रायपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि
महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, राजधानी में स्थित है। यह पुरातात्विक संग्रहालय है, जो छत्तीसगढ़ की पहचान है। इसे 1875 में राजा महंत घासीदास ने बनवाया था। वर्ष 1953 में रानी ज्योति और उनके पुत्र दिग्विजय ने इस भवन का पुनर्निर्माण करवाया था। दिग्विजय सिंह राजनांदगांव के राजा थे। उन्होंने ही अपने पिता महंत घासीदास की संजोई विरासत को संग्रहालय के रूप में राजधानी में स्थापित करवाया। इसकी वजह थी कि दिग्विजय सिंह की कोई संतान नहीं हुई, आखिरकार छत्तीसगढ़ की एक रियासत का अंत हो गया।
इस संग्रहालय में हथियारों के नमूने, प्राचीन सिक्के, मूर्तियां, नक्काशी आदि प्रदर्शित हैं। बस्तर, सरगुजा के आदिवासियों के रहन-सहन को मूर्तियों और चित्रकारी के माध्यम से दर्शाया गया है। साथ ही क्षेत्रीय आदिवासी जनजातीय परम्पराओं को प्रदर्शित करने वाले कई प्रादर्श यहां रखे गए हैं। सन 1953 को इस संग्रहालय भवन का लोकार्पण गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने किया था। संग्रहालय में 17279 पुरावशेष एवं कलात्मक सामग्रियां हैं। इनमें 4324 सामग्रियां गैर पुरावशेष हैं तथा शेष 12955 पुरावशेष हैं। इसे बीते दिनों रिनोवेट करवाकर और भी आकर्षक बनाया गया है। इसका शुल्क भी बढ़ाकर 10 रुपये कर दिया गया है।
परिसर में हैं कई प्रतिकृतियां-
घासीदास संग्रहालय परिसर में छत्तीसगढ़ की कई ऐतिहासिक धरोहरों की प्रतिकृतियां बनाकर स्थापित की गई हैं। इनमें सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर, भोरमदेव मंदिर प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा परिसर में उन मूर्तियों को भी रखा गया है, जो खुदाई के दौरान मिलीं।