रायपुर। Annakoot Festival 2023: दीपावली पर्व पर महालक्ष्मी पूजन के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर अन्नकूट महोत्सव मनाने की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है। राजधानी के कुछ मंदिरों में 200 साल से और कुछ में 400 से एक हजार साल पहले से अन्नकूट महोत्सव मनाया जा रहा है। अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करने के लिए दोपहर से लेकर रात तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। किसी मंदिर में 56 व्यंजन तो किसी मंदिर में 156 व्यंजन तो कहीं 200 से ज्यादा व्यंजनों का भोग अर्पित किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि 56 भोग का प्रसाद ग्रहण करने से भगवान की विशेष कृपा होती है और प्रसाद ग्रहण करने से शरीर निरोगी रहता है। ऐसी ही रोचक जानकारी दे रहे हैं- श्रवण शर्मा
रायपुर के बूढ़ातालाब के समीप ब्रह्मपुरी इलाके में 1,100 साल से अधिक पुराने भगवान नृसिंह मंदिर में दीपावली के दूसरे दिन होने वाले अन्नकूट महोत्सव में भगवान नृसिंह को 56 व्यंजनों की जगह 256 व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। मंदिर परिसर में बनने वाले व्यंजनों के अलावा सैकड़ों श्रद्धालु अपने घर से व्यंजन बनाकर लाते हैं। नृसिंह मंदिर के महंत देवदास बताते हैं कि मंदिर में अन्नकूट महोत्सव की परंपरा सैकड़ों साल से चली आ रही है। मंदिर निर्माण को 1,100 साल पूरे हो चुके हैं।
यह प्रदेश का एकमात्र नृसिंह मंदिर है, जो एक हजार साल से अधिक पुराना है, जहां अनेक महंतों के मार्गदर्शन में सैकड़ों साल से गोवर्धन पूजा उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। खास बात यह है कि मंदिर में हजारों श्रद्धालु पगंत में बैठकर अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
पुरानी बस्ती टुरी हटरी के समीप स्थित 200 साल पुराने जैतूसाव मठ में भगवान श्रीराम-जानकी, लक्ष्मण की प्रतिमा का श्रृंगार करके 56 भोग अर्पित किया जाता है। यहां दोपहर को श्रृंगार पूजन के पश्चात देर शाम तक भोजन प्रसादी ग्रहण कराई जाती है। दूर-दूर से श्रद्धालु प्रसाद लेने आते हैं। 56 भोग के खास व्यंजन में यहां का मालपुआ प्रसिद्ध है।
लड्डू, शाक, शरबत, बाटी, मुरब्बा, दधि, जलेबी, रसगुल्ला, घेवर, मालपुआ, भात, दाल, दलिया, फल, तांबूल, मोहनभोग, कढ़ी, मक्खन, मोठ, खीर, पूरी, सीरा, लस्सी, गोघृत, मलाई, चटनी), बड़ा), मठरी समेत वर्तमान दौर में दूध, खोवा, मेवा से निर्मित अनेक व्यंजन शामिल हैं।
खाटू श्याम मंदिर
समता कालोनी स्थित खाटू श्याम मंदिर में खाटू वाले श्याम बाबा का सफेद फूलों से मनमोहक श्रृंगार करके 56 भोग अर्पित किया जाता है। मंदिर में दोपहर से रात तक प्रसादी वितरण किया जाता है। इसके अलावा जगन्नाथ मंदिर, गुढ़ियारी के हनुमान मंदिर, सत्ती बाजार स्थित लक्ष्मीनारायण मंदिर, सदरबाजार के गोपाल मंदिर, बूढ़ापारा के गोकुल चंद्रमा मंदिर, चूड़ी लाइन के बांके बिहारी मंदिर, समता कालोनी के राधाकृष्ण मंदिर, टाटीबंध के इस्कान मंदिर समेत एक दर्जन से अधिक मंदिरों में 56 भोग के आयोजन में लोग परिवार समेत पहुंचते हैं।
गोपाल मंदिर के महंत गोपालशरण देव के अनुसार द्वापर युग में बृज क्षेत्र के निवासी भगवान इंद्रदेव की पूजा करते थे। श्रीकृष्ण ने गांववासियों को समझाया कि गोवर्धन पर्वत पर हमारी गाएं चरने जाती है, वहीं से हमें शुद्ध वायु, जल, अन्न की प्राप्ति होती है, इसलिए गोवर्धन पर्वत को पूजा जाए। श्रीकृष्ण ने सभी गांवों से विविध अनाज, सब्जी, फल मंगवाकर उससे भोजन बनाकर गोवर्धन पर्वत को भोग लगाया। इससे इंद्र नाराज हुए और अपनी माया से तेज वर्षा की। ग्रामीणों की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र के अभिमान को तोड़ा।
ऐसी मान्यता है कि सात दिनों तक श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा। उन्होंने कुछ भी अन्न ग्रहण नहीं किया इंद्र को ज्ञात हुआ कि भगवान विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया है। इंद्र ने क्षमा मांगी। इसके पश्चात माता यशोदा और ग्रामीणों ने श्रीकृष्ण के लिए विविध तरह के व्यंजन बनाए। इसी के साथ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अन्नकूट महोत्सव का चलन शुरू हुआ और तबसे से प्रतिवर्ष अन्नकूट महोत्सव मनाया जाने लगा।
400 साल पुराने दूधाधारी मठ में अन्नकूट
मठपारा के प्रसिद्ध दूधाधारी मठ के संस्थापक महंत बलभद्र केवल दूध का आहार ग्रहण करते थे। दूध का आहार लेने के कारण मठ का नाम ही दूधाधारी पड़ गया। 400 साल पुराने मठ में राघवेंद्र सरकार, लक्ष्मण, जानकी, भरत, शत्रुघ्न, हनुमानजी और भगवान बालाजी को 56 भोग अर्पित करने की परंपरा निभाई जा रही है। कहा जाता है कि पहले महंत ने ही अन्नकूट महोत्सव का शुभारंभ किया था। पहले छोटे रूप में आयोजन होता था, अब हजारों श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करने आते हैं।