
रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 17 साल बाद भी दक्षिण बस्तर का सुकमा जिला सरकार की पहुंच से दूर बना हुआ है। सुकमा जिले में सिर्फ कोंटा तक 80 किमी हाइवे पर सरकार का वजूद दिखता है। हालांकि हाइवे को भी जब चाहे तब नक्सली रोक देते हैं। इसी हाइवे के किनारे जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर बसे केरलापाल गांव से 2011 में कलेक्टर को नक्सली उठा ले गए थे और सरकार को घुटनों पर ला दिया था।
खुद मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह मानते हैं कि सुकमा में नक्सलवाद के खिलाफ सबसे बड़ी जंग लड़ी जा रही है। सुकमा के अंदरूनी इलाके में चार सौ से ज्यादा गांवों में नक्सलियों की जनताना सरकार चलती है। यहां आदिवासी सरकार को अपना दुश्मन मानते हैं और नक्सलियों को रहनुमा। यही वजह है कि नक्सली जब चाहे तब बड़ी वारदात को अंजाम देकर आराम से जंगल में छुप जाते हैं।
सुकमा जिले में जगरगुंडा को नक्सलियों की राजधानी माना जाता है। 2005 तक इस इलाके का यह सबसे बड़ा वनोपज केंद्र रहा। जगरगुंडा में 1953 से थाना है। जगरगुंडा के दोनों ओर सैकड़ों किमी जंगलों में बसे गांवों में न सड़क है, न बिजली। अधिकांश गांवों में हैंडपंप भी नहीं हैं। चिंतलनार, चिंतागुफा और पोलमपल्ली इस रोड पर पड़ने वाले अन्य थाने हैं।
इन थानों के दोनों ओर जंगल में बसे गांव नक्सलियों के कब्जे में हैं। बुरकापाल में सीआरपीएफ का कैंप खुलने के बाद यह माना गया कि एरिया डॉमिनेशन हो गया है तो नक्सली पीछे हट जाएंगे, लेकिन 24 अप्रैल को जब नक्सलियों ने बुरकापाल गांव में ही सीआरपीएफ पर हमला कर दिया। जगरगुंडा से कोंडासावली (दंतेवाड़ा की ओर) और बासागुड़ा (बीजापुर की ओर) जाने वाले रास्तों पर पहले बस चलती थी, छत्तीसगढ़ बनने के बाद ये रास्ते पूरी तरह बंद हो गए।
दोरपापाल-जगरगुंडा मार्ग पर ही चिंतलनार कैंप से 5 किमी दूर ताड़मेटला में नक्सलियों ने 2010 में सीआरपीएफ 76 जवानों की हत्या कर दी थी।
सीआरपीएफ के एक बड़े अफसर ने कहा कि अंदरूनी इलाकों में सरकार की पहुंच अभी दूर की कौड़ी ही लगती है। यहां कौन दोस्त है, कौन दुश्मन पता ही नहीं चलता। इस इलाके में राशन दुकानों को बंद कर दिया गया है। स्कूलों को जिला मुख्यालय और हाइवे पर शिफ्ट कर दिया गया है।
जंगल में बसे गांवों में सरकार की कोई पकड़ नहीं है। सुकमा और कोंटा विकासखंड सैकड़ों गांवों में नक्सली स्मारक और लाल बैनर दिखते हैं।
सैकड़ों गांवों में लाल सलाम
सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर के बीच घने जंगलों में बसे सैकड़ों गांवों में नक्सली समानांतर सरकार चला रहे हैं। सुकमा जिले के डब्बाकोंटा, दुलेड़, मोरपल्ली, सुरपनगुड़ा, पूवर्ती, कुन्न्ा, धर्मापेंटा, गोलापल्ली, किस्टारम, भेज्जी, गोरखा, कन्हाईगुड़ा, पुरंगल, बंडा, केड़वाल, पिन्न्ाभेज्जी, दुब्बाटोटा जैसे गांवों में दिन में भी नक्सली आवा-जाही रहती है। नक्सलियों की जनताना कमेटी इन गांवों का प्रशासन चलाती है। यहां जनता की सेना है, जो नक्सल आक्रमणों में उनके साथ पारंपरिक हथियार लेकर लड़ती है।
सुकमा कोर एरिया है। जवानों ने मुकाबला किया। बुरकापाल में कई नक्सली भी मारे गए हैं। ये अलग बात है कि नक्सली शव घसीट ले गए। वहां वार जोन है। हम जितना हो सकता है कर रहे हैं। अभी इससे ज्यादा नहीं कह सकता।
-डीएस चौहान, आईजी सीआरपीएफ
- पुलिस कैंप- 1.पोलमपल्ली 2.कांकेर लंका, 3.चिंतागुफा 4.बुरकापाल 5.चिंतलनार, 6.जगरगुंडा, 7.गोलापल्ली 8.किस्टारम 9.भेज्जी 10.दोरनापाल 11.कोंटा 12.एर्राबोर 14.इंजरम
- नक्सल कैंप जंगल में- 15.जगरगुंडा 16.डब्बाकोंटा 17.फंदीगुड़ा 18.बंंडा 19.धर्मापेंटा 20.सिंगावरम 21.पुवर्ती 22. कोंडासावली 23. दुलेड़ 24. पिन्न्ा भेज्जी 25. नहाड़ी 26. गोरखा