलने वाले फ्लाई ऐश को खपाने व प्रबंधन को फ्लाई ऐश ईंट बनाने प्रोत्साहित करने कहा गया है। दरअसल अब तक फ्लाई ऐश का महज 4 प्रतिशत ईंट बनाने में उपयोग होता है। प्रशासन द्वारा कुल उत्पादित होने वाले फ्लाई ऐश का दस प्रतिशत राख का का उपयोग ईंट बनाने उपयोग में लाने का लक्ष्य रखा गया है।
इन बड़े पॉवर प्लांट से निकलती है
जिले में स्थित इन बड़े पॉवर प्लांट से व्यापक पैमाने पर फ्लाई ऐश निकलती है। प्रतिदिन 16 हजार मिट्रिक टन फ्लाई ऐश निकलती है जिसका प्रबंधन करना एक बड़ी चुनौती है। बड़े पॉवर प्लांट में से जेएसपीएल, जेपीएल, मोनेट, कोरबा वेस्ट, जेएसपीएल डोंगामहुआ आदि से रोज फ्लाई ऐश निकलती है। एक जानकारी के मुताबिक एक मेगावाट से 10 मिट्रिक टन राख निकलती है। वर्तमान में जिले के पॉवर प्लांट से 1600 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है।
गिट्टी बनाने होगी पहल
रायपुर में हुई बैठक के बाद अब जिले में फ्लाई ऐश से ईंट बनाने के साथ गिट्टी बोल्डर बनाने का भी प्रयोग किया जाएगा। मिली जानकारी के अनुसार फ्लाई ऐश से अभी छत्तीसगढ़ में कहीं भी गिट्टी नहीं बनाई जाती, लेकिन फ्लाई ऐश से ईंट के साथ गिट्टी बनाने का सफल प्रयोग हो चुका है। जल्द ही इसे प्रदेश व रायगढ़ में शुरू करने की योजना है। उच्च स्तरीय बैठक में इसके लिए फ्लाई ऐश से ईंट बनाने और गिट्टी उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना है।
कंपनी को देना होगा पहुंचा कर
मिली जानकारी के अनुसार दिसम्बर 2017 के बाद से कंपनियों को ईंट बनाने व गिट्टी बनाने वाली फैक्ट्रियों को उनके निर्माण स्थल तक निःशुल्क पहुंचाकर देने भारत सरकार ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। यह नोटिफिकेशन दिसम्बर 2017 से लागू हो जाएगा।
बड़ी सड़कों के निर्माण में उपयोग नहीं
नियम के अनुसार सरकारी निर्माण की सभी एजेंसी को फ्लाई एश का उपयोग करना होता है पर सड़कों के निर्माण में फ्लाई ऐश का उपयोग नहीं के बराबर होता है। इसका ज्वलंत उदाहरण रायगढ़ से सरईपाली नेशनल हाईवे का निर्माण है जिसमें फ्लाईएश की जगह रेत का उपयोग किया जा रहा है। फ्लाई ऐश से जहां रोड की पकड़ मजबूत रहती है वहीं ज्यादा मात्रा में फ्लाई एश का उपयोग किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार निर्माण कंपनी का दावा है कि उनके कांट्रेक्ट में कहीं भी फ्लाई ऐश के उपयोग की बात नहीं है। ऐसे में पर्यावरण विभाग संबंधित निर्माण कंपनी को नियमों का हवाला देते हुए नोटिस दे सकती है।
वर्तमान में कुल फ्लाई ऐश का मात्र 4 प्रतिशत का ही उपयोग ईंट बनाने में उपयोग होता है आने वाले समय में गिट्टी बनाने पर जोर दिया जाएगा। नोटिफिकेशन के बाद कंपनी प्रबंधन को कार्य स्थल तक फ्लाई ऐश पहुंचाकर बिना किसी शुल्क के देना होगा।
आरके शर्मा
क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी