आचार्य विशुद्ध सागर का प्रवचन में संदेश, जब तक राग तब तक आनंद, द्वेष होते ही कलह
जब पिता बूढ़ा हो जाए और बेटा अपने पिता से कहे कि जमीन, जायदाद के कागजात और तिजोरी की चाबी निकालो तो दुख होता है।
By Ashish Kumar Gupta
Edited By: Ashish Kumar Gupta
Publish Date: Wed, 24 Aug 2022 04:56:50 PM (IST)
Updated Date: Wed, 24 Aug 2022 04:56:50 PM (IST)

रायपुर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। जब पिता बूढ़ा हो जाए और बेटा अपने पिता से कहे कि जमीन, जायदाद के कागजात और तिजोरी की चाबी निकालो तो दुख होता है। न संतान में, न धन-संपत्ति में आनंद है, जब तक राग है तब तक आनंद है और जब द्वेष हुआ तो कलह प्रारंभ हो जाता है। उक्त विचार फाफाडीह स्थित दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने व्यक्त किया।
आचार्य ने कहा कि जिनके पास अधिकार है, उसके पास प्रज्ञा नहीं है। जिसके पास प्रज्ञा है, उनके पास अधिकार नहीं है। जो सलाहकार रखते हैं, वे अपनी बुद्धि से नहीं चलते हैं। अपनी बुद्धि से न चलकर पर की बुद्धि से चलोगे तो बदनाम होंगे और नाश होगा। सलाहकार होना चाहि, लेकिन कसौटी स्वयं की चाहिए। जैसे कसौटी सोना नहीं होती, सोने की पहचान कसौटी पर होती है। ऐसे ही सलाहकार की सलाह सुनना चाहिए, पर मानना नहीं चाहिए। हर व्यक्ति की सलाह मानने खड़े हो जाओगे तो जी नहीं पाओगे।
जैन कीर्ति स्तंभ देगा शांति का संदेश
मुनि प्रणीत सागर ने 35 फीट ऊंचे जैन कीर्ति स्तंभ बनाए जाने पर कहा कि इस स्तंभ से सभी धर्मों के लोगों को शांति, अहिंसा का संदेश मिलेगा। इस पर एक कविता सुनाते हुए संत ने कहा कि कितना अद्भुत दृश्य था। एक ओर थी सिटी कोतवाली, दूसरी ओर थी कीर्ति स्तंभ की छटा निराली, शिल्पकार ने एक भी जगह नहीं छोड़ी खाली। एक ओर दिगंबर प्रतिमा, दूसरी ओर श्वेतांबर प्रतिमा। तीसरी ओर णमोकार मंत्र और चौथी ओर परस्परोपग्रहो जीवनाम् का चित्र और नीचे लिखा था वह सूत्र परस्परोपग्रहो जीवनाम् जैसे मिठास देता है रत्नागिरी आम। जब दुख का समय आए और मित्र के मित्र काम आए इसे कहते हैं परस्परोपग्रहो जीवनाम्।। रायपुर के श्रावक रख रहे मुनि संघों के आहार, विहार और निहार का ध्यान। उसके बदले आचार्यश्री दे रहे उनको ज्ञान, इसे कहते हैं परस्परोपग्रहो जीवनाम्।